‘आज’ ही कर लें।

October 1948

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आपने उन्नति की योजनाएं बनाई हैं, आपके मन में शुभ विचार क्रियात्मक भावनाएं उदित हुई हैं। आप सोचते हैं “कल से इन योजनाओं के अनुसार कार्य प्रारम्भ करेंगे।”

और यह “कल” नहीं आता। कल आप सोचते हैं, परसों करेंगे, या नरसों। और फिर यह कहने लगते हैं “फिर देखा जायगा”। इस प्रकार आप शुभ विचारों और नई योजनाओं को निरन्तर टालते जाते हैं। कल, परसों, पन्द्रह दिन पश्चात्, एक मास बाद, धीरे धीरे वे शुभ भावनाएं मनः जगत् से बिल्कुल विलुप्त हो जाती हैं।

टालने की आदत मानव-मस्तिष्क की एक बड़ी कमजोरी है। अनेक बार उत्कृष्ट व्यक्ति भी इसी आदत से लाचार होकर पवित्र कार्य नहीं कर पाते। उनके दान, यज्ञ, सद्कर्म, पूजा, पाठ सद्ग्रंथावलोकन, यात्रा सत्संग- सब किसी अगले दिन की प्रतीक्षा देखा करते हैं। वास्तव में सच्ची बात तो यह है कि उनमें आलस्य की मात्रा अत्यधिक होती है। वह उनकी कार्य शक्ति को पंगु कर देती है। पुनः पुनः ही टालने की आदत दुहराने से यह उनके स्वभाव का एक अंग बन जाता है। जीवन पर्यन्त वे इसके कारण दुःख उठाते हैं। हमारी दीनता, दुःख, निम्न स्थिति का एक यह भी कारण हो सकता है।

उन्नति का रहस्य :- मानसशास्त्र का यह अटल सिद्धान्त है कि मनुष्य मन की सबल भावना से अपने तन, मन, धन, शरीर, आत्मा तथा शोचनीय स्थिति को स्वयं बदल सकता है। उसके उन्नति के मार्ग की चाबी यह मन की सबल भावना ही है। जो व्यक्ति यह जानता है कि उसके पास सब कुछ एकत्र कर दिया गया है, और उसकी चाबी भी उसी को दे दी गयी है वह अपने मस्तिष्क के उन असंख्य जीवाणुओं को जाग्रत करता है, जिसमें असाधारण सामर्थ्य भरा हुआ है। मन की सबल भावना को जाग्रत करना उन्नति का रहस्य है।

टालने की आदत से मुक्त होने के लिए मनुष्य को मन की सबल भावना से काम लेना चाहिए। आप मन में यह दृढ़ विचार कीजिये कि आप में पूरी योग्यताएं हैं, बुद्धि अत्यन्त कुशाग्र है, योग्यता भरी पड़ी है, आप प्रत्येक कार्य करने के लिए प्रस्तुत रहते हैं, आलस्य में आप संभव का अपव्यय नहीं करते वरन् तुरन्त काम को पूरा करने में जुट जाते है। आप आलस्य में डालकर अपने मस्तिष्क के जीवाणुओं को मृतप्राय नहीं करना चाहते वरन् उनका अधिकाधिक उपयोग कर उन्हें और सशक्त बनाते हैं।

जिस प्रकार शारीरिक व्यायाम से शरीर बलवान बनता है, उसी प्रकार मानसिक व्यायाम से मस्तिष्क के अणुओं की शक्तियाँ बढ़ाई जा सकती हैं। तर्कशक्ति, तुलनाशक्ति, स्मरण और लेखन शक्ति, मनन, उद्योग, दृढ़ता प्रतिभा इत्यादि सभी शक्तियाँ मस्तिष्क के निरन्तर उपयोग से बढ़ाई जा सकती है।

आप ज्यों ज्यों अपने मस्तिष्क से अधिक कार्य लेते हैं, तो उसी भाग में रक्त का संचार बढ़ जाता है। रक्त के संचार से गति के अनुसार वह भाग पुष्ट होता है। उसमें अणुओं की संख्या में भी वृद्धि होती है। शरीर के किसी भी भाग में मन को एकाग्र करने से रक्त की गति बढ़ती है।

आलस्य का कुत्सित प्रभाव- दूसरी ओर आलस्य लीजिये। जब आप मन या शरीर को आलस्य में डाले रहते हैं तो उसकी तेजी मारी जाती है। वह अपनी उत्पादक शक्ति से विमुख हो जाता है। रुधिर की गति क्षीण हो जाती है, मानसिक शक्तियाँ अपना काम धीर धीरे करने लग जाती हैं। तर्क शक्ति तो उपयोग और काम में लाने के बिना मृतप्राय हो जाता है। स्मरण शक्ति उद्योग से बढ़ती है, पर मन को ढीलाढाला डाले रखने से क्षीण होती है। लेखन शक्ति का यह नियम है कि रोज कुछ न कुछ लिखा जाय लेखन कार्य को किसी भी दिन न छोड़ा जाय अभ्यास से ही इसका विकास संगत है। दृढ़ता का अभ्यास धीरे धीरे होता है। अब आप सोचिये, कि यदि आप तर्क, तुलना, दृढ़ता, प्रतिभा इत्यादि को जरा भी ढीलढाल देंगे, तो अपने साथ कैसा भारी अन्याय करेंगे। आलस्य तथा मानसिक शक्तियों का अनुपयोग विनाश का कारण है, उनका उचित उपयोग, अभ्यास कार्य वृद्धि तथा उन्नति के उपाय हैं। अपनी प्रत्येक शक्ति से अधिक से अधिक कार्य कीजिये। जितना ही आप काम लेंगे, उतना ही आप उनकी शक्ति में वृद्धि करेंगे। जितना ही उन्हें आलस्य में डालेंगे, उतना ही पतन करेंगे-यह मनोविज्ञान का अटल नियम है।

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