मृत्यु कष्ट कारक नहीं होती

February 1952

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(श्री कमलाकर बी. ए.)

आप शायद मृत्यु से डरते होंगे। मृत्यु-समय के कष्ट के बारे में बहुत कुछ सुना गया है कोई गला घोंट देता है, शरीर में भाले के घोंपने जैसी पीड़ा होती है आदि आदि। मृत्यु की ऐसी अनेकों भीषण शक्लें हमारे सामने चित्रित की जा चुकी हैं।

मृत्यु का सम्बन्ध कष्ट, रक्त, अन्धकार तथा असीम शरीर की पीड़ा से जोड़ा जा चुका है। इसके साथ ही हममें से प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि मृत्यु अवश्यम्भावी है। अन्य कोई भी चीज हट सकती है, लेकिन मृत्यु नहीं। लेकिन इतनी निश्चित वस्तु होते हुये भी मृत्यु का बेफिक्री से आमन्त्रण कोई विरला ही कर पाता है।

हममें से प्रत्येक मृत्यु को एक भयावनी छाया के रूप में अनुभव करता है। लेकिन इस सत्य को बहुत कम ही लोग जानते हैं कि समस्त डाक्टरी अनुसन्धानों के पश्चात् भी मृत्यु कोई कष्टदायक वस्तु नहीं सिद्ध हो सकी। निद्रा की तरह धीरे धीरे विस्मृति के गर्भ में डूब जाने का नाम ही मृत्यु है।

प्रसिद्ध अन्वेषक डॉक्टर केरेल के कथनानुसार मृत्यु फौरन नहीं हो जाती। यह दो श्रेणियों में बाँटी जा सकती है। साधारण मृत्यु और साँसारिक अंगों की मृत्यु। साधारण मृत्यु हृदय की गति बन्द हो जाने के साथ ही हो जाती है। इसके अनन्तर आदमी शरीर-शास्त्रियों के सिद्धान्तानुसार सदैव के लिए सो जाता है। लेकिन मनुष्य के विभिन्न अंग उसके बाद भी क्रिया करते रहते हैं। इनकी मृत्यु क्रमशः होती है। गुर्दे आदि तो मृत्यु के एक घन्टे बाद तक कार्य करते पाये गये हैं।

डॉ. केरेल की खोज के अनुसार यह प्रथम अर्थात् साधारण-मृत्यु पुनः जीवन के रूप में भी परिणत हो सकती है। पानी में डूब जाने के उपराँत मनुष्य को उपचार आदि के द्वारा पुनर्जीवित करने के दृष्टाँत मौजूद हैं। लेकिन अंगों की मृत्यु हो जाने के अनन्तर मृत्यु से छुटकारा पाना असम्भव है।

हृदय की गति बन्द हो जाने के अनन्तर मृत्यु हो जाने पर मनुष्य कैसा अनुभव करता है, इसकी बहुत सी खोजें की गई हैं। कुछ आदमी जिन्हें हृदय की गति बन्द होने के बाद पाँच से बीस मिनट के बीच उपचारों से जीवित किये जाने में डॉक्टरों को सफलता प्राप्त हुई है, उनके अनुभव मृत्यु के सम्बन्ध में नोट किये जा चुके हैं। इन लोगों में से किसी ने भी मृत्यु समय पर किसी प्रकार का कष्ट होने का उल्लेख नहीं किया।

इसमें से एक के अनुसार “सहसा ही सब वस्तुएँ मुझे स्पष्ट प्रतीत होने लगीं। एक महान शान्ति ने मुझे घेर लिया। अब मैं मृत्यु से कभी भी न डरूंगा।”

एक भुक्त -भोगी के अनुभव के आधार पर “मृत्यु निद्रा के समान कष्ट रहित है। इससे पूर्व का द्वन्द्व अर्थात् मृत्यु के आगमन की सूचना मात्र क्षण भर के लिए मुझे कष्ट प्रतीत हुई। मृत्यु समय मैंने किसी प्रकार की कंपकंपी तक अनुभव नहीं की।” इस प्रकार डूबने वाले व्यक्ति और मरने के कुछ देर बाद स्वयं जीवित हो उठने वालों के अनुभव नोट किये गये हैं। इनमें से सबके ही कथानुसार मृत्यु से पूर्व भले कष्ट अनुभव हुआ हो लेकिन जब मृत्यु की छाया आकर छप गई तब चित्त में एक पूर्ण शान्ति की भावना उग आई जो धीरे-धीरे विस्मृति की गोद में व्यक्ति को ले चली। द्वन्द्व की समाप्ति के अनन्तर बिना किसी प्रकार का कष्ट अनुभव किये धीरे धीरे चेतना लुप्त होने लगी और हृदय की गति बन्द हो गई।

सर जेम्स गुडहर्ट नामी एक डॉक्टर ने लन्दन के गाई हस्पताल के प्रत्येक मरने वाले व्यक्ति के मृत्यु समय उपस्थित रह इस सम्बन्ध में उनके मनोभावों का अध्ययन करने की चेष्टा की है। उनके परिणामों के अनुसार-जहाँ तक कष्ट का सम्बन्ध है मृत्यु स्वयं किसी प्रकार के कष्ट का कारण नहीं। दुनिया के बीच बादल का-सा परदा रहता है। एक परदा फट जाता है और अनजान में ही उसका स्थान दूसरा ले लेता है।’

कैन्सर सबसे अधिक कष्ट दायक फोड़ा समझा जाता है, ज्यों-ज्यों मृत्यु निकट आती जाती है, इसकी वेदना बढ़ती ही जाती है। लेकिन इसके सम्बन्ध में भी डॉ. हौर्सले का कथन है कि मृत्यु से पूर्व किसी प्रकार का कष्ट बीमार अनुभव नहीं करता।

एक दूसरे अमेरिकन डॉ. के कथनानुसार ‘अन्त तो गत्वा’ मृत्यु बिलकुल सुगम और कष्ट रहित हो जाती है।

इन सब खोजों से स्पष्ट है कि मृत्यु के सम्बन्ध में फैली वर्तमान धारणाओं के परिवर्तन करने की आवश्यकता है। मृत्यु कष्टदायक नहीं, एक दूसरे अन्य जीवन की भूमिका मात्र है। और इस परिणाम पर पश्चिम के डॉक्टर किसी सिद्धाँत विशेष में विश्वास रखे बिना ही पहुँचे हैं। ऐसी दशा में जो लोग पुनर्जीवन में विश्वास रखते हैं उनके लिये तो मृत्यु और भी कम भयप्रद होनी चाहिये।


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