बालक बन जाओ!

June 1947

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

[कुमारी भारती]

उपनिषद् के ऋषि ने कहा है कि मनुष्य को सच्चा विद्वान् और ज्ञानी बनना चाहिये, ज्ञानी होने के बाद मनुष्य को बालक बनने का अभ्यास करना चाहिए।

यदि ज्ञानी होने के बाद मनुष्य बालक की तरह सरल पवित्र और निर्द्वन्द्व नहीं हो सका तो समझना चाहिए ज्ञान परिपक्व नहीं हुआ।

तुम बालक बनो, बालक का आदर करना सीखो, बालक को समझना सीखो।

बालक देव-लोक से आया है। वह छल कपट और दुराव नहीं जानता, तुम उससे यह सब सीखो। परन्तु यह नहीं होता तुम तो इसके विपरीत बालक को अपनी बुराइयाँ सिखा सभ्य और शिष्ट बनाने का दम्भ कर रहे हों। जब बालक नंगा रहकर मट्टी में लोटकर प्रकृति संपर्क बनाए रखना चाहता है तब तुम उसे रुलाकर भी प्रकृति से परे रखकर अपने धनवान् होने का दम भरते हो। अपना यह रवैया बदलो, तुम बालक को ही अपना पथप्रदर्शक बना लो, कभी यह करके तो देखो।

तुम्हारे कुछ शत्रु हैं और कुछ मित्र हैं। तुम चाहते हो तुम्हारा बालक भी तुम्हारे शत्रु को अपना शत्रु और तुम्हारे मित्र को अपना मित्र माने, परन्तु बालक के लिए तो शत्रु और मित्र दोनों, बराबर हैं उसके लिए काले और गोरे का भेद नहीं, गरीब और अमीर का फर्क कुछ नहीं, उसके लिए तो हरिजन और सवर्ण दोनों समान ही हैं। तुम अपने जीवन की विषमताओं को ही सभ्यता, उच्चता और पवित्रता समझते हो तुम्हारी मति भेद-प्रधान है जब कि बालक अभेद बुद्धि है।

तुम कुछ देर के लिए बालक के पीछे चलो। इस अभेद में और साम्य में अद्भुत आनन्द है तुम्हारा कभी किसी से झगड़ा हो जाय तो तुम उससे बदला लेने की फिक्र में रहते हो। अनेक वर्ष बीतने पर भी तुम किसी के उपकार को नहीं भूल सकते, मौका पड़ने पर तुम डंक मारने से नहीं चूकते। किसी ने तुम्हारे साथ कुछ भलाई भी की है यह तो तुम्हें याद नहीं रहता झट भूल जाता है दुःख में किसने साथ दिया, तुम्हारी उन्नति में किसका हाथ है, यह तुम्हें याद नहीं रहता परन्तु कब किसने तुम्हारे खिलाफ गवाही दी है यह तुम्हें कभी नहीं भूलता।

तुम इस बारे में बालक को ही अपना गुरु बनाओ। यदि किसी कारण से झगड़ा हो गया है तो उसे शीघ्र भूल जाओ। कुढ़ते न रहो, मन में कीरा न रखो दूसरों के अपकार को भूल जाओ उनके उपकार को कभी न भूलो। राग द्वेष से ऊपर उठने की यह कला बालक से सीखो।

बालक प्रेम का भूखा है! उसे जो प्यार करे उसी के पास चला जाता है। वस्तुतः ईश्वर भी प्रेम में ही रहता है इसीलिए बालक को गोपाल [बाल गोपाल] कहा है। प्रेम और सादगी में ही सच्चा सौंदर्य है। बालक को देखकर सभी उसे प्यार करना चाहते हैं। तुम बालक बनो सबके प्यारे बनो तुम्हें देखकर सब कोई तुम्हें प्यार करना चाहें।

सच्चा प्रेम बालक से होता है और बालक का ही प्रेम सच्चा होता है और सब प्रेम में स्वार्थ हो सकता है। बालक शुद्ध और ब्रह्म रूप है तुम भी शुद्ध पवित्र बनो।

तुम सदा बालक के गुरु और नेता बनते हो यह तुम्हारी भूल है। अब तुम बालक को ही अपना गुरु और नेता बनाओ। यदि तुम ऐसा कर सकोगे तो अपनी वैयक्तिक और राष्ट्रीय कठिनाइयों का सही हल कर पाओगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118