वर्ष १९८० में ससुराल के एक भाई लाल बिहारी जी के माध्यम से मिशन की जानकारी हुई। तब से मैं पूर्णरूपेण गुरुजी एवं मिशन से जुड़ गई।
वर्ष १९८७ की बात है मुझे बोन टी०बी० हो गई थी। काफी इलाज कराया। कोई फायदा नहीं हुआ। मेरी बीमारी में करीब तेरह- चौदह हजार रुपये लग गए। लेकिन मैं ठीक नहीं हुई।
मेरे गाँव के लोग शान्तिकुञ्ज आ रहे थे। लालबिहारी जी को मेरी बीमारी की जानकारी थी। उन्होंने कहा- तुम परेशान मत होओ। वंदनीया माताजी के पास चले जाओ। वे स्पर्श कर देंगी, तुम्हारी बीमारी ठीक हो जाएगी। मैं ९ दिन का सत्र करने आयी थी साथ में काफी लोग थे। मैंने नौ दिन का सत्र पूरा किया। सत्र के दौरान मैं माताजी से मिली तो उन्हें अपने बीमारी के बारे में बताया। माताजी ने मुझे प्यार से स्पर्श किया और कहा- ‘बेटी चिंता मत करो, तुम हमारा काम करो हम तुम्हारा काम करेंगे’।
मैंने सोचा मुझे संस्कृत नहीं आती, पढ़ना नहीं आता, कैसे काम करूँगी! लेकिन माताजी की कृपा से घर आते ही मेरी बीमारी ठीक हो गई। मेरा बोन कैंसर छू मंतर हो गया। धीर- धीरे मैंने कर्मकाण्ड आदि करना भी सीख लिया। आज का मेरा यह जीवन माँ की कृपा से वरदान के रूप में मिला हुआ है।
गुरुकृपा का वर्णन मैं कर नहीं सकती। मैं तब से आज तक गुरुकार्य में संलग्न हूँ।
प्रस्तुति: कलावती देवी
रोहतास (बिहार)