स्वच्छता मनुष्यता का गौरव

अधूरे काम गन्दगी के अम्बार

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    जो काम आरम्भ किया उसका अन्त करके ही दम लेना, कोई काम अधूरा न छोड़ना, यह दृष्टिकोण स्वच्छता का आधार है। लापरवाही हटाकर उत्तरदायित्व की भावना जिस व्यक्ति ने अपना स्वभाव बनाया होगा, वह यह बात कैसे सहन कर सकेगा कि उसका कोई काम अधूरा पड़ा रहे और वह दूसरों के सामने उसके फूहड़ होने कि चुनौती प्रस्तुत करे। एक काम आदि से अन्त तक पूरा करना, जब जो काम हाथ में लिया हो तब उसे पूरा करके दूसरा आरम्भ करना यदि यह आदत डाल ली जाय तो फिर अस्त-व्यस्तता जो गन्दगी का ही एक रुप है- उत्पन्न न हो सकेगी। कोई बहुत बड़ा काम हो, उसे खण्ड-खण्ड करके पूरा करना हो या कोई अनायास ही आकस्मिक कार्य सामने आ जाय, यह बात दूसरी है। उसके लिए तात्कालिक हेर-फेर किया जा सकता है। यह अपवाद है। साधारणतया आदत ऐसी ही डालनी चाहिए कि जब जो काम करना हो उसे पूरा करके उठा जाय। कपड़े, बर्तन, पुस्तकें, जूते आदि को पहले ठीक तरह यथास्थान रखकर तब दूसरा काम आरम्भ किया जाय तो हर चीज यथास्थान रखी मिलेगी और घर में कूड़ा-करकट कहीं भी दिखाई न पड़ेगा। जहाँ भी जो चीज अव्यवस्थित रखी दिखाई पड़े, उसे सम्भालना ऐसी आदत है जिसके कारण इस तरह की भूलें होते रहना बन्द हो जाती हैं और गृह-व्यवस्था में कोई अनावश्यक-व्यवधान उत्पन्न नहीं होता। तब सोचने का ढंग यह बन जाता है कि एकाध घण्टे पीछे जो सफाई फजीहत एवं नाराजी के साथ की जाती है, उसे पहले से ही क्यों न कर लिया जाय? यह प्रश्न जब बार-बार मन में उठता रहता है तो फिर ढील पोल का स्वभाव भी बदल जाता है। घर का प्रमुख व्यक्ति जब स्वच्छताप्रिय स्वभाव का होता है, गन्दगी हटाने में उत्साहपूर्वक सावधानी बरतता है तो उसका अनुकरण परिवार के दूसरे लोगों को भी करना पड़ता है। वैसी आदत घर-भर को पड़ जाती है। किन्तु यदि परिवार प्रमुख व्यक्ति आलसी, लापरवाह और फूहड़ आदतों का होगा और स्वयं गन्दगी पैदा करता रहता होगा तो घर-भर में वही बुराई छूत की बीमारी की तरह पनपेगी और सारा घर गन्दगी के ढेर की तरह दिखाई देगा।
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