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February 1944

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दूसरे को दुख देना तो अज्ञानता है। परन्तु दूसरे के प्रति दुख उठाना सत्य के नजदीक पहुँचना है। दुख ही लोगों को दया और कृपालुता सिखाता है।

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हाथ वे ही पवित्र हैं जो परोपकारी हैं। पैर वे ही सुन्दर हैं जो छुद्राति छुद्र के घर में दया वश पहुँच जाते हैं। स्कन्ध वही शुद्ध हैं, जो दूसरे की चिन्ता को अपने ऊपर रख लेते हैं।


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