भरी भीड़ में एकाकी हम
भरी भीड़ में एकाकी हम, भटक रहे थे राहों पर।
उत्तर से संकेत हमें दे, हम सबका कल्याण किया॥
जब जब धरती पर अधर्म की, काली बदली गहराई।
पाँव- पाँव में थकाव हृदय में घोर निराशा थी छाई॥
ईश- चेतना जो अनुशासन करती दशों दिशाओं पर।
बनकर वह साकार पूज्य सद्गुरु का तन धरकर आई॥
डरी- डरी हिरनी सी बैठी, मानवता जो कोने में।
अभयदान दे उसको, सारी दुनियाँ का कल्याण किया॥
गुरु ने गरिमा सदा निभाई, हर मरुथल में पानी की।
प्यार- ज्ञान तप देकर पाई, महिमा औघड़ दानी की॥
सद्गुरु की पा कृपा, विवेकानन्द विश्व में छाए थे।
गुरुकृपा से मिली शिवाजी को तलवार भवानी की॥
उसी सहज शीतल अनुकम्पा की बौछारें बरसाकर।
हर सूखी मृत प्राय फसल को तुमने जीवन दान दिया॥
तुम जैसा अपनत्व दिखाने वाला मिला नहीं कोई।
घने वनों में दीप जलाने वाला मिला नहीं कोई॥
बहुत मिले बस पतन पराभव के पथ पहुँचाने वाले।
उच्च शिखर की राह शिव हमको मिला नहीं कोई॥
तुमने सरल सूत्र जीवन के दिये दुःखी मानवता को ।।
यूँ जीवन का जटिल मार्ग जग में तुमने आसान किया॥