(श्री स्वामी सत्यभक्त)
बीमारी होना शर्म की बात है क्योंकि इससे अपने असंयम का लापरवाही और कमजोरी का परिचय मिलता है, और ये तीनों ही बातें बुरी हैं। अभी अभी “हरिजन सेवक” में एक लेख पढ़ा, जिसमें मि0 बटलर की एक किताब का जिक्र था जिसमें अपने ढंग से नये संसार का चित्रण किया गया था। उसमें निर्देश है कि मरीजों को जेलखानों में और अपराधियों को दवाखानों में रक्खा जाता है। बीमार होना एक काफी बड़ा अपराध माना गया है।
अभी-2 बंगाल में गाँधीजी के साथी इधर उधर केन्द्र बनाकर बैठे हैं। उनमें से जो बीमार पड़ता है, उन्हें सहायता मिलने के बदले गाँधीजी की तरफ से फटकार मिलती है। वे प्रायः लिखा करते हैं-”जो बीमार पड़े, या तो वहीं रहकर अच्छे हो जायं या वहीं मौत का खतरा उठालें।” अर्थ यह कि हम सब घरेलू या कुदरती इलाज से संतुष्ट रहें अर्थात् हवा, जल, मिट्टी इत्यादि पाँच महाभूतों की सहायता से अपना काम चलावें।
बीमारी एक अपराध है, तथा आने पर हमें प्राकृतिक तरीके से उसका इलाज करना चाहिये। हजार में एकाध अपवाद ऐसे मिलेंगे जिनमें डाक्टरी चिकित्सा की जरूरत पड़ेगी या वायुमंडल आदि के कृत्रिम रूप में विषैला होने पर कोई विशेष बीमारी फैल जाय और विशेष इलाज करना पड़े, यह दूसरी बात है, परन्तु साधारण बीमारियाँ असंयम और लापरवाही से पैदा होती हैं और प्राकृतिक चिकित्सा से दूर हो जाती हैं।
छह वर्ष पहले जब मैं लम्बा बीमार पड़ा था, तब तेरह दिन तक भोजन बन्द रक्खा और गरम पानी तथा मौसमी नींबू का रस लिया और बिना चिकित्सा के अच्छा हो गया। अभी गतमास मई मैं बीमार पड़ा तो लंघनों से अच्छा हुआ।