गो माता की रक्षा होनी ही चाहिए।

April 1950

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(श्री॰ मनोहर दयालजी वर्मा जबलपुर)

महर्षि जमदग्नि के पास एक कामधेनु थी जिसको कीर्ति ने लेना चाहा तथा महर्षि जी का वध कर दिया। इस बात पर से जमदग्नि के पुत्र परशुराम जी ने महावली कीर्ति वीर्य की सेना का संहार किया एवं क्षत्रियों के नाश पर तुल गये। इस उपयुक्त वर्णन से सिद्ध होता है कि गौ के कारण आर्य महर्षियों और ब्राह्मणों को घोर युद्ध करना पड़ा था। यह वार्ता गोरक्षा के महत्व को भली भाँति प्रकट करती है।

रामचन्द्रजी के गुरु श्री वशिष्ठ जी के पास एक कामधेनु गौ थी, राजर्षि विश्वामित्र द्वारा महर्षिजी की कामधेनु को बल पूर्वक हड़पने का प्रयत्न किया गया परन्तु महर्षि के क्रोध से एक भयंकर सेना ने उद्भव होकर विश्वामित्र राजा की सेना को परास्त किया। इसमें सिद्ध है कि गौ को छीनने पर घोर युद्ध होता था।

महाराज दलीप के कोई सन्तान न थी । राजा तथा रानी गुरु वशिष्ठ की आशा से गायों को वन में चराते थे। एक बार हिंसक सिंह ने गाय पर आक्रमण किया। सिंह भूखा था तथा माँसाहार से ही उसकी क्षुधा शान्त होती है अतएव राजा ने स्वयं सामने होकर उनके माँस को खाकर सिंह से भूख शान्त का निवेदन किया। हिंसक पशु भी पसीजा तथा गौ भक्ति को देखकर पीछे पैर लौट गया। इससे सिद्ध है कि भारतीय सम्राट गौ रक्षा हेतु अपने प्राण तक समर्पण करने को तैयार रहते थे।

भारतवर्ष में गुरु नानक, गोविन्द सिंह, बन्दा वैरागी, शिवाजी, राणाप्रताप विशेष रूप से गौ भक्त हुये हैं। सम्राट अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में भी गोघात करने वाला प्राणी दण्ड का भागी होता था।

वेदों में गौ के लिये 171 जगह “श्रधन्यों” शब्द आया है जिसका अर्थ = न मारने योग्य है। चारों वेदों में सैकड़ों मन्त्र गौओं की महिमा के आये हैं यथाः= पशुन् पाहि, गाय महिसीः अजाँ मा हिन्सीः अर्वि माहिन्सीः इमंमाहिन्सी र्द्धपाँद पशु, मा हिग्सीरेक सफं पशु। अर्थात् पशुओं की रक्षा करो। गाय, बकरी भेड़ को न मारो, मनुष्य और द्वपिद पक्षिओं को मत मारो। एक खुर वाले घोड़े गधे को न मारो पुनः अथर्ववेद- 9/6/9 में लिखा है कि एतइदवाउ स्वादपि य दघि गंवक्षीरं व माँस व । तदेव नाश्नीयात॥ अर्थात् गाय का दूध, दधि ओर घी खाने योग्य है। माँस नहीं। ऋग्वेद 8/4/18 में हैं कि जो राक्षस, मनुष्य का घोड़े का और गाय का माँस खाता हो तथा दूध की चोरी करता हो उसके सिर को कुचल देना चाहिए। ऋग्वेद 8/101/15 “के मन्त्र माता रुद्राणाँ । दुहिता वसूना” में गो को मारने की मनाही की गई है। अथर्ववेद 101/29 में= अमा गो हत्या वे मीसा कृत्ये मा नो गामश्वं पुरुष वर्धाः अर्थात् हे क्रूर स्त्री तू गौ, घोड़े पुरुष की हत्या न कर । यजुर्वेद ग॰ 30 मन्त्र 18 में है कि अन्तदाय गौ घात गौ घाती का प्राणदण्ड दो।

भगवान रामचन्द्र जी के अवतार के कारणों पर प्रकाश डालते हुए रामायण में गोस्वामी तुलसीदास जी कहा है-विप्र धेनु, सुर सन्त हित लीन्ह मनुज अवतार।

देश हित देशोन्नति, देशवृद्धि तथा देश को उच्च बनाने के हेतु गो रक्षा को महत्व देना अत्यावश्यक है। गौ हमारे देश की सम्पत्ति है इसी के द्वारा हमें अन्न तथा दूध की प्राप्ति होती है। भारत माता को स्वाधीन करा लेने के उपरान्त जनता का ध्यान अब गोमाता के प्राण बचाने के लिए भी जाना आवश्यक है। इस धार्मिक देश के स्वतंत्र होने पर भी गौ वध होना एक कलंक की बात है।


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