समय, शक्ति एवं साधन।

October 1948

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(श्री. अमरचन्द जी नाहटा, बीकानेर)

किसी भी कार्य की सफलता समय शक्ति एवं साधन पर अवलम्बित है। इस साधन त्रिपुटी के बिना साध्य प्राप्ति असम्भव है। साधारणतया सभी व्यक्तियों को हम वही कहते पाते हैं, कि क्या करें, अमुक काम करने की इच्छा तो है पर अवकाश नहीं मिलता, अथवा शक्ति और साधनों की कमी है। पर वास्तव में विचार करके देखा जाय तो यह बात बहुत कुछ अंशों से सही नहीं है। कार्य न हो सकने का कारण समय, शक्ति और साधनों का अभाव उतना नहीं है, जितनी तीव्र इच्छा की कमी। उत्कृष्ट अभिलाषा और पूरी लगन हो तो समय मिल ही जायेगा, साधन भी इकट्ठे हो ही जायेंगे और शक्ति का स्रोत भी फूट निकलेगा। हम जिनकी कमी महसूस कर रहे हैं वे हमसे दूर नहीं है पर दूर दिखाई देने का कारण है उनका दुरुपयोग। अर्थात् हम प्राप्त साधन, शक्ति एवं समय का सदुपयोग करना नहीं जानते। यदि समय ही नहीं है तो कुत्सित वासनाओं एवं व्यर्थ के प्रपंचों और बुरे कामों को करने के लिये तीनों चीजें कहाँ से आ जाती है? इस पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने से हमारी गलत धारणा का सहज ही में पता चल जायेगा।

पग-पग पर हम अनुभव करते हैं कि जिस काम को हम सबसे अधिक आवश्यक समझते हैं, वही पहले हो जाता है। किसी भी कार्य को करने को “समय नहीं है”, कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा समय अन्य उपयोगी या आवश्यक कार्य (जिसे भी हमने मान रखा हो) में लगा हुआ है। यदि हम उसे गौड़ करके उसके स्थान पर, जिसे करना चाहते हैं, उसे प्रधान मान लेंगे तो वही समय पहले काम से निकल कर दूसरे के लिए लग जायेगा। उदाहरणार्थ हमारे सामने दो काम करने के लिए साथ ही उपस्थित हैं, जैसे भोजन करना ओर बीकानेर जाने के लिए गाड़ी पकड़ना। हमारी बुद्धि इनमें से अधिक आवश्यक कार्य पर विचार कर एक को पहले ग्रहण करेगी। मान लीजिये, हमें यह अनुभव हुआ कि बीकानेर जाना ज्यादा जरूरी है और भोजन करने में समय देने पर गाड़ी न मिलेगी, तो हम भूखे ही रहकर समय पर स्टेशन पहुँचने के लिये तैयार हो जायेंगे। यदि हमें इसके विपरीत भोजन करना आवश्यक प्रतीत हुआ तो चट से भोजन करने बैठ जायेंगे, चाहे समय पर स्टेशन न पहुँचने पर गाड़ी छूट ही क्यों न जाये। यही बात अन्य सभी कार्यों के विषय में समझनी चाहिये। इससे हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि मौखिक रूप में चाहे हम किसी कार्य को अधिक आवश्यक बतलाते हुये उसके लिये समयाभाव कह दें, पर वास्तव में अनुभव यही होगा कि उसके लिये समय न मिलने का प्रधान कारण यह है कि उससे अधिक दूसरे काम को आवश्यक मानकर उसके लिये हमने अपना समय दे रखा है। समय तो है, उतना है ही, उसे किस काम में लगाना है, किस में नहीं, यह हमारी मनोवृत्ति पर निर्भर है।

अपने समय जीवन-काल पर जरा गहराई से विचार करें तो पता चलेगा कि समय तो हमारे पास बहुत है। लेकिन हम उसका ठीक से उपयोग नहीं कर पाते। मान लीजिये हमारी आयु 50 वर्ष की है। उसके दिन 15000 और उसके घण्टे चार लाख बत्तीस हजार होते हैं। मिनट बनाइये दो करोड़ उनसठ लाख बीस हजार होंगे अब प्रत्येक कार्य के लिए कितना समय चाहिये, इसका हिसाब लगाइये। आपको यह स्पष्ट अनुभव हुए बिना नहीं रहेगा कि समय हमारे पास कम नहीं है। अतः समय की कमी का बहाना छोड़ देना ही उचित है।

दूसरी दृष्टि से विचार करें तो प्रतीत होगा कि व्यर्थ जाते हुए समय पर कड़ी निगरानी रखना आवश्यक है। जिन कामों में जितना समय लग रहा है, उससे कम समय में वह हो सकता है या नहीं? सोचिये और जितने भी कम समय में वह हो सके कर डालने का प्रयत्न कीजिये। इससे आपको बहुत बड़ी सफलता मिलेगी। मान लीजिये, आप सात घण्टे नींद लेते हैं, आधा घण्टे में खाते हैं, तथा पाँच घण्टे में स्नान करते हैं। इसी प्रकार से अन्य काम करते हैं। अब आप प्रयत्न करिये कि नींद में आधा घण्टे की बचत, खाने-स्नान करने में पाँच-चार मिनट की बचत हो, इसी तरह जिन सैकड़ों कामों में, बातों में, आपका सारा समय लग रहा है, प्रत्येक में से यथा संभव बचत करिये तो बहुत से समय की बचत करके आप उसे उस अच्छे काम में लगा सकेंगे जिसे करने के लिए आपको समय ही नहीं मिल रहा था।

विचार करने पर बहुत से कार्य तो आपको आवश्यक प्रतीत होने लगेंगे, क्योंकि जब अमुक व्यक्ति के अमुक काम नहीं करने पर भी काम चल जाता है तो आपका क्यों नहीं चलेगा? आप जो वैसा मान रहे थे आपकी भ्रान्त धारणा ही का परिणाम नजर आयेगा। आप स्वयं अन्य जरूरी काम उपस्थित होने पर उसे बिना किये काम चला लेते हैं तब उस समय भी चल सकता है। इस तरह जिनके न करने या कम करने से अधिक सुविधा उपस्थित न हो, उन्हें और उसके बदले कार्यक्रम में अन्य कुछ कार्यों को नोट कर लीजिये। इसी प्रकार बुरी आदतों, कार्यों, व्यर्थ की बातें बन्द करने में जुट जाइये। थोड़े ही समय में आपके समय की कमी का प्रश्न हल हो जाएगा।

अब साधनों को लीजिये विश्व में साधन सर्वत्र बिखरे पड़े हैं। पद पद पर साधनों का ढेर लगा हुआ है, पर अपनी अज्ञानतावश हम उनसे लाभ नहीं उठा रहे हैं। जिसे काम करना है वह खोज में लग जायेगा और इधर उधर साधनों को खोज निकालेगा व जुटा लेगा। आज यदि कम साधन मिले तो कोई बात नहीं, प्रयत्न चालू रहने पर कल और मिल जायेंगे। कार्य करने वालों को साधन नहीं मिलेंगे, हम बात को आप मन से ही हटा दीजिये। आत्म-विश्वास को बढ़ाइये, साधन मिलके रहेंगे, बहुत से मनुष्य “इतनी सामग्री जुट जाय तभी काम शुरू करेंगे”, यह निश्चय कर बैठते हैं, शक्ति को लगाते नहीं। अतः साधन पूर्ण नहीं होते और कार्य हो नहीं पाता। मेरी राय में जितने साधन प्राप्त हों उसी के अनुसार काम करना प्रारम्भ कर दीजिये। आपके पास सौ रु0 की पूँजी है तो उसी के अनुरूप कार्य प्रारम्भ कर दीजिए। हजार के लिये नहीं बैठे न रहिये। काम करते रहेंगे, सफलता मिलती रहेगी। साधन जुटते रहेंगे। सच्ची लगन है तो सफलता अवश्यंभावी है। हताश मत होइये, घबरा कर काम छोड़िये मत, प्रयत्न करते रहिये। पूरे न सही तो जितने भी साधनों से काम प्रारम्भ करेंगे उतना फल तो कहीं नहीं जायगा, अन्यथा अधिक के पीछे थोड़ा भी खो बैठेंगे और इसके लिये आपको जीवनभर पश्चाताप करना पड़ेगा।

कुछ साधन बने-बनाये नहीं होते, तैयार करने पड़ते हैं और उन्हें हम उपेक्षा वश खो बैठते हैं। कुछ का उपयोग कर नहीं पाते। कुछ को पहिचानते भी नहीं। जहाँ जहाँ जो भी गलती हो, सुधारिये। सच्चे खोजी के लिए साधन दुर्लभ नहीं हैं।

सच तो यह है कि समय की भाँति साधनों का भी हम बहुत दुरुपयोग कर रहे हैं। मनुष्यों का कहना है कि जो साधन पाप के हैं, वे ही धर्म के भी बन सकते हैं। साधनों का अच्छे या बुरे रूप में उपयोग बहुत कुछ हमारी विचारधारा पर निर्भर है। धन को ही ले लीजिये। इसका उपयोग किया जाय तो बहुत कुछ उपकार कर सकते हैं और भोग विलास एवं दूसरों को कष्ट देने के लिए लगावें तो उससे बहुत अनिष्ट हो सकता है। अतः साधनों के सदुपयोग करने की कला भी ध्यान-पूर्वक सीखनी आवश्यक है। गुण और दोष हर चीज में मिलेंगे। हमारे में गुण-ग्रहण की दृष्टि होगी तो उसकी अच्छाइयों से लाभ उठायेंगे। दोषग्राही दृष्टि होगी तो दोष भागी बन जायेंगे। वास्तव में साधन अपने आप में अच्छे-बुरे कुछ भी नहीं हैं, हम उनका जैसे उपयोग करना चाहें कर सकते हैं।

एक ही वस्तु को प्राप्त कर एक सुखी होता है और एक दुखी। दूसरों की बात जाने दीजिये। अपने जीवन में ही कभी किसी चीज को प्राप्त कर हम आनन्द में फूले नहीं समाते और परिस्थिति की भिन्नता से वही वस्तु हमें अन्य समय में जहर सी लगने लगती है। अतः साधनों के सदुपयोग के सम्बन्ध में विवेक से काम लेना चाहिए। एक ही साधन पर अड़े न रहकर अपना काम दूसरों से निकल सकता हो तो उससे लाभ उठाने में चूकना नहीं चाहिए। एकान्त आग्रह न रख कर अनेकान्त दृष्टि से काम लेना चाहिए।

इसी प्रकार शक्ति पर भी विचार करिये। वास्तव में शक्ति कहीं बाहर से नहीं आती। समय और साधन तो बाह्य साधन है, पर शक्ति सब का मूल कारण है। उसका अक्षय भण्डार तो सब में भरा पड़ा है। पर उपेक्षावश हम उसे भूल बैठे हैं। वह अन्दर दबी पड़ी है। अतः साधनों के द्वारा उसका विकास करना है, उसे प्रकाश में लाना है। उसकी कमी का अनुभव भी उस शक्ति के अन्य कामों में लगे रहने के कारण ही है। वास्तव में हमने अपनी शक्ति विविध कामों में बिखेर रखी है। उसे बटोर कर संचय करने की परमावश्यकता है। अनावश्यक एवं बुरे कार्यों में शक्ति का जो अपव्यय हो रहा है, उसे मिटाने पर पिल जाना पड़ेगा और आवश्यक कार्य में लगाकर अभ्यास के बल पर विकास करना होगा। आत्म-विश्वास एवं साहस की अभिवृद्धि करनी होगी। लुप्तप्राय एवं सुप्त चेतना को जागृत करना होगा।

संक्षेप में कहने का तात्पर्य यही है कि शक्ति संचय कीजिये, प्राप्त साधनों के अनुसार ही आगे बढ़िये, समय व्यर्थ खोने से बचाइये, सफलता आपकी मुट्ठी में है।

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