स्वच्छता मनुष्यता का गौरव

स्वच्छता सांस्कृतिक सद्गुण

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सफाई मनुष्य जीवन और मानवीय सभ्यता का अविभाज्य अंग है। हिन्दू धर्म ही नहीं, हर एक धर्म में सफाई की और निर्देश करने वाले आचार वर्णित हैं। अंग्रेजी में कहावत है-‘‘सज्जनता के बाद स्वच्छता का ही स्थान है।’’ रस्किन ने शिक्षा की व्याख्या करते हुए लिखा है कि -‘‘हवा, पानी और मिट्टी का ठीक ढंग से उपयोग करना ही शिक्षा है।’’
    मोहन जोदड़ों की खुदाई से ज्ञात होता है कि ईसा से २००० वर्ष पहिले भी सफाई के लिए नालियाँ होती थीं। क्लोसास तथा ट्राय के पराजय से पूर्व ही मिश्र के पुराने शहरों में भी नालियों का उपयोग किया जाता था। हिन्दु-धर्म में तो शुचिता को प्रमुख स्थान ही दिया गया है, पर आजकल हमारे सामूहिक जीवन में गन्दगी ने पूरी तरह डेरा डाल लिया है। सफाई की जरूरत जीवन में आरंभ से अन्त तक है इसलिए उसका बुनियादी प्रशिक्षण भी लोगों को मिलना चाहिए, आरोग्य के लिए भी सफाई बहुत जरूरी है। बड़े रोगों और बुखार, खुजली तथा छोटे रोगों का असली कारण अस्वच्छता ही है, उसे दूर करके ही हम स्वास्थ्य संरक्षण कर सकते हैं।
    हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति की श्रेष्ठता की रक्षा करनी है तो सफाई पर ध्यान देना ही होगा, स्वास्थ्य और आरोग्य की रक्षा के लिए भी वह आवश्यक है। आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए भी सफाई का सर्वोपरि महत्व है। इसलिए उसकी व्यावहारिक जानकारी भी बहुत आवश्यक है।
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