मलेरिया से बचने के सरल उपाय

September 1951

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(श्री मूल नारायण जी वैद्य)

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि दूध, घी के न मिलने के कारण गरीब भारतीय जनता निर्बल और निस्तेज हो रही है। यही कारण है कि यहाँ के निवासी अनेक प्रकार के रोगों के शिकार होकर काल के गाल में समा रहे हैं। निर्बलता के कारण छोटे से छोटे रोग आज भयंकर रूप धारण कर रहे हैं।

जिस प्रकार से इस समय तपैदिक अर्थात् क्षय रोग यहाँ के प्राणियों का क्षय कर रहा है, उसी प्रकार से मलेरिया भी लोगों को मार रहा है। लोगों का अनुमान है कि दस लाख से अधिक मनुष्य साल में इसके शिकार हो जाते हैं।

हम इस रोग से दूर होने के अनुभूत और सरल प्रयोगों को सर्वसाधारण के सामने उपस्थित करते हैं और आशा है कि इससे लाभ उठाया जायगा।

मलेरिया को आयुर्वेद मत के अनुसार विषम रोग माना गया है। इससे कब्जियत, कमर में दर्द, व्यास, नेत्रों में जलन, जाड़े का लगना इत्यादि होता है। इसकी तीन अवस्थाएं होती हैं—एक शीतावस्था, दूसरी उष्णावस्था और तीसरी स्वेदावस्था। यह ज्वर विशेष करके वर्षा, शरद और बसंत ऋतु में फैलती है। शीतावस्था में अधिकतर सरदी पीठ से लगनी आरम्भ होती है और बाद में वह सर्वांग में फैल जाती है। जाड़े के अधिक लगने से शरीर काँपने लगता है। उष्णावस्था में पहिले आँखें गर्म मालूम पड़ती हैं, मुँह से गर्म भाप निकलती है और छाती, हाथ-पैरों में गर्मी लगती है। स्वेदावस्था में पसीना आरम्भ में माथे और मुँह पर आता है, बाद में सर्वांग में होने लगता है। कभी कभी तो इतना पसीना होता है कि ओढ़ना और बिछौना पसीने से तर हो जाता है। अनेक लोगों का मत है कि गन्दे पानी के गढ़ों में जो मच्छर पैदा होते हैं वही इस रोग के मुख्य कारण हैं। ऐसा भी लोगों का कहना है कि यह रोग बालक, स्त्री, पुरुष सभी को होता है, किन्तु काले स्त्री पुरुष की अपेक्षा गौर वर्ण के लोगों में अधिक पाया जाता है। इसके और भी भेद हैं जिसको अतरा, तिजारी, चौथिया भी कहते हैं। जो भी हो यह रोग भयंकर घातक रोग है और इससे सभी परिचित हैं। इससे बचने के लिए कुनैन का अधिक प्रयोग होता है, किन्तु इस स्थान पर हम सरल और अनुभूत औषधियाँ बतलाते हैं।

1—जाड़ा देकर आने वाले बुखार में भुनी हुई फिटकरी 6 आना भर और चीनी 6 आना भर लीजिये। दोनों को मिलाकर चार भाग करके एक एक घण्टे में देने से ज्वर नहीं आता। प्यास लगने पर मिश्री मिला गो दुग्ध लेना चाहिये।

2—नाई बूटी-यह बूटी सभी जगह मिलती है और अधिकतर लोग इसे जानते हैं। इसको तीन से छः माशे तक लेकर सात मिर्च और 21 पत्ती तुलसी की मिला कर घोंट ले। फिर गोली बना गर्म या ठण्डे पानी से मुख में नीचे कर उतार लेना चाहिये।

3—तुलसी की 25-30 पत्ती सात दाना मिर्च के साथ पीस कर पीने से भी ज्वर दूर होता है।

4—इन्द्र जौ, पर बल के पत्ते और कुटकी का काढ़ा बनाकर पिलाने से ज्वर दूर हो जाता है।

5—इकतारा, तिजारी चौथेया इत्यादि में ज्वर आने से पहले भाँग और गुड़ मिलाकर खिलाने से ज्वर दूर हो जाता है।

6—करंज की हरी पत्ती दो तोला, कालीमिर्च 6 माशा, गेरू एक माशा घोट कर चने के बराबर गोली बना लें। ज्वर आने से 3 घण्टे पहले आध-2 घण्टे में एक गोली पानी से उतारे तो लाभ होगा।

7—करंज का बीज 5 तोला, फिटकरी भुनी 2.5 तोला, छोटी पीपर 2.5 तोला, गोभी की पत्ती 2.5 तोला, इन सबको पीसकर तुलसी के रस की 7 भावना देकर मटर के बराबर गोली बनावें और दिन में 4 बार दें अवश्य लाभ होगा।


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