सदाचारी व्रत का अधिकारी है।

June 1944

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(पं. तुलसीराम शर्मा सितारी)

निजवर्णा श्रमाचार निरतः शुद्धमानसः।

ब्रतेष्वधि कृतोराजन् नन्यथाविफलःश्रमः॥

अपने वर्णाश्रम के नित्य, नैमित्तक संध्यावंदनादि से युक्त, निर्मल चित्त (कपट रहित) पुरुष व्रत का अधिकारी है अन्यथा श्रम व्यर्थ है।

अलुब्धः अत्यवादीच सर्वभूत हितेरतः।

ब्रतेष्वधि कृतोराजन् नन्यथाविफलःश्रमः॥

लोभ रहित, सत्यवादी, सबका हितकारी व्रत का अधिकारी है।

श्रद्धावान् पाप भीरुश्च मद दंभविवर्जितः।

ब्रतेष्वंधि कृतोराजन् नन्यथाविफलःश्रमः॥

श्रद्धा (शास्त्र के वचनों में विश्वास) बाला, पाप से बचा हुआ, मद, (मैं महात्मा हूँ धनवान् हूँ मेरी बराबर कोई नहीं) और ढ़ंभ (पाखण्ड) से रहित पुरुष व्रत का अधिकारी है अन्यथा (इन गुणों के न होने पर) व्रत करना निष्फल है।

समः सर्वेषु भूतेषु शिवभक्तो जितेन्द्रियः।

ब्रतेष्वधि कृतोराजम् नन्यथाविफलः श्रमः॥

सब प्राणियों समता (पक्षपात से शून्य) का व्यवहार करता है शिवभक्त, जितेन्द्रिय है ऐसा पुरुष व्रत का अधिकारी है अन्यथा श्रम व्यर्थ है यानी व्रत रहना निष्फल है।

पूर्वनिश्चित्यशास्त्रार्थ यथावत् कर्म कारकः।

अवेदनिन्दकोधीमानधिकारी व्रतादिषु॥

शास्त्र द्वारा कर्त्तव्य कर्म निश्चय कर यथावत् करने वाला, वेद शास्त्र की निन्दा न करने वाला, बुद्धिमान् व्रत आदि करने का अधिकारी है।

(हेमाद्रि-व्रतखंडधृत स्कंद पुराण वचन)

अहिंसा सत्यमस्तेय ब्रह्मचर्य मकल्पता।

एतानि मानसाम्याहुर्व्र तानिहरि तुष्टये॥ 42॥

अहिंसा, सत्यभाषण, चोरी न करना (अन्यों से दूसरे का हव्य न लेना) ब्रह्मचर्य, निर्मल चित्त (हृदय में ईर्ष्या द्वेष छल कपट न रहना) भगवान की प्रसन्नता के लिए ये मानसिक व्रत हैं।

विवजनंह्यकार्याणा मेतत्सत्पुरुष व्रतम।

(स.भा. विराट. 14/36)

द्रौपदी कहती है कि दुराचार का त्यागना सत्पुरुषों का व्रत है।

वेद स्याध्ययनं विष्णोः कीर्तनं सत्यभाषणाम्,

अपैशुन्यमिदं राजन् वाचिकं व्रतमुक्तमम्। 43

वेद शास्त्र का अध्ययन, विष्णु भगवान का कीर्तन, सत्य भाषण, चुगलखोरी न करना यह वाचि व्रत हैं॥43॥

एक भक्तं तथानक्त मुपवासमया चितम्।

इत्येवं कायिकं पुसाँ व्रत मक्तं नरेश्वर॥ 44

बिना माँगे मध्याह्नोत्तर दिन रात में एक व भोजन करना यह कायिक व्रत है॥ 44॥

पर दार पर दृव्य पर द्रोह विवर्जनम।

रागद्वेष परित्यागो व्रतानामुक्तमं व्रतम्॥

(वोघसार)

पर स्त्री, परधन, परहिंसा से बचना और राग द्वेष का त्याग यह व्रतों में उत्तम व्रत है।

सात्विक सहायताएं

इस मास ज्ञान यज्ञ की सहायतार्थ निम्न सहायताएं प्राप्त हुई हैं। अखंड ज्योति इसके लिए अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करती है।

101) श्री भीमराव सोलंकी, युद्ध सैनिक,

11) श्री अनराज, जैन मुनीरुछीन पलैया,

10) श्री दयाशंकर जी पारादान,

5) श्री शमशेरसिंह जी ढ़ोंढ़रामऊ,

3) श्री गंगचरणजी ब्रह्मचारी उमरी,

2) श्री रघुवरदत्तजी चालसी,

1॥।) श्री गुलफामसिंहजी, काशीपुर,

1) श्री वैजनाथप्रसाद साहु, खागा,

1) पं. रामप्यारे शुक्ल, त्राथपुरी,

1) श्री नोनुप्रसादजी

1) श्री नोनुप्रसादजी


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