धियो वोन्मथ्याच्छागम निगम मन्त्रान सुमतिवान् ।
विजानोयात्तत्वं विमल नवनीत परिमिव ।।
यतोऽस्मिन् लोके वैसंशयगत विचार स्थलशते ।
मतिः शुदैवाञ्छा प्रकट यति सत्यं सुमन से ।।
अर्थ—वेद शास्त्रों को बुद्धि से मथकर मक्खन के समान उत्कृष्ट तत्व को जाने, क्योंकि शुद्ध बुद्धि से ही सत्य को जाना जाता है।
कई बार ऐसे अवसर सामने आते हैं कि परस्पर विरोधी विचारधाराओं के सामने आ जाने पर बुद्धि भ्रमित हो जाती है और यह निर्णय नहीं हो पाता कि इनमें से किसे स्वीकार तथा किसे अस्वीकार करें।
गायत्री का ‘धियो’शब्द विवेक की कसौटी हमारे हाथ में देता है और आदेश करता है कि किसी भी पुस्तक या व्यक्ति की अपेक्षा विवेक का महत्व अधिक है। इसलिए जो बात बुद्धि संगत हो, विवेक सम्मत हो, समझ में आने योग्य हो, उचित हो केवल उसी को ग्रहण करना चाहिए। देश, काल और परिस्थिति का ध्यान रखकर समय-समय पर आचार्यों ने उपदेश किये हैं। इसलिए जो बात एक समय के लिए बहुत उपयोगी एवं आवश्यक थी वह दूसरे समय में अनुचित, अनावश्यक हो सकती है। जाड़े के दिनों में पहने जाने वाले गरम ऊनी कपड़े गर्मी में हानिकारक हैं, इसी प्रकार गर्मी की हलकी पोशाक को ही जाड़े के दिनों में पहने रहना निमोनिया को निमन्त्रण देना है। अपने समय में जो पोशाक आवश्यक होती है वही काल और परिस्थिति बदल जाने पर त्याज्य हो जाती है।
अनेकों परम्पराएं, प्रथाएं, रीति-रिवाजें ऐसी प्रचलित हैं जो किसी समय भले ही उपयुक्त रही हों पर आज तो वे सर्वथा अनुपयोगी एवं हानिकारक ही हैं। ऐसी प्रथाओं एवं मान्यताओं के बारे में ऐसा न सोचना चाहिए कि ‘‘हमारे पूर्वज इन्हें अपनाते रहे हैं तो अवश्य इनका भी कोई महत्व होगा इसलिए हम भी इन्हें अपनाये रहें।’’ हमें हर बात को वर्तमान काल की आवश्यकताओं और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही निर्णय करना चाहिए।
भले और बुरे की, हानि और लाभ की, मित्र और शत्रु की, सच्चे और झूठे की पहचान केवल विवेक ही करा सकता है। आकर्षणों, प्रलोभन, तृष्णा, विकारों, भ्रांतियों, खतरों से सावधान करके हमें पतन के गहरे गड्ढे में गिरने से बचाने की शक्ति केवल विवेक में ही है। विवेक हमारा सच्चा मित्र है। वह भूलें सुधारता है, मार्ग सुधारता है, उलझने सुलझाता है, खतरे से बचाता है और सफलता की ओर अग्रसर करता है। ऐसे मित्र की आवश्यकता समझना, उससे प्रेम करना और उसे अधिक से अधिक आदर के साथ समीप रखना यह हमारे लिए सब प्रकार से कल्याणकारक हो सकता है।
गायत्री के ‘धियो’ शब्द का आदेश है कि हम विवेकवान बनें, विवेक को अपनायें, विवेक की कसौटी पर कसकर अपने विचार और कर्मों का निर्धारण करें। इस शिक्षा को स्वीकार करना मानो अपनी जीवन दशाओं को शीतल, शान्तिदायक, मलय-मारुत के लिए उन्मुक्त कर देना है।