ब्रह्मचर्य का अनुभव

February 1944

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(श्री बालजी कानजी, राज कल्यानपुर)

ब्रह्मचर्य का पालन आरम्भ में कुछ कठिन मालूम पड़ता है। जिनकी वासना, तृष्णा तथा कामनाएं डाँवाडोल हैं, क्षण क्षण में इधर उधर डोलती हैं उनके लिए कठिन और कष्ट साध्य है भी। परन्तु जो लोग आत्मनिष्ठ हैं जीवन को किसी श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाना चाहते हैं उनके लिए इसमें कठिनाई की कुछ भी बात नहीं है। खर्च करने में लोग आनन्द समझते हैं पर जिन्होंने अनुभव किया है वे जानते हैं कि कमाने में भी एक खास किस्म का आनन्द है और वह खर्च करने के आनन्द में ऊँचे दर्जे का है।

ब्रह्मचर्य के पालन से आरोग्यता, दीर्घायु, बुद्धि वृद्धि, आत्मोन्नति आदि फल तो प्राप्त होते ही हैं परन्तु इस महाव्रत के पालन की साधना में जो आनन्द, आत्म संतोष और उल्लास है उसका मजा अपने ढंग का अनोखा ही है। मैं अब करीब 60 वर्ष का हो चला हूँ और विगत 20 वर्षों से मन वचन तथा काया से ब्रह्मचर्य की साधना कर रहा हूँ। इसमें मुझे जितना आनन्द आता है उसका वर्णन लेखनी द्वारा कर सकना मेरे लिए संभव नहीं है। यह गूँगे का गुड़ है। जो भाई बहिन इस व्रत का पारायण करेंगे वे ही मेरी तरह इस अमृत रस को चखेंगे।

सात्विक आहार और भजन पूजन करते रहने से ब्रह्मचर्य का पालन बहुत सरल हो जाता है। मैं बहुत करके फलाहार करता हूँ। सात्विक आहार से शरीर और मन भी सात्विक बनता है और संयमपूर्ण जीवन बिताना सरल हो जाता है। नवयुवकों को बड़ी उम्र तक ब्रह्मचारी रह कर अपना शारीरिक और मानसिक विकास करना चाहिए और गृहस्थों को दो चार संतान हो जाने पर वानप्रस्थ की तरह संयमी जीवन बिताते हुए परलोक साधना करनी चाहिए यही शास्त्रों की आज्ञा है और यही मेरा निवेदन है।


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