तुम जो दूसरे से चाहते हो, वही दूसरे को पहले तुम दो, तब तुम्हें अनन्त गुणा होकर वही मिलेगा। सेवा चाहते हो तो सेवा करो, मान चाहते हो तो मान दो, यश चाहते हो तो यश दो। ठीक समझ लो दुःख देते हो तो बदले में तुम्हें दुःख ही मिलेगा, अपमान करते हो बदले में तुम्हें अपमान ही मिलेगा। जो तुम दोगे वही तुम्हें मिलेगा।
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मनुष्य पुण्य का फल सुख चाहता है, परन्तु पुण्य नहीं करना चाहता और पाप का फल दुःख नहीं चाहता पर पाप नहीं छोड़ना चाहता। इसीलिये सुख नहीं मिलता और दुःख भोगना पड़ता है।