भगवान को किससे देखें?

September 1948

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री रूपलाल जी चोरल)

भगवान हैं और दिखाई देते हैं यह एक सर्व मान्य बात है। अनेकों ने भगवान के दर्शन किये हैं इसकी गाथायें भी इतिहास और पुराणों द्वारा जानी जा सकती है लेकिन अभी तक हमें ऐसे किसी भी व्यक्ति के दर्शन नहीं हुए जो यह बतला सके कि हमने भगवान को देखा है।

साँसारिक वस्तुओं के साथ संपर्क स्थापित करने का साधन हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हैं-आँख, कान, नाक, जिह्वा तथा त्वचा द्वारा हम जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वह भौतिक ही होता है इस ज्ञान का सम्बन्ध परमात्मा के साथ नहीं रहता। जब कि कहा यह जाता है कि भगवान हर जगह है, हर वस्तु में है तब फिर जिन चीजों का हम अपने भौतिक उपकरणों द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं क्यों नहीं उनके द्वारा भगवान का साक्षात्कार कर पाते। इसका अर्थ है भगवान को देखने की जो विशिष्ट इन्द्रिय है वह अभी तक मूर्छित पड़ी हुई है और लोगों को उसको जाग्रत करने का अनुभव नहीं है। अथवा उसकी उन्हें जानकारी नहीं है।

यह सभी जानते हैं कि आँख से रूप, कान से शब्द, त्वचा से स्पर्श, नासिका से गन्ध एवं जिह्वा से स्वाद का साक्षात्कार होता है। पर भगवान रूप, रस, गन्ध, शब्द, स्पर्श से अतीत है इसलिए ये इंद्रियां भगवान का साक्षात्कार करने में समर्थ नहीं हो सकती। इन्द्रियों से अतीत मन-बुद्धि चित्त और अहंकार है, पर इनसे भी भगवान को जाना या समझा नहीं जा सकता। तब फिर कौन सा तत्व ऐसा है जिसके, द्वारा भगवान को समझा जा सकता है।

यह आत्मा जो कि जीव रुपं से इस शरीर में प्रविष्ट है, परमात्मा का ही तो अंश है। कर्म और संस्कारों के कारण वासना, द्वारा इस पर शरीर रूपी पंच भौतिक खोल चढ़ा हुआ है। यही कारण है कि उसकी अपरिमेय शक्तियाँ, परिमित हो गई हैं और परिमित शक्ति होने के कारण अपरिमेय शक्तियों को समझना तथा जानना किसी भी रूप में संभव नहीं हो सकता, इसलिए अपरिमेय को जानने के लिए परिमेय बनी रहने वाली अपरिमेय शक्ति को बन्धन हीन करना पड़ता है।

असीम को सीमित करने का कारण वासना है। वासना कर्म समूह से आरंभ होती है। कर्म जहाँ बन्धन के कारण हैं वहाँ वे ही बन्धन मुक्त भी करते हैं। इसलिए जो आत्मा जीवात्मा की शक्ल लेकर सीमित हो गया है और जिसके द्वारा असीम ससीम हो गया है वह एक मात्र वासना जाल है। कर्म शुद्धि से वासना जाल छिन्न भिन्न किया जाता है और धर्म शुद्धि के लिए बुद्धि शुद्धि, मन शुद्धि, तथा शरीर शुद्धि, की आवश्यकता होती है। योग दर्शन के यम नियम वासनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए तैयारी कराते हैं।

वासना मुक्त जीवात्मा परमात्मा को देखने की शक्ति पाता है। इसलिए जब तक व्यक्ति वासना मुक्त नहीं हो जाता तब तक वह परमात्मा को देख ही नहीं सकता। वह सिर्फ वासना और वासनाओं के विभिन्न रूप, रंग आकार प्रकार को ही देखता है। अतः परमात्मा को देखने के लिए जीवात्मा रूप मूलतत्व को परिष्कृत कर लेने की आवश्यकता है अर्थात् वासना से मुक्ति पाने की साधना करना चाहिए। हमेशा स्मरण रखने की बात यही है कि जब तक वासना रहेगी। भगवान दिखाई नहीं देंगे। जिन्हें भगवान देखते हैं उन्हें अपनी वासनाएं दूर करनी चाहिए।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118