सूर्य चिकित्सा विज्ञान

आकस्मिक रोग

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शरीर के स्वस्थ होते हुए भी कई बाधाएं अचानक उठ खड़ी होती हैं। उनके उपाय जान लेना भी आवश्यक है। आग से कोई भाग जल जाने पर नीले पानी को नारियल के तेल में मिलाकर लगाना चाहिए या नीले रंग की बोतल में मक्खन तैयार करके उसे मरहम की तरह लगाना चाहिए। सांप के काटने पर उसको चीरकर खून निकाल देना चाहिए, पर तीन चार जगह कस कर बांध देना चाहिए।

 खून निकल जाने के बाद नीले जल से धोकर उस स्थान पर नीले रंग के जल में भीगी हुई रुई की गद्दी बांधनी चाहिए तथा उसके आस-पास नीला प्रकाश देना चाहिए। बिच्छू, बर्र, मधु मक्खी आदि के काटे हुए स्थान में से सुई के सहारे डंक निकाल लेना चाहिए, तत्पश्चात वहां नीले पानी की गद्दी बांध देनी चाहिए। पागल कुत्ते या स्यार के काटे हुए स्थान पर हरे रंग का प्रकाश देना, हरे तेल का फाहा बांधना तथा हरा पानी पिलाना उचित है। ठंडक में से निकल कर एक दम तेज धूप में चले जाने या बहुत देर तक कड़ी धूप में रहने से लू लग जाती है।

ऐसी दशा में नीले रंग की शकर में नीला पानी मिलाकर शर्बत की तरह 50-50 मि.ली. की मात्रा दिन में चार बार पीना चाहिए। उन्माद रोग, चित्त भ्रम या भूत आदि लग जाने की दशा में रात के समय नीला प्रकाश देना चाहिए। इस कार्य के लिए साईकिल की लैम्प जैसी एक बड़ी लालटेन बनवा लेनी चाहिए। वह तीन ओर से बंद हो और सामने बड़ा गोल कांच लगा हो। इस कांच के पीछे नीला शीशा लगा देने पर नीली रोशनी होती है।

मस्तिष्क के पिछले भाग पर यह रोशनी डालने से मस्तिष्क संबंधी विकारों में अपूर्व लाभ होता है। यदि किसी पर भूत आदि का विशेष प्रकोप हो तो इसी लालटेन में लाल रंग का कांच लगाकर उस पर देखने के लिए रोगी से कहना चाहिए। अपने भ्रम के अनुसार उसे उस कांच पर अपने मानसिक चित्र में भूत आदि दिखाई देंगे। इसी समय रोगी को आश्वासन देना चाहिए कि तुम्हारा भूत इस लालटेन में बंद करके जला दिया गया है, आदि बात कह कर उसका भ्रम दूर कर देना चाहिए। इस प्रकार बहुत रोगी अच्छे हो जाते हैं।
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