(श्री राम)
सुनलो सर्वस्व धर्म का यह, सुन कर तुम उस पर ध्यान धरो।
जो अपने लिये अहितकर हो औरों के लिये कभी न करो॥
जीवन की यही सफलता है, देही देही का श्रेय करे।
धन से, मन से, बचनों से क्या प्राणार्पण से भी नहीं टरे॥
हैं ग्रन्थ पुराण अठारह जो उसमें दो बाते व्यास कहें।
उपकार किये से पुराण मिले पर पीड़न से तो पाप लहें॥
श्रुतियों में भी स्मृतियों में भी मतभेद दिखाई देते हैं
मुनि एक नहीं जिनके मतको केवल प्रमाण में लेते हैं॥
है तत्व धर्म का बहुत गूढ़ जिसको हम नहीं जानते हैं।
हाँ,श्रेष्ठ पुरुष जिस मार्ग चलें उसको सन्मार्ग मानते हैं॥
विद्या धन शक्ति मिले दुर्जन करते विवाद मद पीड़ा हैं।
पर सज्जन ज्ञान दान रक्षा करने का लेते बीड़ा हैं॥
-अशोक