जैसे असावधानी के साथ पकड़ा हुआ कुश हाथ को काट देता है वैसे ही अज्ञानी का लिया हुआ संन्यास उसे क्लेश के गर्त में डुबा देता है।
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जब तक पाप फल का परिपाक नहीं होता तब तक वह उसे मधु सा मधुर लगता है पर जब पाप का फल सामने आता है तो उसके कष्ट की सीमा नहीं रहती।
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न तो अपने लाभ की उपेक्षा करो और न दूसरे के लाभ में विघ्न डालो।
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जैसे धींवर आँकड़ा डालकर मछली मारता है वैसे ही पाप, मनुष्य को लोभ के फन्दे में डालकर मारता है।