जो लोग कुछ प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें त्याग के इस अटल नियम को भली भाँति हृदयंगम कर लेना चाहिए कि पहले दो तब मिलेगा।
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धैर्यपूर्वक विपत्तियों की प्रतीक्षा करते कुछ तो स्वयं ही नष्ट हो जाती हैं जैसे समुद्र की लहरें पैरों तक आकर लौट जाती हैं।
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जैसे किसी पहाड़ी पर चढ़ना दुर्गम दिखाई देता है उसी तरह विपत्तियों का सामना करना भी असहाय मालूम पड़ता है। परन्तु जैसे धीरे-धीरे पहाड़ी पर चढ़ जाते हैं उसी तरह आपत्ति भी धैर्य रखने पर आसानी से दूर हो जाती हैं।