परिवार की आन्तरिक व्यवस्था।

January 1951

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गृह की आन्तरिक व्यवस्था भी एक कला है। प्रायः देखा जाता है कि घर में दो प्रकार के सदस्य होते हैं - 1. कार्य में लगे रहते हैं, 2-आराम तलब और कामचोर - ये व्यक्ति आनन्द अधिक लेते है और उसी अनुपात में कार्य नहीं करते। काम करने वाले वर्ग में मुख्यतः घर का स्वामी, मालकिन बड़ी भौजाई तथा अन्य उत्तरदायित्व का अनुभव करने वाले व्यक्ति आते है। द्वितीय वर्ग में नवयुवक तथा स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियाँ, नवीन वधुएं, मेहमान या पढ़ने के लिए आये हुए दूसरे घर के विद्यार्थी गिने जाते हैं।

अपने परिवार का अध्ययन कर मालूम कीजिए कि इन दोनों वर्गों में किस व्यक्ति का स्थान कहाँ है? आपकी नीति सबसे उसकी आयु के अनुकूल कार्य लेने की होनी चाहिए। परिवार एक ऐसी संस्था है, जिसमें सबका समान अधिकार है। काम भी सभी को करना उचित है। अन्यथा परिवार की नींव ढह जायेगी।

घर के विभिन्न कार्य कर्त्ता :-

घर के सब कार्यों की सूची तैयार कीजिए। मान लीजिए आपके घर में निम्न कार्य हैं - घर की झाडू, कमरों की सफाई, बैठक की झाड़फूँक, सजावट, प्रातः दूध दुहना या बाजार से लाना, पशुओं की देखभाल, बाजार से सब्जी तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं का खरीदना, रुपए की आय व्यय का हिसाब, घर का भोजन बनाना, बर्तन साफ करना, बच्चों को पढ़ाना, मासिक बजट तैयार करना। दवादारु और चिकित्सा का प्रबंध, सफर कराने का बन्दोबस्त, डाक की सुव्यवस्था इत्यादि। इन सब कार्यों को करने के लिए आप परिवार से निम्नलिखित कार्यकर्ता चुन लीजिए।

1. गृह मंत्री, 2. यातायात, 3. विदेशी विभाग, 4. स्वास्थ्य विभाग, 5. अर्थ मंत्री।

गृहमंत्री का कार्य प्रमुख व्यक्ति करे, जो घर की सब छोटी-मोटी जानकारी रखे, भावी कठिनाइयों के लिए परिवार को चौकस रखे, लड़ाई झगड़ों से बचाकर परिवार की प्रतिष्ठा का ध्यान रखे, घर की सामान्य पॉलिसी का निर्णय करे। दूसरा प्रमुख कार्य अर्थ मंत्री का है। यह व्यक्ति हिसाब करने, बजट बनाने, अध्ययन का ठीक ब्यौरा रखने, मौसम के समय खाद्य वस्तुओं को खरीदने और बचत की व्यवस्था में चतुर होना चाहिए। घर में पाई-पाई का हिसाब रखा जाय। मास से पूर्व ही बजट तैयार करले और एक-एक कर सब जिम्मेदार सदस्यों के पास घुमा दे। उनकी आवश्यकताओं के विषय में पूछ लें और उसका उल्लेख बजट में यथास्थान करदें। कर्ज में आने से परिवार की रक्षा करे। यातायात मंत्री सफर, मेहमानदारी, यात्रियों की देखभाल करे। विदेश मंत्री, चिट्ठी-पत्री, अखबार मंगाना बाहर वाले मेहमानों से अच्छे सम्बन्ध स्थिर रखने का कार्य करे। यदि घर के सब व्यक्ति इन कार्यों में पृथक-पृथक काम विभाजित कर अग्रसर होगा तो घर का काम क्षण भर में हो सकेगा। किसी के ऊपर अनुचित भार भी न पड़ेगा।

प्रातःकाल उठकर यदि प्रत्येक सदस्य स्वयं अपने कमरे में झाड़ू लगालें, अपना बिस्तर स्वयं उठा दे, स्नान के उपराँत साबुन तथा स्थान रखदे, और तोलिया स्वयं धो डाले, अपने कपड़े नियत स्थानों पर रखे, तो बहुत सहूलियत हो सकती है। जब एक-एक-व्यक्ति काम छोड़ कर लापरवाही करता है, तो काम पहाड़-सा प्रतीत होता है। यदि प्रत्येक आदमी अपना-अपना काम निपटाता चले तो सब कुछ क्षण भर में निपट जाता है।

नौकर के ऊपर निर्भर रहना उत्तम नहीं है। नौकर आ जाने से प्रत्येक व्यक्ति के मन में आलस्य कामचोर-पन, दूसरे पर शासन करने की भावना आती है। थोड़े दिन पश्चात कार्य-भार से त्रस्त होकर नौकर भाग जाता है। यही हाल रसोइया का होता है। कल्पना कीजिए कि यदि रसोइया एक-एक व्यक्ति के लिए बैठा रहे, तो कैसे भोजन का अंत हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को नियत समय पर जो बने, उसे प्रसन्नतापूर्वक खा लेने की आदत डालनी चाहिए।

घर की सुव्यवस्था कैसे करें-

आइए, मैं आपको अपने घर की सैर कराऊँ। यह देखिए हमारा स्टोर है। इसमें जो सामने अलमारी है, इसमें छोटे-छोटे सात पीपे चुने रखें हैं। प्रत्येक पीपे पर कुछ लिखा हुआ है। ये सात प्रकार की दालें हैं, जिन पर दाल के साथ जिनका नाम दर्ज है। कौन सी दाल किस दिन तैयार होगी, इसका प्रबन्ध पहले से ही है। मास के पहले दिन इन पीपों को देख लिया जाता है और मुँह तक भर दिया जाता है। दूसरी ओर मसालों के पीपे हैं जिनमें वर्ष भर के लिए नमक, धनिया, मिर्च, हल्दी, जीरा, गरम मसाला पिसा हुआ रखा है। जब रसोई के मसालदान में कोई वस्तु कम हो जाती है, तो इसमें से लेली जाती है। एक ओर दो बड़े बोरे गेहूँ के रखे हैं, एक पीपे में चावल है, गाय भैंस के लिए 1 बोरी खल चुनी इत्यादि रखी है। एक पीपे में ढक्कन से बंद आटा रखा हुआ है। खूँटी पर तराजू मौजूद है। नियत मिकदार में आटा और दाल तोल कर गृह मंत्री देता है। इसी में करीने से सजी हुई एक ओर लकड़ी एकवत्र रखी हैं। शेष लकड़ियाँ छत पर एकत्रित हैं। कुछ उपले भी मौजूद हैं। एक कोने में मिट्टी के तेल का पीपा और दो बोतलें रखी हुई हैं। मास के प्रारंभ में देख लिया जाता है कि स्टॉक में क्या-क्या हैं। स्टॉक रखने वाला व्यक्ति बजट के लिए वस्तुओं के परिमाण के सम्बंध में सूचना देता है।

ऊपर एक अलमारी में (जो बंद है) पाँच तरह के अचार-मुरब्बे और घी एकत्रित है। इसे मास के प्रारंभ में भर लिया गया है। कुछ तिल का तेल भी रखा है। इसी में पापड़, भंगौरी और सूखे मेवे-किशमिश, बादाम, छुहारे, खोपरा, स्पेशल भोजन के लिए तैयार रखे हैं। अलमारी के निचले खाने में दो दर्जन कटोरियाँ, दो दर्जन चम्मच, कुछ थालियाँ गिलास इत्यादि एकत्रित हैं। कुछ बढ़िया गुड भी बन्द पीपे में सुरुचिपूर्ण ढंग से रखा है। इस स्टोर में एक मास के लिए तरकारी के अतिरिक्त सब कुछ एकत्रित कर लिया है।

रसोई भी देख लीजिए। एक अलमारी में साफ किए हुए बर्तन सजे रखे हैं। महरी ने उसे धो दिया है, चूल्हा लीपा पुता साफ है, पटरा धुला हुआ है। एक और आले में शक्कर का पीपा, छलनी, कुछ चम्मच, चाय का इंतजाम है, दूसरी और मसालदान विराज रहे हैं। एक ओर दूध बिलोने का यंत्र रखा है। दही जमा रखा है। मक्खन ढका रखा है। प्रत्येक बालक को प्रातः मक्खन से रोटी और एक पाव दूध का नाश्ता मिलेगा। उसके लिए सब तैयारी है। कुछ सूखी तरकारियाँ भी यहीं रखी हुई हैं। बाजार में बिकने वाले कुछ रायते, सुखे आलू, टमाटर की चटनी, अचार, सिरका मौजूद है। यह आपको इतना साफ सुथरा इसलिए प्रतीत होता है, क्योंकि प्रति 3 मास में घर के व्यक्ति मिलकर स्वयं इसकी पुताई कर डालते हैं। यह स्थान सबसे स्वच्छ है।

आगे आइए, यह हमारा गुशल खाना है-छोटा पर साफ। एक ओर साबुन तथा मंजन देखिए। दूसरी ओर साफ तौलिया लटक रहा है। हाथ धोने के पश्चात इसे काम में लाया जाता है प्रतिदिन प्रातःकाल फिनाइल से इसकी दीवारें और राख से नल की टोंटी माँज दी जाती है।

पाखाना इतना साफ है कि कहीं मक्खी का नाम तक नहीं। इसी में आले में फिनाइल का डिब्बा है, नल है, बाहर से धोने के लिए पिचकारी है। बाहर के नल में लगाकर इसे प्रति दिन खूब स्वच्छ कर दिया जाता है। पाखाना धुलाने की बारी प्रति सप्ताह बदलती है।

घर के सहन में एक डायरी कील पर लटक रही है। उसी में एक पेंसिल बंधी है। जिस किसी वस्तु को बाजार से मंगाने की आवश्यकता होती है, वह कोई भी इस डायरी में दर्ज कर देता है। प्रत्येक बच्चा बूढ़ा इसका प्रयोग करता है। अपनी जरूरत की वस्तु के साथ नीचे अपना हस्ताक्षर कर देता है। जब बाजार से चीजें लाने वाला व्यक्ति बाजार जाता है, तो इस स्लिप को फाड़ कर ले जाता है और सबकी वस्तुएं एक साथ आ जाती हैं।

यह हमारा संदूकों का कमरा है। इसमें दस-पन्द्रह छोटे-बड़े संदूक आप देख रहे हैं। यह सबसे बड़ा संदूक रजाई, बिछौना, और कम्बल के लिए है। जिसमें फिनायल की तेज महक आ रही है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति का संदूक पृथक है। उस कोने के संदूक में मैले कपड़े रखे हैं, जो धोबी ले जायेगा। धोबी के घर धुला हुआ प्रत्येक कपड़ा आठ दिन तक चलना होता है। रात्रि की पोशाक पृथक है। प्रातःकाल नहा धो कर स्वच्छ पोशाक धारण करने की योजना है। परिवार की आन्तरिक व्यवस्था सही कर हम अन्य कार्यों में निश्चिन्ता पूर्वक लग सकते हैं।

तीन कमरे विशेष महत्व रखते हैं। पहला पूजा गृह है। यह अपेक्षाकृत छोटा पर, स्वच्छ अगरबत्तियों से सुगन्धित और धार्मिक चित्रों से सुसज्जित है। प्रातः सायं घर के सब सदस्यों को भजन, प्रार्थना और पूजा के अनिवार्य रूप से यहाँ उपस्थित होना पड़ता है। बालकपन में डाले गये संस्कारों से प्रत्येक बालक आशावादी, संघर्षशील, आस्तिक और कर्त्तव्य परायण होता है। इसी में एक छोटा घरेलू पुस्तकालय भी है, जिसमें अनेक छोटे बड़े धार्मिक आध्यात्मिक और चरित्र निर्माण करने वाले ग्रन्थों, मासिक-पत्रिकाओं का संकलन है। भोजन के पश्चात् सब सदस्य इस कमरे में एकत्रित होते हैं। रेडियो द्वारा मनोरंजन, समाचार तथा अन्य आवश्यक तत्वों का यहाँ ज्ञान कराया जाता है। बच्चे प्रायः इसमें अपना अधिकाँश समय व्यतीत करते हैं।

हमारा शयनागार दो बातों में विशेष महत्व रखता है। वह खूब खुला हुआ, हवादार, प्रकाशमय है। बिस्तर सफाई से एक ओर तय करके रखे हुए हैं। शाम होते-होते इन्हें बिछा दिया जायेगा। ‘बिस्तर लगाना और उठाना’ यह कार्य छोटे बच्चों का है। उन्हें सहायता करने के लिए एक बड़े व्यक्ति की ड्यूटी भी लगी हुई है। बच्चों के लिए और भी छोटे-छोटे कार्य चुन दिये गए हैं जैसे-भोजन खिलाना, कुर्सियों की सफाई, पुस्तकों को उठाकर यथास्थान पर जमाना, अपने वस्त्र, जूते, बस्ता नियत स्थान रखना, छोटे शिशुओं को खिलाना, घर के पशु-पक्षियों-तोता, बिल्ली, कुत्ता, गाय को मामूली भोजन प्रदान करना इत्यादि। उनकी आयु के साथ धीरे-धीरे उन्हें अधिक जिम्मेदारी का स्थान प्रदान किया जाता है।

सबसे अधिक परिश्रम बैठक में किया जाता है। प्रातःकाल इसकी सफाई की जाती है। बिखरी वस्तुओं को यथास्थान रखा जाता है। कुर्सियों की झाड़-पोंछ, पुस्तकों, अलमारी, आलों ब्रंचों की सफाई, तस्वीरों की रक्षा, तथा कोनों, किवाड़ों या छत में लगे हुए जालों को तोड़ने का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसमें किसी भी सदस्य को उसकी व्यक्तिगत वस्तु को छोड़ने नहीं दिया जाता, केवल बैठने, अपने मित्रों के साथ ठहरने, आमोद-प्रमोद तथा बातचीत करने का अधिकार है। बैठक से घर की प्रतिष्ठा रहती है। उसकी स्वच्छता के लिए प्रत्येक सदस्य प्रयत्नशील रहता है।

घर के छोटे-छोटे कार्य-

इसके अतिरिक्त छतों की सफाई का ध्यान रहता है। खाटों की अजवायन खींचने, टूटी वस्तुओं की मरम्मत कराने, घर के पशुओं के चारे दाने की व्यवस्था करने, प्रत्येक बच्चे की शिक्षा में दिलचस्पी लेने, प्रतिमास उसकी परीक्षा लेने का नियम है। एक मास में बच्चा कितना आगे बढ़ा है। उसके शारीरिक, मानसिक, साँस्कृतिक स्तर में कितना परिवर्तन हुआ है। इसका निरीक्षण किया जाता है। बालक के मानसिक विकास में यथाशक्ति सहायता पहुँचाने का प्रयत्न किया जाता है। हमारा यह विचार है कि हमारी विचारधारा, हमारी प्राकृतिक वृत्तियों के अनुभव में निर्धारित होनी चाहिए। बच्चे का अनुभव बढ़ता है। उसके साथ उसका ज्ञान उत्तरोत्तर बढ़ता है। ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अभीष्ट ज्ञान प्राप्त करना, शारीरिक और मानसिक व्यापारों का विकास ही बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा है। जिस घर में बच्चों की चंचलता, उनकी हलचल जिज्ञासा, स्व प्रवृत्ति के अनुसार संगी साथी बनाने की चेष्टा अनुकरण, हर्ष, शोक भयादि व्यापार, सम्मति प्रदर्शन की इच्छा, एप्रीसीयेशन कुछ न कुछ करते रहना इत्यादि प्रवृत्तियाँ शुभ कार्यों में लग सकेंगी। उसी परिवार के बच्चे आगे निकल जायेंगे। प्रत्येक बच्चे को कुछ जिम्मेदारियाँ सौंपिये। जितना ही बच्चा जिम्मेदारियों के प्रति जागरुक बनेगा। उतना ही उसका आत्म विश्वास बढ़ता जायेगा।


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