किउल रेलवे जंक्शन के रेलवे अस्पताल में एक कम्पाउण्डर थे राजेन्द्र प्रसाद। वह बहुत शराब पीते थे। एक बार टाटानगर के एक यज्ञायोजन में वे मेरे साथ गए। वहाँ पूज्यवर भी पधारे हुए थे। सुबह को प्रणाम क्रम चला तो लम्बी लाईन
बन गई। काफी देर की प्रतीक्षा के बाद गुरुदेव के दर्शन हुए।
चरण स्पर्श के लिए उनको और कुछ देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। लाइन
धीरे- धीरे आगे बढ़ रही थी। जब उनकी बारी आई तो उन्होंने गुरुवर
को प्रणाम किया। मगर गुरुदेव ने उनकी ओर नजर उठाकर नहीं देखा
और न कोई बात कही।
वे दुखी हो गए। लौटकर मुझसे कहने लगे कि हमने
गुरुजी को प्रणाम किया, मगर उन्होंने मेरी तरफ देखा तक नहीं। वे
दुबारा जाकर लाईन
में लग गए। जब गुरुवर के निकट पहुँचे तो उन्होंने कहा- बेटा,
तुम फिर आ गए? वे शर्म से पानी- पानी हो गए। जल्दी से प्रणाम
किया और वापस चले आए।
जाने क्या भाव आए उनके मन में, गुरुदेव ने उनकी
तरफ नहीं देखा- इसका क्या कारण सोचा उन्होंने, लेकिन इसके बाद
उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया। राजेन्द्र जी ने शराब पीना
बिल्कुल छोड़ दिया।
प्रस्तुति:- नर्मदा प्रसाद ओझा
पटना (बिहार)