मन मैल अगर ज्यों का
मन का मैल अगर ज्यों का त्यों, लाख सँवारो तन क्या होगा।
दिन- दिन भारी अधिक गठरिया, छिन- छिन मैली अधिक चदरिया।
पल- पल प्यास प्रबल होती है, रह- रह रिसती अधिक गगरिया॥
आज न अगर लगाम कसी तो, कल सौ करो जतन, क्या होगा॥
नहीं गिरे को अगर उठाया, नहीं थके को यदि दुलराया।
किसी भ्रमित भूले भटके को, अगर राह पर नहीं उठाया॥
फिर चाहे हर तीर्थ नहाओ, मंदिर करो नमन क्या होगा॥
मेला ठेला ठेली का है, हारे दाँव सभी फीका है।
मरन- हाट में अमर रहे जो, सौदा बस जीते जी का है॥
लिया दिया यदि प्यार नहीं तो, अनगिन मिले जतन क्या होगा॥
खोलो द्वार रोशनी आये, सुख- दुःख सब का सब बँट जाये।
सोचो जिसका रूप अजाना, जिसकी गन्ध न कोई पाया॥
ऐसा कहीं किसी गमले में, खिल भी गये सुमन क्या होगा॥
मुक्तक-
नहाये धोए क्या भैया, जो मन मैल न जाय।
मीन सदा जल में रहे, धोए बास न जाय॥
मन की चाल अटपटी, झपटपट लसै न कोय।
जो मन की खटपट मिटे तो, चटपट दर्शन होय॥