मैं अपने परिवार के साथ मई २००४ में शान्तिकुञ्ज दर्शन करने आया। हमें याद है, मैं शान्तिकुञ्ज में चार- पाँच दिन रुका था। १८ मई को वापस बलरामपुर अपने सरकारी आवास पर पहुँच गया। रास्ते की थकान होने के कारण हमें काफी सुस्ती महसूस हो रही थी। इसी बीच भाई की पत्नी भी आ गई। उसे मालूम हुआ कि हम लोग शान्तिकुञ्ज से वापस आ गए हैं। इसलिए एक दिन के लिए मिलने चली आई थी। उस दिन रुककर २० तारीख शाम को ४ बजे वापस चली गई।
चूँकि हम लोग काफी थके हुए थे, इसलिए उस दिन जल्दी खाना बन गया। हम लोग खा- पीकर जल्दी सो गए। रात में, करीब १२- १ बजे का समय रहा होगा- सात- आठ अज्ञात लोग अचानक मेरे घर में घुस आए। घर में आवाज सुनकर मैं हड़बड़ाकर जाग उठा। मेरी पत्नी और लड़का सो रहा था। मैं बहुत घबड़ा गया था। सोचा उठकर शोर मचाऊँ, तो शायद कोई पड़ोसी ही पहुँच जाए। इतने सारे हथियार बंद लोगों के सामने मेरी क्या औकात थी? उन लोगों ने मेरी आँखों के सामने मेरी पत्नी के हाथ पैरों को बाँध दिया। उसने उठकर चिल्लाने की कोशिश की तो मुँह पर टेप चिपका दिया। मैंने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो उन लोगों ने कट्टे के बट से मेरी कनपटी पर वार कर दिया, जिसके कारण मेरे सिर से खून की धार बह निकली। मेरी स्थिति को देख पत्नी अचेत हो गई। मैं अन्दर से बुरी तरह काँप उठा। मुझे लगा कि अब मेरा परिवार तो गया। मैं बुरी तरह जख्मी हो गया था। मेरी दोनों लड़कियाँ दूसरे कमरे में सो रही थीं। मेरा मन आशंका से भर उठा कि वे लोग अब न जाने क्या करें? शरीर से खून बह जाने के कारण कमजोर इतना हो गया था कि उठा भी नहीं जा रहा था। वे लोग मुझे साक्षात् यम के दूत की तरह से लग रहे थे।
अब पूज्य गुरुदेव को पुकारने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। मैं व्याकुल होकर कह उठा- हे गुरुदेव! मैंने कौन सा अपराध किया है, जिसका मुझे इस तरह दण्ड मिल रहा है। अब तो मेरे परिवार का अन्त हो जाएगा। आपके रहते ऐसा कैसे सम्भव है? मेरे मन में न जाने कितने भाव आ रहे थे! इधर मैं प्रार्थना में तल्लीन था। इस बीच घटना ने किस तरह मोड़ लिया यह मैंने बाद में अपनी पत्नी से सुना। मुझे चोटिल देख उसे मूर्छा आ गई थी। मूर्छा में ही उसने सुना कि बाहर से कोई दरवाजा खोलने के लिए कह रहा है। फिर पता नहीं कैसे दरवाजा अपने आप खुल गया। उसने देखा कि स्वयं गुरुदेव कमरे में प्रवेश कर रहे हैं। सफेद धोती कुर्ता पहने हुए हैं। उनको देखते ही पत्नी की मूर्छा टूट गई। वह चिल्लाई गुरुदेव- गुरुदेव! इतने में सारे बदमाश अचानक डर गए। वे समझे इन लोगों को बचाने वाले आ गए।
इतना सब कुछ होने के बावजूद कोई व्यक्ति सहायता के लिए नहीं पहुँचा था। अचानक मैंने देखा कि कर्नल साहब का चपरासी अन्दर चिल्लाते हुए आया कि क्या बात है? न जाने मुझमें कहाँ से हिम्मत आ गई। मैं एक ईंट उठाकर बदमाशों के पीछे- पीछे भागा। पता नहीं कैसी कृपा गुरुदेव की हुई कि थोड़ी देर पहले मैं डर के मारे परेशान था, बोलने की हिम्मत नहीं थी। मैंने उन लोगों को बहुत दूर तक दौड़ा दिया। वे लोग डर कर भाग गए।
इतना घाव एवं रक्त बहने के बावजूद मैं कपड़े से अपने सर को पकड़े हुए एक हाथ से जीप चलाते हुए थाने पहुँच गया। वहाँ मैंने रिपोर्ट लिखवाई। मेरे दिमाग में काफी चोट आने के कारण मेरा दिमागी संतुलन बिगड़ गया था। मुझे बात भूलने की समस्या हो गई थी। लेकिन धीरे- धीरे गुरुकृपा से सब सामान्य हो गया। सभी बदमाश पकड़े गए। मुकदमा चला लेकिन बाद में मंैने मुकदमा समाप्त करा दिया। सभी को बाद में बरी करवा दिया।
मुझे अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास हो गया था। जब उनकी कृपादृष्टि है तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता। मैं किसी को दण्ड क्यों दूँ। सारा न्याय तो ऊपर वाले के हाथ में है। इस प्रकार गुरुकृपा से थोड़े दिनों के भीतर सारी परिस्थितियाँ सामान्य हो गईं। अगर गुरुजी का सहारा न होता तो हमारे परिवार का न जाने क्या हाल होता! इस घटना के बाद से मेरी श्रद्धा गुरुदेव के प्रति हमेशा के लिए बँध गई।
प्रस्तुति:- सुरेश कुमार सोनी
तहसीलदार, धामपुर बिजनौर (उ.प्र.)