शक्ति का सदुपयोग करो

October 1944

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री सत्यनारायण जी मूघड़ा, हैदराबाद)

परमात्मा ने धन, ऐश्वर्य, पद, बुद्धि आदि सम्पदाएं मनुष्य को इसलिए नहीं दी हैं कि उनके द्वारा वह अकेला ऐश आराम उड़ावे और मस्त रहे, वरन् इसलिए दी है कि अपने से कमजोर और दुर्बल व्यक्तियों को ऊँचा उठाने में आगे बढ़ाने में इन शक्तियों के द्वारा सहायता करें। बेशक, अपनी शारीरिक मानसिक और सामाजिक उन्नति के लिए भी शक्तियों को खर्च करना चाहिए जिससे बल का भण्डार, शक्ति का स्रोत घटने न पावे परन्तु स्मरण रखना चाहिए इसका अन्तिम लक्ष्य दूसरों की सेवा नर नारायण की पूजा करना ही है।

जिसकी भीतरी और बाहरी सम्पदायें परमार्थ साधने में लगती हैं वही धन्य है, उसी का जीवन सफल है। पेट तो कुत्ता भी भरता है, जमा करना तो चींटियाँ भी जानती हैं, इन्द्रिय वासना तो कीट पतंग भी तृप्त करते हैं, यदि इतना ही काम मनुष्य भी कर पावे तो उसका जीना वृथा है। वह अमीर किस काम का, जिसकी सम्पत्ति से दुनिया का कुछ उपकार न हुआ, वह विद्वान किस काम का, जिस की विद्या से भूले भटकों का पथप्रदर्शन न हुआ। वह बलवान किस काम का, जिसके बल से कम जोरों को ऊपर उठने का सहारा न मिला।

सज्जन मनुष्य, महापुरुष, नर नारायण वह है जो अपनी शक्तियों को बढ़ाता है और उन्हें संसार की भलाई में खर्च करता है। वह अपनी उन्नति करता है पर करता है परमार्थ करने, सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए। जीवन की सफलता इस बात के ऊपर निर्भर है कि परमात्मा की दी हुई भीतरी और बाहरी सम्पदाओं को हम परमात्मा के चरणों पर समर्पित करें, लोक सेवा में लगायें। ईमानदार वह है जो कर्ज को वापिस लौटाता है, साधु वह है जो परमात्मा के वैभव को उसी की पूजा में—लोक सेवा में लगा देता है।

गद्य गीत—


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: