पशुओं से भी शिक्षा मिलती है

September 1948

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(श्री द्वारिकाप्रसाद कटारे-कानपुर)

एक दिन महाराजा चन्द्रगुप्त के साथ आचार्य प्रवर चाणक्य की चर्चा हो रही थी। आचार्य चाणक्य कह रहे थे कि पशुओं में भी बड़े बड़े गुण पाये जाते हैं, जो आंखें खुली रखकर इस विश्व पाठशाला में उनसे भी शिक्षा ग्रहण करते हैं, वे विजयी होते हैं।

महाराजा चन्द्रगुप्त ने पूछा- आर्य, किस-2 पशु में कौन-कौन गुण हैं ?

चाणक्य ने कहा-सिंह को ही देखिये। चाहे छोटा काम हो चाहे बड़ा, वह प्रत्येक कार्य को धैर्य एवं आत्मविश्वास के साथ आरंभ करता है और उसकी पूर्ति में अपनी सारी शक्ति लगा देता है।

बगुला-बड़ा एकाग्रता प्रेमी है। वह अपनी शिकार प्राप्त करने के लिए कितनी तन्मय का उपयोग करता है। किस तरह एक पाँव पर खड़ा रहता है, और शिकार देखते ही कितनी तत्परता से उसे गटक लेता है।

मुर्गा-युद्ध प्रिय पक्षी है, विपक्षी से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहता है, ठीक समय पर जागता है अपने भाइयों को उनका हिस्सा देकर उसके बाद स्वयं लेता है और स्वयं उद्योग करके अपना भोजन जुटाता है।

कौआ-हमेशा सावधान रहता है, अपने जोड़े को साथ रखता है, समय समय पर भोजन सामग्री इकट्ठी करके रखता है, हमेशा सुरक्षित रहने की कोशिश करता है और किसी पर विश्वास नहीं करता।

कुत्ता-बहुत खाने की शक्ति रखते हुए भी थोड़े में ही सन्तुष्ट हो जाता है, गहरी नींद में सोते रहने पर भी झट जग जाता है।

स्वामी भक्ति में उसके मुकाबले कोई ठहर नहीं सकता, और वीरता में भी वह किसी से दबता नहीं है।

गधा-धैर्य की मूर्ति है, थक जायगा फिर भी धैर्यता पूर्वक बोझा ढोता रहेगा, सर्दी गर्मी समान रूप से सहेगा और खाने के लिए जो कुछ मिल जायेगा उसी में सन्तुष्ट रहेगा।

महाराज, यदि इन बीस गुणों को ही मनुष्य अपने आचरण में ले आवे तो दुःख उसके पास भी नहीं फटक सकता।

राजा आचार्य की बात सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने स्वीकार किया कि जो गुण पशुओं ने दृढ़ता से धारण कर रखे है उन्हें यदि मनुष्य ग्रहण करे तो उसका कल्याण हो सकता है।

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