अपने अन्तरंग सदस्यों से!

June 1944

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गत अंक में ‘ज्ञानयोग की एक सुलभ साधना’ शीर्षक लेख छपा था। हर्ष की बाती है कि उस ओर अखंड ज्योति के पाठकों ने बहुत ही दिलचस्पी ली है। हमारा अनुमान था कि वर्तमान के कारण पाठक बहुत थोड़ी संख्या में इधर ध्यान देंगे । परन्तु आशा से कई गुणी संकल्प सूचनाएं आ जाने पर हमने जाना कि कर्तव्य, परमार्थ, आध्यात्मिकता और सत्य की लगन बड़े तीव्र वेग से बढ़ रही है। भगवान अब अधर्म का भार इस पृथ्वी पर से हटाकर धर्म की स्थापना मानव हृदय में कर रहें है।

“अपने विचार और कर्मों को विवेक पूर्ण धर्ममय-बनाओ।” संक्षेप इतना ही सार उस गत अंक वाले लेख का था। उसमें कहा गया था कि-”आप विवेकशीलता को अपनी प्रधान नीति बना लीजिए और आत्मोन्नति-परमार्थ साधना-के लिए यथा संभव निरन्तर प्रयत्न करते रहने का संकल्प कीजिए।” उस लम्बे लेख का केवल मात्र इतना साराँश था। जहाँ सामूहिक रूप से संभव हो वहाँ कई व्यक्ति मिलजुल कर कार्य करें जहाँ ऐसा न हो सके वहाँ एक अकेला व्यक्ति ही अपने को इस मार्ग पर अग्रसर करे। यह कार्य संचालन की योजना का सार था।

जिन विकसित हृदय महानुभावों ने अपने व्यक्तिगत संकल्प भेजे हैं। विवेकशीलता की उन्नति के प्रण किये हैं-उनकी संख्या एक मास में ही इतनी अधिक हो गई जिसे देख हम लोगों का चित्त अत्यन्त ही प्रफुल्लित होता है और दृढ़ विश्वास होता है कि सर्व शक्तिमान प्रभु द्वारा मनुष्य जाति को अज्ञान रूपी दुख दारिद्र से छुटाने के लिए प्रबल प्रेरणा हो रही है।

जिन पाठकों ने विवेक के, औचित्य के, मार्ग पर अग्रसर होने के लिए यथा संभव प्रयत्न करते रहने की- लिखित, मौखिक या मौन संकल्प हमारे पास भेजे हैं। उन सब महानुभावों से हमारा अनुरोध है कि वे हर पन्द्रहवें दिन अमावस्या, पूर्णमासी को अपने पन्द्रह दिन की डायरी संक्षेप रूप से हमारे पास भेज दिया करे। इस डायरी में अपने भले, बुरे, उचित, अनुचित, साँसारिक, आध्यात्मिक, शारीरिक, सभी प्रकार के कार्यों का ब्यौरा होना चाहिए। इस डायरी को हम बहुत ध्यान पूर्वक पढ़कर सूक्ष्म दृष्टि से यह विचार किया करेंगे कि किस दिशा में कितनी उन्नति या अवनति हो रही है। निरीक्षण के पश्चात यह बताया करेंगे कि जीवन को आनन्द मय बनाने के लिए उन्हें किस दिशा में क्या करना चाहिए इस प्रकार अपने एक नियमित तारतम्य स्थापित हो जायेगा और जीवन निर्माण कार्य में पाठक हमारा भी सहयोग प्राप्त कर सकेंगे। आध्यात्मिक मार्ग में एक और एक मिलकर दो नहीं वरन् ग्यारह हो जाते हैं। हमारे सहयोग से जीवनोद्देश्य की प्राप्ति में संबंधित सज्जनों को निस्संदेह एक महत्व पूर्ण बल प्राप्त होगा।

जो पाठक विवेकशीलता का आनन्दमय जीवन बिताने के इच्छुक हैं, उनसे अनुरोध है कि वे पाक्षिक डायरी लिखकर हमारे पास हर पन्द्रहवें दिन भेजा करें और उत्तर के लिए टिकट रख दिया करे। यह डायरीयाँ बिलकुल गुप्त रखी जायेंगी। किसी पर इन्हें प्रकट नहीं किया जायेगा। हमारे सिवाये इन पत्रों को कोई और नहीं पढ़ता। कम से कम एक वर्ष के लिए तो वे ऐसा निश्चय कर ही लें कि इतने समय तो डायरी भेजा करेंगे और पत्र व्यवहार द्वारा सत्संग, विचार विनिमय, एवं पथ प्रदर्शन प्राप्त करेंगे। दिव्य जीवन के सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप देने के लिए विभिन्न व्यक्तियों को विभिन्न मार्गों का अवलम्बन करना होता है।

अलग अलग व्यक्तियों की समस्याओं का सुझाव भी अलग अलग होता है। डायरी भेजने और हमारे सुझाव प्राप्त करने की नियमित व्यवस्था द्वारा पाठक उपरोक्त लाभ प्राप्त कर सकते है। अखंड ज्योति अपने पाठकों की ऐसी सेवा करने के लिए उत्सुक है।


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