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January 1951

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ईर्ष्या, लोभ, क्रोध और अप्रिय किंवा कटुवचन इनसे सदा अलग रहो। धर्म प्राप्ति का यही मार्ग है।

-तिरुवल्लुवर।

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काम के समान व्याधि नहीं। मोह के समान बैरी नहीं। क्रोध के समान आग नहीं। और ज्ञान से परे सुख नहीं।

-श्री चाणक्य।

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सत्संग से दुर्जनों में साधुता आती ही है। साधुओं ही में दुष्टों की संगति से दुष्टता नहीं आती। फूल के गंध को मिट्टी ही ले लेती है। मिट्टी के गंध को फूल नहीं धारण करते।

-श्री चाणक्य।


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