मनुष्य शरीर की अद्भुत बिजली और उसके चमत्कार।

April 1950

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मनुष्य शक्तियों का केन्द्र है। उसमें भौतिक शक्तियाँ भी। सर्कस में अद्भुत खेल दिखाते हुए नटों को, बाजीगरों को, साहसिक कार्य करने वाले बहादुरों के करतबों को देखकर यह पता चलता है कि मनुष्य शरीर को साध ले तो एक से एक अनोखे काम कर सकता है। मानवीय बुद्धि दर्शन, साहित्य, रसायन, विज्ञान, ज्योतिष, चिकित्सा, कृषि, शिल्प, संगीत आदि महिमा का वर्णन ही क्या हो सकता है। आध्यात्मिक शक्तियाँ द्वारा अष्ट सिद्धि, नवनिद्धि, देवसिद्धि, आत्म दर्शन, दर्शन प्राप्ति आदि महान पुरुषार्थ उपलब्ध किये जाते है।

मनुष्य देखने में बड़ा दुर्बल और साधारण सा प्राणी है पर उसके कण कण में एक से एक अद्भुत शक्तियाँ भरी हुई हैं जो उनको जान लेता है और उनको जागृत करके सशक्त बना देता है। एवं उनसे काम लेना सीख जाता है वह दूसरों के सामने अद्भुत शक्ति सम्पन्न की तरह प्रकट होता है।

वैज्ञानिक यन्त्रों की सहायता से यह देखा जा सकता है कि मनुष्य शरीर एक अच्छा खासा बिजलीघर, शक्तिकेन्द्र है। बिजली घर के इंजन की तरह मनुष्य का हृदय हर घड़ी काम करता है और वहाँ से असंख्यों तार निकल कर सम्पूर्ण शरीर साम्राज्य में फैलते हैं। बिजली के उपयोग एवं वितरण को व्यवस्थित रखने का यन्त्र भवन जिस प्रकार होता है वैसा ही मानवीय मस्तिष्क है। मस्तिष्क से असंख्यों ज्ञानतन्तु निकलते हैं और वे बारीक जाल की तरह सारे शरीर में फैल जाते हैं। यह बिजलीघर ऐसे सुरक्षित रूप से बना है कि इसकी शक्तियों का प्रदर्शन एवं व्यय बाहर नहीं होता इसलिए शरीर को छूने से कोई विशेषता मालूम नहीं होती पर यांत्रिक परीक्षा से प्रकट है कि करीब 260 वाट बिजली हर घड़ी काम करती रहती है। उसकी, ऊष्मा, शक्ति तथा गतिशीलता से देह के विविध कल पुर्जे काम करते रहते हैं।

मशीनों से बनने वाली बिजली की अपेक्षा, शरीर की बिजली अनेक गुनी सूक्ष्म उच्चकोटि की तथा प्रकृति के सूक्ष्मतम परमाणुओं को प्रभावित करने वाली है। हमारे पूजनीय पूर्वज इस रहस्य को जानते थे। इसलिए उन्होंने शरीर की विद्युत शक्ति का प्रकृति के सूक्ष्म परमाणुओं से संबंध स्थापित करने का सफल आविष्कार किया था। आज के पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने लाखों करोड़ों रुपयों की कीमत में बनने वाले, और पेट्रोल आदि खर्चीले दुष्प्राप्य साधनों से चलने वाले यन्त्र बनाये हैं। वे एक नियत स्थान पर रखे रहते हैं एक जगह से दूसरी जगह उन्हें उठा ले जाना बड़ा कष्ट साध्य है। यह कठिनाई भारतीय योग विज्ञान में तनिक भी न थी। आज रेडियो से खबर भेजनी हो तो कीमती ट्रान्समीटर यन्त्र होना चाहिए। फिर उसका नियमित सम्बन्ध किया जाना चाहिए तब कहीं संवादों का आदान प्रदान हो सकता है। योग विज्ञान के आधार पर इस झंझट की तनिक भी जरूरत न थी। मस्तिष्क की अमुक ग्रंथियों को जागृत करके आत्म विद्युत की चेतना से उसे क्रियाशील बनाया जाता था और उस माध्यम से विचार तरंगें सुदूर स्थानों को भेज कर जहाँ संवाद भेजना होता था वहाँ तत्काल भेज दिया जाता था। लंका में बैठा हुआ रावण, अमेरिका में बैठे हुए रावण से इसी आधार पर वार्तालाप करता रहता था। आज रेडार नामक रेडियो शक्ति से संचालित बम निर्दिष्ट स्थान पर जाकर गिरता है। इस बम को बनाने और चलाने में बहुत ही खर्चीले यन्त्रों तथा पदार्थों की आवश्यकता पड़ती है। प्राचीन काल में मन्त्र शक्ति से ही कृत्या-घात चलाई जाती थी और शत्रु जहाँ कही भी होता था वहीं ढूँढ़ कर वहीं उसके ऊपर गिरती थी, अनेक प्रकार के योगिक चमत्कारों का वर्णन प्राचीन पुस्तकों में मिलता है। यह चमत्कार वैज्ञानिक आधार पर निर्भर थे। प्रकृति के सूक्ष्म परमाणुओं को अपने शरीर की विद्युत शक्ति द्वारा यथेच्छित दिशा में मोड़ लेने की विद्या हमारे पूर्वजों को ज्ञात थी और वे इच्छानुसार प्रकृति के अपार भण्डार में से अपना आवश्यक प्रयोजन सिद्ध कर लेते थे। शाप और वरदान, अभीष्ट पदार्थ की अनायास प्राप्ति, असंभव दिखाई पड़ने वाले कार्यों को संभव बना देना, यह सब अचरज भरे कार्य करने की उस जमाने में साधारण लोगों में भी क्षमता थी। कारण यही था कि शारीरिक विद्युत का प्रकृति के सूक्ष्म परमाणुओं के साथ सम्बन्ध मिला कर उन्हें अभीष्ट दिशा में परिवर्तित कर लेने का ज्ञान उन्हें था। इस युग के वैज्ञानिक भी जब उस ज्ञान को प्राप्त कर लेंगे तो आज की खर्चीली मशीनरी की उन्हें कुछ भी आवश्यकता न रहेगी। बोझ उठाने के लिए बड़ी बड़ी क्रेन मशीनें तक निरुपयोगी हो जायेगी और वायु विद्या के आधार पर मामूली वानर बड़े पर्वतों को उठा ले जाया करेंगे।

उपरोक्त पंक्तियों में प्राचीन विज्ञान की चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं है यहाँ तो यह बताया है कि मनुष्य शरीर केवल हाड़ माँस का पुतला ही नहीं है उसमें बड़ी-2 सूक्ष्म विद्युत शक्तियाँ भरी हुई हैं वे काम भी करती रहती हैं। यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से उनसे काम लेना न जानता हो तो वह बिजली अपने समीपवर्ती क्षेत्र में काम रहती है। सत्संग और कुसंग का फल प्रसिद्ध है। अधिक विद्युत शक्ति वाले का प्रभाव कम शक्ति वाले पर पड़ता है कमजोर तबियत का वाला आदमी बलवान प्रकृति के बुरे आदमियों की संगति में रहे तो वह बुरा बन जायेगा। इसी प्रकार न्यून शक्ति वाला बुरी.. प्रकृति का मनुष्य यदि तेजस्वी सत्पुरुषों में रहे तो उसका भला बन जाना स्वाभाविक है ऋषि मुनियों के आश्रमों में सिंह भी कुत्ते की तरह बैठे रहते हैं। वे अपनी हिंसा वृत्ति भूल जाते हैं। ऋषियों के शरीर से निकलते रहने वाले अहिंसक तेज का ही यह प्रभाव है।

नजर लगने से बच्चों का बीमार हो जाना या हसरत भरी निगाह से देखे जाने पर मकान, पशुओं का दूध, तथा अन्य अनोखी चीजों का पदभ्रंश हो जाना इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य की भावनाएं दूसरों पर क्या प्रभाव डाल सकती हैं। सताये हुए की ‘हाय’ सताने वाले को ले बैठती है। सत्पुरुषों के आशीर्वाद से लोग फलते फूलते उन्नति करते और कठिनाईयों से पार हो जाते है। कर्मों के आयोजन में साक्षी रहे मकान, वस्त्र, पदार्थ आदि का उपयोग करने से वैसे ही कुविचार उसका उपयोग करने वाले पर आक्रमण करते हैं। निकट रहने वाले के ऊपर एक बीमार की बीमारी दूसरे स्वस्थ व्यक्ति पर हमला कर देती है। इस प्रकार की बातों से पता चलता है कि मनुष्य में रहने वाली बिजली प्रायः अपने निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रभाव डालती रहती है। मैस्मरेजम विद्या जानने वाले मनुष्य इस बिजली के द्वारा दूसरों को बेहोश कर देते हैं, उन्हें अपना वशवर्ती बना लेते हैं, उनके मस्तिष्क पर अपना अधिकार कर लेते हैं तथा अनेक आश्चर्यजनक दिखाते हैं।

इसी शारीरिक विद्युत का चतुर प्रयोक्ता, उससे अनेक कष्ट साध्य रोगियों को अच्छा कर सकता है। अपनी स्वस्थ प्राण शक्ति को रोगी के शरीर में प्रवेश करके उसे उसी प्रकार नव जीवन दे सकता है जैसे स्वस्थ मनुष्य का खून पिचकारी द्वारा निर्बल या रोगी के शरीर में पहुँचा दिया जाये तो वह शीघ्र स्वस्थ हो जाता है। कई बार ऐसा भी हुआ कि किसी आत्मविद्या जानने वाले ने अपनी आयु का एक भाग किसी मृत्यु मुख में पहुँचे हुए रोगी को दान किया है और वह स्वयं उतने वर्ष कम जीकर, उस मृत्यु मुख में जाने वाले व्यक्ति को उतने वर्ष अधिक जीवन धारण कराने में समर्थ किया है। इसी प्रकार अपना तप, तेज, एवं आत्मबल किन्हीं विशेष प्रिय शिष्यों के शरीर में प्रवेश करके उसकी आत्मिक शक्तियों का जागरण करा देने में कई गुरु समर्थ होते हैं। कुँडलिनी जागरण की साधना अत्यन्त कष्ट साध्य और समय साध्य हैं पर ऐसे कई गुरु होते हैं जो शिष्य के सिर पर हाथ रखकर कुँडलिनी शक्ति को जागृत करा देते हैं। वे अपनी शक्ति के द्वारा षट्चक्रों का, सूक्ष्म ग्रन्थियों का तथा कुँडलिनी का जागरण हो जाता है। ऐसे जागरणों में तत्काल तो पूर्ण सफलता प्रतीत हो जाती पर यदि शिष्य की मनोभूमि बलवान एवं स्थिर हुई तो ही वह सफलता टिकती है, अन्यथा वह धीरे-धीरे अल्प काल में ही समाप्त हो जाती है। जो, हो गुरु की शक्ति अपना चमत्कार तो दिखा ही देती है।

पतिव्रत और पत्नीव्रत का भारतीय समाज में इतना अधिक महत्व इसी विज्ञान के आधार पर दिया गया है। पाश्चात्य सभ्यता के प्रभावित व्यक्ति अक्सर ऐसा कहते सुने जाते हैं कि = “काम सेवन स्वेच्छा सहयोग है। जैसे दो व्यक्ति आपस में शरीर को तेल मालिश करके या थके अंगों को दबा दबाकर एक दूसरे को प्रसन्न करते हैं और उसमें किसी प्रकार का पाप नहीं होता इसी प्रकार मूत्रेन्द्रियों की खुजली को स्त्री पुरुष आपसी सहयोग से मिटाकर प्रसन्नता लाभ करें तो इसमें क्या दोष है स्त्री पुरुष का जोड़ा कोई जन्म से तो होता नहीं, इसलिए वह ईश्वर दत्त तो है नहीं । जब एक साथी को मैथुन के लिए नियुक्त कर लेने का अपने को अधिकार है तो अनेकों को नियुक्त कर लेने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए? जब अनेक सुन्दर-2 फल, फूल, वाहन, वस्त्र, खाद्य, वाद्य, मनोरंजन आदि का उपयोग करके स्वाद परिवर्तन का लाभ उठाया जाना निन्दनीय नहीं है तो अनेक साथियों के सहयोग से काम तृप्ति के स्वाद परिवर्तन करते रहने में क्या हर्ज है?”

उपरोक्त दलील स्थूल दृष्टि से चाहे कैसी ही आकर्षक प्रतीत क्यों न हो पर उसका थोथापन शरीर विद्युत विद्या के आधार पर स्पष्ट प्रकट हो जाता है। जननेंद्रियां शरीर का सबसे अधिक सूक्ष्म, संवेदन शील एवं प्राणपूर्ण भाग हैं, एक नया प्राणी उत्पन्न कर देने तक की जीवनी शक्ति उनमें निवास करती है। मस्तिष्क और जननेन्द्रिय यह दो ही प्राण केन्द्र हैं। इनके आधार पर दो प्राणी आपस में इतने घनिष्ठ हो जाते है कि उनका संबंध छुड़ाये नहीं छूटता। पति पत्नी में जैसा आतुर, जैसा उल्लासपूर्ण, जैसा सजीव प्रेम होता है वैसा अन्य संबंधियों में नहीं होता, कारण यह है कि जननेन्द्रियों के संस्पर्श के आधार पर उन दोनों में प्राण शक्ति का आपसी आदान-प्रदान ऐसा महत्वपूर्ण हुआ है कि एक दूसरे की आत्मा के साथ लिपट जाते है। यह आत्मिक सम्मेलन एक ही साथी के साथ उचित रूप से हो सकता है। यदि यह अनेकों के साथ हो तो अनेकों की विद्युत शक्तियों का संमिश्रण होगा यही कारण है कि व्यभिचारी स्त्री पुरुष अपने जोड़े के प्रति वफादार नहीं रह सकते। वेश्याएं किसी की सगी नहीं होती, क्योंकि अनेकों दिशाओं में उनकी वफादारी बटी रहती है। दूसरी बात यह कि शारीरिक विद्युत शक्तियों का व्यभिचार केन्द्र द्वारा, व्यभिचारियों में आदान प्रदान होता रहता है। रोगी, कुबुद्धि, दुष्ट प्रकृति के व्यभिचारियों की शारीरिक और मानसिक छूत अन्य सहवास करने वालों का लगे बिना रह नहीं सकती।

द्रौपदी का उदाहरण एक नई समस्या है, उस पर दूसरे पहलू से विचार करना होगा। उत्तरीय भारत के पर्वतीय प्रदेशों में भी बहुगति प्रथा प्रचलित है और सहस्रों वर्ष से चली आ रही है। वहाँ सब भाइयों की एक सम्मिलित पत्नी होती है। संतानें बड़े पिता जी, मझले पिता जी, छोटे पिताजी आदि कह कर संबोधित करती हैं। सहस्रों वर्षों के परीक्षण के पश्चात् भी यह प्रथा कोई अशान्ति, द्वेष, मनोमालिन्य एवं दाम्पत्ति वफादारी में कमी का कारण सिद्ध नहीं हुई। इसका कारण यही है कि एक कुटुम्ब के एक प्रकृति अथवा स्वार्थ के भाई एक समान गुण कर्म स्वभाव के होते हैं और दुराव का भाव लेशमात्र भी न रख कर प्रकट रूप से, शुद्ध मन से, बहुपति प्रथा को निर्दोष एवं स्वाभाविक मानते हैं उनके पारस्परिक स्वार्थ आपस में टकराते नहीं, पत्नी की वफादारी विभाजित नहीं होती। इन कारणों से बहुपति प्रथा भी पतिव्रत एवं सती धर्म का एक भाग रही है। पर यह उदाहरण सबके लिए लागू नहीं हो सकता। इस प्रथा का उदाहरण देकर व्यभिचार का समर्थन ठीक नहीं। यह तो विशेष परिवारों की विशेष परम्परा है। साधारणतः व्यभिचार शरीर विद्युत विद्या के आधार पर हानिकर और निन्दनीय ही ठहरता है।

उपरोक्त पंक्तियों से पाठक मनुष्य शरीर की बिजली से होने वाले हानि लाभों के सम्बन्ध में छुआछूत की, चौके में एकान्त में स्वच्छता-पूर्वक भोजन करने की, उच्च वर्ग के लोगों से भोजन बनवाने की प्रथाएं इसी आधार पर चली हैं ताकि अवाँछनीय लोगों की शारीरिक विद्युत अपने ऊपर कोई बुरे प्रभाव न डाल सके। सत्संगति का महत्व भी इसीलिए है कि उससे अच्छे लोगों का तेज अपने ऊपर अच्छा प्रभाव डालता है। सत्संग एक हलका सा शक्तिपात है। योग मार्ग में रुचि रखने वाले जानते हैं कि अधिक आत्म शक्ति सम्पन्न व्यक्ति अपनी शक्ति का थोड़ा सा भाग किसी प्रिय शिष्य को बिजली के तार छूने के समान हलका या भारी झटका लगता है, और कई बार वह मूर्छित तक हो जाता है। यह विशिष्ट शक्तिपात की बात हुई। प्रभावशाली व्यक्तियों के संसर्ग में हलका हलका शक्तिपात प्रतिक्षण होता रहता है। और उससे आत्मोन्नति का मार्ग बड़ा सरल हो जाता है। मनुष्य शरीर की विद्युत असाधारण शक्तिशाली है। अपने पूर्वजों की भाँति जब हम उसका उपयोग जान लेंगे तो उससे भारी लाभ उठा सकेंगे।


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