क्या खाऐं क्या न खाऐं?

November 1951

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(डा. अवनीन्द्र नाथ चौधरी, रंगपुर)

एक विद्वान् का कथन है कि मनुष्य जैसा खाता है वैसा ही होता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हम जो कुछ खाते हैं उसका हमारे मन और शरीर पर भारी असर पड़ता है। भूखों को भोजन देने की समस्या अत्यंत महत्वपूर्ण है, परन्तु क्या खाना चाहिए, यह समस्या किसी भी दृष्टि से उसके कम महत्वपूर्ण नहीं है।

अधिकतर बीमारियाँ इसीलिए होती हैं क्योंकि हम यह नहीं जानते कि हमें क्या खाना चाहिए। आज हम देखते हैं कि अस्वस्थता, बीमारी और पीड़ा का चारों ओर साम्राज्य है। समस्त नाशकारी बीमारियां घटने के बजाय बढ़ रही हैं। जैसे मधुमेह, कैंसर, तपेदिक, हृदय रोग इत्यादि।

विज्ञान-सम्मत नया विचार यह है कि मनुष्य का शरीर सोलह से लेकर बीस खनिज तत्वों का बना हुआ है। उस शरीर को स्वस्थ रखने के लिए यह अनिवार्यतः आवश्यक है कि ये खनिज तत्व भाँति-भाँति के नमक-शरीर में समुचित मात्रा में मौजूद रहे। ये तत्व शरीर में वही काम करते हैं जो समाज में मेहतर, यानी गन्दगी को सफाई का तथा खून को विकार हीन (साफ) करने का। ये यूरिक एसिड जैसे जहरों को शरीर से निकाल कर फेंकने में मदद देते हैं। वे ही प्रकृति की यथार्थ औषधियाँ हैं जो बीमारियों के मूल कारणों को दूर करती हैं। वे ही शरीर के कण-कण, रोम-रोम और पोर-पोर को वह सजीव शक्ति देते हैं जिससे वे बीमारी के कीटाणुओं के आक्रमण से अपनी रक्षा कर सकें।

इन तत्वों के अलावा दूसरी यह चीज है कि जिन पदार्थों से भोजन में शरीर को इतना पोषण मिले कि जिससे उनमें प्राण शक्ति का संचार हो, उसे ही विटामिन कहते हैं। इस तरह विटामिन असल में भोजन में रहने वाली प्राण शक्ति हुई। यह प्राण शक्ति सजीव, नई, ताजी और प्राणप्रद पदार्थों में ही पाई जाती है। ज्यादा छोल-छील या पकाने की प्रक्रिया में उनके नष्ट हो जाने का डर रहता है। अगर हम ताजे फल काफी मात्रा में खावें, और हरे साग व तरकारियों का पूरा-पूरा उपयोग करें तो हमें यह प्राणदा शक्ति (विटामिन) पर्याप्त मात्रा में मिल सकती है। फलों में मेवाएँ भी शामिल हैं। यानी अनार, सन्तरा, सेब, अंगूर, केला, अमरूद, नासपाती, वगैरः के साथ-साथ छुहारे, किसमिस, बादाम वगैरः का भी प्रयोग किया जा सकता है। इन मेवाओं में भी विटामिन मौजूद है। हरे सागों में, बथुआ, पालक, मेथी वगैरः में तथा टमाटर वगैरः में विटामिन बहुत ज्यादा तादाद में पाये जाते हैं। इसलिए सब लोगों को चाहिए कि वे भोजन में इन हरे सागों का खूब प्रयोग करें। ये बातें स्टेन लीलिफ नाम के एक अंग्रेज विशेषज्ञ ने लिखा है। उसने यह भी बताया है कि कबूतरों पर इस बात का प्रयोग करके देख लिया गया है। एक ही उमर और एक ही स्वास्थ्य के दस कबूतरों को पाँच-पाँच की दो टोलियों में बाँट दिया गया। इनमें से जिस टोली को पोषक भोजन, खनिज तत्व और विटामिनों वाला भोजन दिया गया वह सुखी और स्वस्थ पाई गई तथा दूसरी टोली दुखी और बीमार। इसके बाद पहली टोली को दूसरी का भोजन दिया गया और दूसरी को पहला। नतीजा यह हुआ कि दुखी और बीमार टोली सुखी और स्वस्थ हो गई तथा सुखी और स्वस्थ टोली दुखी और बीमार। इससे यह जाहिर है कि हमारे स्वास्थ्य पर हमारे भोजन का तुरन्त और प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इस विशेषज्ञ का कहना है कि सभ्यता की धुन में हमने भोजन को नष्ट कर दिया है। आपका कहना है कि पोषक और प्राणप्रद भोजन के लिए, स्वास्थ्य के लिए, यह अनिवार्यतः आवश्यक है कि -

(1) मैदे की जगह हम चक्की के पिसे आटे का चोकरदार आटे का प्रयोग करें क्योंकि मैदे में से गेहूँ का प्राण-तत्व जाता रहता है।

(2) इसी तरह साफ शक्कर और उस की बनी हुई मिठाइयों की बात है। इसकी जगह गुड़ कहीं अधिक प्राणप्रद होता है।

(3) चीजों को जहाँ तक हो सके उनके प्राकृतिक रूप में ही खाया जाये। बहुत ज्यादा पकाने वगैरह में भी उसके प्राण-तत्व जल जाते हैं।

(4) ताजी, हरी तरकारियों का, फलों का और मेवाओं का प्रयोग जितना ज्यादा किया जाये अच्छा है। इन्हीं में वे खनिज तत्व होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाजिमी हैं।

(5) बहुत ज्यादा गोश्त, मछली, अण्डे, मुर्गी वगैरह खाना हानिकारक है। इससे तेजाब पैदा होता है। इनके बजाय दूध, दही, पनीर वगैरः का इस्तेमाल उनसे सब बातों में कहीं ज्यादा अच्छा गुणकारी है।

(6) रोटी, केक, बिस्किट, वगैरः भी ज्यादा नहीं खाने चाहिए। इनके बजाय सूखी मेवाऐं, अंजीर, छुआरे, खजूर, वगैरः खाये जाने चाहिए।

(7) सब्जी-तरकारी वगैरः को ज्यादा पानी में उबाल कर पानी फेंकने की आदत बहुत बुरी है। उसका सब प्राण-पत्व उसी पानी में चला जाता है और तरकारी के बजाए महज मसाले मिली घास रह जाती है।

(8) सार हीन भोजन-जैसे चटनी, चाय, कहवा, शराब वगैरः।

(9) भोजन के सम्बन्घ में हमारी एक बहुत बुरी आदत यह है कि हम भोजन अच्छी तरह चबा कर नहीं खाते उसे जल्दी-जल्दी सटक जाते हैं।

(10) इनके अलावा हम एक और बुरी बात करते हैं कि जितना खाना चाहिए उससे ज्यादा खा जाते हैं। भोजन-सम्बन्धी और किसी बुरी आदत से हमें इतनी हानि नहीं पहुँचती जितनी ज्यादा खा जाने की आदत से।

यह जाहिर है कि पोषक भोजन खर्चीला भोजन नहीं है, हरे साग और सब्जियाँ साधारण लोगों को भी मिल सकती है। दूध-दही भी मध्यम श्रेणी के लोग हासिल कर सकते हैं। हर हालत में ज्यादा मिठाइयाँ और ज्यादा घी की चीजों से, नफासत की चीजों से, स्वस्थ भोजन सस्ता ही रहेगा। मौसम के फल और साग सस्ते भी होते हैं और पोषक तथा गुणकारी भी। उनका खूब प्रयोग कीजिए। गेहूँ के मोटे आटे की रोटी खाइये। दूध पीजिए, दही उड़ाइये। आपका भरपूर पोषक भोजन मिल गया। चाय, मिठाई, ज्यादा घी वाली तरकारियाँ और शराब वगैरः में लोग कितना खर्च करते हैं उतने से चौथाई खर्च में ही वे पोषक भोजन पाकर स्वस्थ रह सकते हैं और डाक्टरों के बिलों से भी बच सकते हैं। मोटे आटे की रोटी मैदे के बजाय खाने में, और हरे साग तथा टमाटर वगैरः खाने में उन लोगों का खर्च बढ़ता नहीं बल्कि घटता है जो मैदे की चीजों को और ज्यादा घी वाली पकी हुई मसालेदार तरकारियों का प्रयोग करते हैं तथा चाय, कहवा शराब वगैरः के आदी होते हैं। पोषक भोजन सस्ता भोजन है, खर्चीला नहीं, यदि सरकार अच्छी हो तो देश के हर शख्स के लिए पोषक भोजन का प्रबन्ध हो सकता है। उसे खूब चबा कर खाने पर देश स्वस्थ सुखी और सबल हो सकता है।

स्वास्थ्य और भोजन के कुछ आवश्यक नियम

(1) भोजन नित्य निश्चित समय पर ही करो। उन समयों के सिवा अन्य समयों में कुछ न खाओ।

(2) पेट भर कभी न खाओ। भूख कुछ रहते ही खाने से हाथ रोक लो।

(3) जितना तुमको खाना है उससे जरा भी ज्यादा मत परोसवाओ।

(4) रोगी होने पर खाना बन्द कर दो। बिल्कुल उपवास नाप कर सको तो फल के रस या जौ के पानी पर गुजर करो। हर रोग का आधा इलाज उपवास है।

(5) भोजन में भरसक क्षार की मात्रा अधिक रखो और बादी चीजें, तेज मसाले, खटाइयाँ, आदि से भरसक बचो।

(6) भोजन अत्यन्त सादा रखो और वही खाओ जो सहज में पच सके।

(7) जो कुछ खाओ खूब चबाकर मुँह की राल से अच्छी तरह सानकर जब ग्रास पतला हो जाए तभी निगलो।

(8) भोजन की सामग्री में हरे शाकों, पत्तियों और फलों की अच्छी मात्रा हो। पकाई चीजों से यह चीजें कच्ची ज्यादा अच्छी होती हैं।

(9) भाड़ में भुने दानों से कभी गुजर न करो। स्वाद में ये भले ही अच्छे हों पर इनका पोषक गुण नष्ट हो जाता है। भिगोये हुए अंकुर निकलते दाने बड़े अच्छे पोषक और तृप्ति देने वाले होते हैं। जिस पानी में ये भीगे हो उसे भी पी जाओ।

(10) भोजन करती बेर पानी न पियो। भोजन से घन्टे भर पहले या बाद को इच्छानुसार पानी पियो।

(11) कब्ज रहता है तो सवेरे सोकर उठते ही बाँसी आधा सेर या तीन पाव पानी बिना प्यास के ही पी जाओ। इससे पेट की स्वाभाविक सफाई में मदद मिलेगी।

इन नियमों के सिवा यह याद रखो कि तुम्हारा भोजन अधिक क्षारमय हो। इसके लिए “हेरल्ड आफ हेल्थ” में डा. मेनूकलका एक लेख पढ़ने लायक है। उसका कुछ अंश नीचे दिया जाता हैः-

आपकी प्रकृति आम्ल है, यह कहने का क्या अर्थ है? सारी प्रकृति आम्ल हो जाय तब तो मनुष्य जीवित ही न रहे। रोग रहित स्वस्थ शरीर ही विशेष कर क्षारमय होता है। शरीर में रासायनिक रीति से 80 प्रतिशत क्षार तत्व और 20 प्रतिशत आम्ल तत्व होने चाहिए। इस चार और एक प्रमाण के सुरक्षित रखने का अर्थ है आरोग्यता रक्षा करना और दीर्घजीवी होना। ये तत्व हमारे आधार के पदार्थों में जिस रीति से विभक्त हैं उसे ध्यान में रखकर आम्ल पोषक और क्षार पोषक आहारों और पीने की वस्तुओं की सूची नीचे दी जाती है-

आम्ल पोषक- मछली, पशु पक्षी का माँस, अंडा, पनीर, अनाज (गेहूँ, चावल, मकई आदि) रोटी, दालें, सूखा मेवा, सफेदखांड, मिठाई मात्र, चाकलेट, चाय, काफी मुरब्बे, तली हुई चीजें, नशे की चीजें, उबाला हुआ दूध, खीर, आदि।

क्षार पोषक-फूल गोभी, करमकल्ला, गाजर, चुकन्दर, सेलरी नामक साग, चिचेड़ा, जैतून(पके हुए) प्याज, हरी मटर, आलू, लौकी, कद्दु, मूली, चौलाई, पालक, मेथी, आदि भाजियाँ, टमाटर, शलजम, लगभग तमाम फल, सेब, जरदालू या खुमानी, पूरी तरह से पके हुए केले, खजूर, अंगूर, अंजीर, मुनक्का, हरे मेवे, नीबू, संतरे, मोसंबी आदि का रस, आड़ू, नासपाती, आलूचा, कच्चा दूध, छाछ, आदि।


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