स्वच्छता मनुष्यता का गौरव

गन्दगी निवारण के रचनात्मक उपाय

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‘‘स्वर्ग’’ शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्व प्रमुख है। पर चूँकि लोगों की यह मान्यता है कि स्वर्ग कहीं अन्यत्र शून्य में, बहुत दूर बसा हुआ है और वहाँ केवल जीवन-मुक्त आत्माएँ ही पहुँच सकती हैं, हम स्वर्ग का विवेचन नहीं करना चाहते। हम जिस युग-निर्माण योजना को लेकर राष्ट्र के आध्यात्मिक तथ्यों को पुनः जागृत हुआ देखना चाहते हैं, उनका उद्देश्य भी स्वर्ग की कल्पना को स्पर्श करता है पर यह स्वर्ग ऊपर आसमान में नहीं, यहीं इस धरती पर जहाँ हम रहते हैं, होना चाहिए। इसलिए हम जब स्वर्ग की व्याख्या करेंगे तो उसका सम्बन्ध अपने मनुष्य समाज को ही ‘‘देव-समाज’’ बनाना होगा।

देव समाज की रचना

    देवता जहाँ रहते हैं वहाँ सफाई, स्वच्छता, शुचिता पवित्रता, सुगन्ध, सौंन्दर्य ओर निर्मलता प्रमुख रुप से रहती हैं। यह बातें जहाँ पर होंगी स्वभावतया वहाँ प्रसन्नता, निरालस्यता, प्रेम, सद्भाव, सहयोग, कर्मठता, सहिष्णुता उदारता आदि गुण भी होने चाहिए। जहाँ यह गुण व्यापक मात्रा में विद्यमान होंगे वहाँ सुख, शांति, संतोष, समृद्धि और सम्पन्नता का होना भी अनिवार्य है। हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन का उद्देश्य भी तो यही है कि हम सुखी बनें, शांतिपूर्वक जीवन जियें और किसी बात का अभाव न रहे। 
    तो फिर धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारंभ सफाई और स्वच्छता से ही होना चाहिए। गन्दगी चाहे शरीर की हो, कपड़ों या घर की हो, भली नहीं होती, उससे मनुष्य का जीवन अपवित्र ही बनता है। पर सामूहिक गंदगी का रूप तो और भी बुरा है। मल-मूत्र की समस्या को इसीलिए सफाई की समस्या से पृथक किया गया है। हमारे देश में गन्दगी न बढ़ने देने के सामाजिक कर्तव्य का लोग पालन नहीं करतें, जहाँ-तहाँ पेशाब-पाखाना कर देते हैं। इससे गन्दगी बढ़ती है, रोग बढ़ते हैं और इनके साथ ही परेशानी, गरीबी और निर्धनता भी बढ़ती है। अतः अपने कर्तव्य के पालन में प्रत्येक नागरिक को जागरुक रहना चाहिए। एक व्यक्ति का अकर्तव्य भी सामाजिक बुराई को जन्म दे सकता है अतः हमें सामूहिक रूप से कर्तव्यों के पालन पर ध्यान देना चाहिए।
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