सूर्य चिकित्सा विज्ञान

चिकित्सा-विधि

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सूर्य चिकित्सा में रंगीन कांचों का कई प्रकार से प्रयोग किया जाता है। पीड़ित स्थान पर समस्त शरीर पर रंगीन रोशनी दी जाती है। किसी एक स्थान पर रोशनी देने के लिए एक-एक फुट लंबा चौड़ा शीशा लेना चाहिए। इसके किनारों पर चौखट जड़वा लिया जाए और दोनों तरफ पकड़ने के लिए दस्ते लगे हों, यदि चटकनीदार चौखट बनवाया जाए तो एक ही चौखट में आवश्यकतानुसार बदल-बदल कर कांच लगाए जा सकते हैं, अन्यथा सब रंग के कांच अलग-अलग चौखटों में फिट होने चाहिए।

कांच को धूप में रखना चाहिए और पीड़ित अंग को उसके नीचे रखकर प्रकाश देना चाहिए। यदि थोड़े ही स्थान पर प्रकाश देना है तो कांच का उतना ही भाग खुला रख कर शेष भाग के ऊपर कोई मोटा कागज, बसली, चमड़े या लकड़ी आदि का टुकड़ा रख देना चाहिए। इस कार्य के लिए एक छोटा कमरा भी खासतौर से बनाया जाता है। इसमें जंगल की तरफ धूप का ध्यान रखते हुए बड़े-बड़े कांच लगाए जाते हैं। कमरे के तमाम दरवाजे और खिड़कियां बिल्कुल बंद कर दिए जाते हैं, जिससे आवश्यक रंग के अतिरिक्त और कोई किरण उसमें प्रवेश न करने पाए। रंगीन कांच में होती हुई किरणें कमरे के अंदर जाती हैं जिन्हें रोगी अपने पीड़ित भाग या समस्त शरीर पर लेता है।

रोशनी का तीसरा तरीका लालटेन का है। एक लालटेन इस प्रकार बनवानी चाहिए कि जो तीन तरफ से बंद हो और सामने की ओर एक गोल कांच लगा हो। यह कांच गोलाई लिए हुए बीच में उठा हुआ और किनारों पर पतला जैसा कि साईकिल की लैंप का होता है, हो सके तो और भी अच्छा है। इस लालटेन के भीतर बत्ती जलानी चाहिए। जलाने में तेल किसी भी किस्म का इस्तेमाल किया जा सकता है। फिर भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उस तेल का धुआं कमरे की वायु को विषैला बनाने वाला न हो।

 यूरोप अमरीका आदि ठंडे मुल्कों में जल कई-कई दिन मौसमी खराबी से सूर्य दर्शन नहीं होते, तब इन लालटेनों द्वारा प्रकाश लेकर काम चलाया जाता है। रात के समय जब किसी रोगी को प्रकाश देने की आवश्यकता पड़ जाए तो इन लालटेनों से काम चलाया जा सकता है। मस्तिष्क संबंधी और तंतुजाल की बीमारियों में इस उपचार से आश्चर्यजनक लाभ होता है। रंगीन बोतलों द्वारा पानी, दूध, तेल, शक्कर, मक्खन या अन्य दवाएं तैयार की जाती हैं। जमीन पर लकड़ी का तख्ता रखकर उस पर बोतलें रखनी चाहिए।

पानी तैयार करने के लिए 8 घंटे बोतलें धूप में रखनी चाहिए। यह ऐसे स्थान पर रखनी चाहिए जहां निर्बाध रूप से दिनभर धूप रहे। छतों पर बोतलें तैयार करना अधिक उपयुक्त है, क्योंकि ऊंचे स्थान पर एक तो दूसरी चीज की छाया नहीं पड़ती, दूसरे धूल आदि भी वहां नहीं पहुंचती है। अलग-अलग रंग की बोतलों को एक दूसरे से इतनी दूर रखना चाहिए कि किसी की छाया किसी के ऊपर न पड़े, यदि एक रंग की छाया दूसरे पर पड़ेगी तो निश्चय ही उसका गुण जाता रहेगा। बोतलों को खूब साफ करके उनमें स्वच्छ जल भरना चाहिए और कड़ा कार्क बंद करके साफ स्थान पर रखे हुए लकड़ी के तख्ते के ऊपर उन्हें अलग-अलग रख देना चाहिए।

आठ घंटे में जल औषधि स्वरूप बन जाता है। तेल को 10 दिन, घी को 6 दिन, शक्कर को एक सप्ताह, किसी दवा को आठ दिन लगातार धूप में रखना चाहिए। यदि एक ही अलमारी या संदूक में उन्हें रखना हो तो सब रंगों के लिए अलग-अलग खाने होने चाहिए। इस बात की खास सावधानी रखनी चाहिए कि तैयार बोतलों के ऊपर दीपक या किसी अन्य प्रकार का प्रकाश न पड़ने पाए। तैयार किया हुआ पानी तीन दीन बाद काम में नहीं लेना चाहिए, वह गुणहीन हो जाता है। अन्य वस्तुएं चार छह महीने तक काम दे सकतीं हैं। इसके बाद उन्हें भी गुणहीन समझना चाहिए।

 पानी को छोड़कर अन्य वस्तुएं पंद्रह दिन धूप में रखकर तैयार की जा सकती हैं। वे जितने अधिक दिन धूप में रखी जाएंगी, उतनी अधिक शक्ति वाली होंगी, किंतु पंद्रह दिन बाद वह वस्तु अपनी शक्ति खोने लगेगी। सूर्य चिकित्सकों को शक्कर आदि भी तैयार करके रख लेनी चाहिए। सफल में या वर्षा ऋतु में जब जल तैयार नहीं किया जा सकता, यह वस्तुएं पर्याप्त सहायता करती हैं। शक्कर के स्थान पर होमियोपैथी में काम आने वाली ‘शूगर आफ मिल्क’ की गोलियां तैयार कर ली जाएं तो वह और भी अधिक उपयुक्त हैं।
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