स्वच्छता मनुष्यता का प्रधान लक्षण है। जिसकी स्वच्छता जितनी विकसित है वह उतना ही उन्नतिशील कहा जायगा। पशुओं को स्वच्छता और सफाई का ध्यान नहीं होता पर जिसमें मनुष्यता का भाव बढ़ने लगता है वह स्वच्छता क्रमशः सफाई की ओर कदम बढ़ाता जाता है। सुअर गंदगी में लोटता विष्ठा खाता है उसे उसमें कोई द्वेष या घृणा नहीं होती पर जो जीव जितना विकसित होता जावेगा उतनी ही गंदगी से घृणा होती जायगी। वह स्वच्छ रहना, स्वच्छ वातावरण में रहना पसंद करेगा।
स्वच्छता का जितना अंश मनुष्य में रहता है उतना ही वह अस्वच्छ रहता है। कितने ही मनुष्य अस्वच्छ रहते हैं। शरीर में मैल, दाँतों पर मैल, नाक, आँखों बालों और नाखूनों में मैल, भरा रहता है। कपड़ों में पसीने की दुर्गन्ध आती है मैल से वे काले पड़े होते हैं। बिस्तर व चारपाई गंदगी से भरी रहती है। जहाँ जहाँ थूकना, कचरा पटक देना, वस्तुओं को अव्यवस्थित रखना खाद्य पदार्थ तथा पीने का पानी जैसे तैसे पड़े रहने देना, यह सब गंदी आदतें हैं। गंदे वातावरण से गंदगी उत्पन्न होती है। जिसके मन में न गन्दगी से घृणा है और न स्वच्छता से प्रेम वह चारों ओर निश्चित रूप से गंदगी जमा करता है। यह कहना ठीक नहीं कि गंदगी का कारण मनुष्य है। वास्तव में मनुष्य की कुरुचि, गलीजपना ही इसका कारण है। गरीब होते हुए भी मनुष्य अपने शरीर, वस्त्र तथा मकान को स्वच्छ रखता है। नहाने, धोने, झाड़ने, लीपने, पोतने, सफाई या वस्तुओं का यथास्थान रखने के लिए पैसे की उतनी जरूरत नहीं है, जितनी की स्वच्छता की।
मनुष्य सुन्दर वस्तुओं को पसंद करता है। उनकी ओर मन बरबस खिच जाता है। सौंदर्य स्वच्छता का ही दूसरा नाम है। गरीब आदमी अपनी झोंपड़ी को थोड़ा परिश्रम करके लीप पोत सकता है। झाड़ बुहार कर साफ रख सकता है। और लता पुष्पों से सजा सकता है। अव्यवस्थित ढंग से पड़ी हुई कीमती चीजें भी कूड़ा हैं, और यथा विधि ठीक स्थान पर रखा हुआ कूड़ा भी स्वच्छता है। फटे पुराने कपड़ों को मरम्मत करके उन्हें ठीक तरह धोकर स्वच्छ रखा जा सकता है। तरीके से पहने हुए सस्ते कपड़े-लापरवाही धनी की बेढंगी पोशाक की अपेक्षा अधिक भले मालूम पड़ते हैं।
व्यवस्था शक्ति जो कि जीवन का महत्वपूर्ण अंग है-स्वच्छता का ही विकसित रूप है। सब कार्य यथा विधि हों, सब से यथोचित व्यवहार हो यह सब सौंदर्य पूर्ण, दृष्टिकोण का फल है। कीचड़, आलसी, लापरवाह स्वभाव के आदमी समय की पाबन्दी की नियमितता का, हिसाब किताब का, लेन देन का, ठीक प्रकार ध्यान नहीं रखते उनके काम प्रायः अधूरे, अव्यवस्थित, उलझे हुए पड़े रहते हैं। इस बेढंगी स्थिति के कारण उसे हानि ही हानि उठानी पड़ती है।
अस्वच्छता, मनुष्यता का अपमान है। गरीब होना कोई बुरी बात नहीं, पर गन्दा होना घृणास्पद है। गन्दगी-बीमार का दूसरा नाम है। जिसकी आँतों में मैल जमा रहता है वह कब्ज का रोगी कहा जाता है, जिसके खून में विषैले विजातीय पदार्थ भरे हैं वह रक्त विकार का रोगी कहा जाता है। इसी प्रकार जिसका मन गन्दा है, वह मानसिक रोगी है, जिसका चरित्र गन्दा है वह नैतिक रोगी है। स्वभाव और व्यवहार का गन्दा एक सामाजिक रोगी है। इस प्रकार के रोगी न दूसरों को सुखी रहने देते हैं। गन्दे मनुष्य मनुष्यता के लिए अभिशाप हैं। हमें चाहिए कि हम स्वच्छ रहें! न केवल शरीर, वस्त्र, मकान और सामान को साफ रखें वरन् अपने स्वभाव, चरित्र, व्यवहार और मन को भी स्वच्छ रखें। सर्वांगीण स्वच्छता ही वास्तविक स्वच्छता है।