सिनाई पहाड़ी पर चलते हुए हजरत मूसा एक कुँज में बड़ा प्रकाशवान् तेज देखकर बड़े चकित हुए। क्यों कि उस ज्वाला से कुँज अत्यन्त प्रकाशित हो रही थी परन्तु जलती न थी। हजरत उस झाड़ी के निकट पहुंचे और विनय पूर्वक पूछा कि “ऐ चमकने वाले! तुम कौन हो?” उस प्रकाश ने उत्तर दिया कि- “मैं हूँ, जो कुछ हूँ -वास्तव में मैं ही हूँ। तुम्हारा विशुद्ध आत्मा ही मैं हूँ।”
हजरत मूसा को यह दिव्य अनुभूति ठीक ही हुई। संसार जैसा कुछ है, हमारा अपना प्रतिबिम्ब ही है। जो कुछ है -वास्तव में अपनापन ही है। जैसा कुछ अपने अन्दर है वैसा ही बाहर भी देखा जा सकता है।
आत्मा प्रकाशवान् है तेजस्वी है, ज्वलन शील है, फिर भी यह झाड़ी आत्मा के गुण से युक्त नहीं है। देह में बुराई भलाई दोनों है, आत्मा इसके अन्दर रहते हुए भी इससे परे है। आत्मा का वह प्रकाश प्रज्वलित है तो भी यह झाड़ी जलती है। आत्मा के जो सद्गुण हैं वे शरीर में नहीं पाये जाते है। आत्मा पवित्र है, उसकी प्रेरणा भी पवित्र ही होती हैं। परन्तु शरीर में तो वासनाएं भी रहती है।
आत्मा यथार्थ में पवित्र है। यदि वह पवित्र न होता तो कोई देहधारी इस संसार में सिद्ध, महात्मा या अवतार न हो सकता । वह विश्वास करो कि अपनी वास्तविक आस्तित्व-अहम् -पवित्र है। जो मलिनताएं हैं वे शरीर की है। और शरीर को जैसे छोड़ा जा सकता है उसी प्रकार इन मलिनताओं का भी परित्याग किया जा सकता है। अंतर्मुखी होकर सिनाई की- सत्यता की-पहाड़ी पर चढ़ो तो तुम्हें भी इस देह रूपी झाड़ी में प्रकाशवान आत्मा दिखाई देगा। शरीर में रहता हुआ भी वह इससे पृथक है। वह प्रकाशवान् सत्ता आपसे कहती है कि-”मैं हूँ, जो कुछ हूँ- वास्तव में मैं ही हूँ। तुम्हारा विशुद्ध आत्मा मैं हूँ।”