पुस्तक-प्रेम

October 1944

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

दार्शनिक एमर्सन कहा करते थे, कि “पुस्तकों का स्नेह ईश्वर के राज्य में पहुँचने का विमान है।” निस्संदेह मनुष्य की अपूर्णता को पूर्णता की ओर ले जाने में, अज्ञ से विज्ञ बनाने में जितना काम पुस्तक ने किया उतना और पदार्थ द्वारा नहीं हुआ। निस्संदेह मनुष्य की अपूर्णता को पूर्णता की ओर ले जाने में, अज्ञ से विज्ञ बनाने में जितना काम पुस्तक ने किया उतना और पदार्थ द्वारा नहीं हुआ। श्रेष्ठ महापुरुषों, दिव्य दार्शनिकों और खोज करने वाले तपस्वियों के घोर परिश्रम द्वारा प्राप्त हुए बहुमूल्य रत्न पुस्तकों की तिजोरी में बन्द हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि इतने अनुभव पूर्ण ज्ञान को हम इतनी आसानी से पुस्तकों द्वारा प्राप्त कर लेते हैं।

सिसरो ने कहा है कि अच्छी पुस्तकों को घर में इकट्ठा करना मानो घर को देव मंदिर बना लेना है। कार्लाईल ने लिखा है—”जिन घरों में अच्छी किताबें नहीं वे जीवित मुर्दों के रहने के कब्रिस्तान हैं।” जीवन कला एवं सरसता का समावेश पुस्तकों की सहायता से होता है। जिन्दगी की पेचीदा समस्याओं के ऊपर विचार करने के लिए पुस्तकें प्रोत्साहन देती हैं और प्रकाश—दीप की भाँति सत्मार्ग की ओर हमारा पथ प्रदर्शन करती हैं।

कैम्पिस ने एक बार लोगों को उपदेश दिया था कि—’अपना कोट बेचकर भी अच्छी किताबें खरीदो।’ उनका कहना था कि कोट के अभाव में जाड़े के कारण आपके शरीर को कुछ कष्ट होगा, परन्तु पुस्तकों के अभाव में आत्मा को भूखा मरना पड़ेगा। भौतिक जगत की जड़ता नीरसता ओर बहिरंगता की कर्कशता से छुड़ाने की शक्ति पुस्तकों में हैं उन्हीं में जीवन का अमृत रस भरा हुआ है जिसे पान करके तुच्छ जीव से ऊँचे उठकर हम महामानव बनते हैं। हर मनुष्य को पुस्तक प्रेमी होना चाहिए विचारपूर्ण सत ग्रन्थों का संग्रह और स्वाध्याय करना अपने को पशुता से देवत्व की ओर ले जाना का स्पष्ट चिन्ह है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118