सूर्य स्वस्थता एवं जीवनी शक्ति का भण्डार है। उसकी किरणों द्वारा पृथ्वी पर अमृत बरसता है। सृष्टि में जो स्फूर्ति, हलचल, विकास, वृद्धि एवं तेजस्विता दिखाई पड़ रही है, उसका स्रोत सूर्य है। सूर्य का संबंध यदि पृथ्वी से हटा दिया जाए तो भूतल पर एक भी जीव का अस्तित्व नहीं रह सकता। तब बर्फ का यह अंधकारमय गोला एक निकम्मी स्थिति में पहुंचकर अपने अस्तित्व को खो बैठने के लिए बाध्य होगा।
वैदिक साहित्य में पृथ्वी को रज और सूर्य को वीर्य की उपमा दी गई है। पृथ्वी की उत्पादक शक्ति में प्राण डालने वाला यह सविता-सूर्य ही है।
जो प्राणी सूर्य के जितने ही निकट संपर्क में रहते हैं, उतने ही स्वस्थ एवं सजीव पाए जाते हैं। जिन पेड़-पौधे, लताओं को सूर्य का प्रकाश नहीं मिला, वे या तो बढ़ते पनपते ही नहीं, यदि बढ़े पनपे तो उनमें चैतन्यता, ताजगी एवं जीवन शक्ति नहीं रहती। सूर्य के प्रकाश से वंचित रहने वाले प्राणी प्रायः पीले, निस्तेज, मुरझाए हुए, बीमार और अविकसित रहते हैं।
डॉक्टर मूर ने सूर्य की दिव्य शक्तियों का वैज्ञानिक ढंग से चिकित्सा में प्रयोग करके अद्भुत सफलता पाई है। उन्होंने लिखा है कि जिस बालक को धूप से बचाकर रखा जाता है, वह सुंदर और बुद्धिमान बनने के बजाए कुरूप और मूर्ख बनता है। स्विट्जरलैंड में जहां सूर्य की सीधी किरणें नहीं पहुंचती, वहां की अंधेरी कोठरियों में जो लोग निवास करते हैं उनकी मूर्खता भरी बात देख-सुनकर वहां पर पहुंचने वाले यात्री आश्चर्य से चकित रह जाते हैं। उनमें अनेक लोग साफ-साफ बोल नहीं पाते, अनेक अंधे होते हैं, अनेक बहरे तथा कुरूप। गांवों में खुले प्रकाश में रहने वाले गरीब किसान का स्वास्थ्य शहर की अंधेरी कोठरियों में रहने वाले धनवानों से कहीं अच्छा होता है।
यह सर्वविदित है।
सर जेम्स वाथ ने अपने अनुसंधान की रिपोर्ट में लिखा है कि सेन्ट पीटर्स वर्ग में जो सैनिक बिना प्रकाश वाले स्थानों में रहते थे, वे प्रकाशवान स्थान में रहने वाले सैनिकों की अपेक्षा तीन गुनी अधिक संख्या में मरते थे। महामारी फैलने पर देखा जाता है कि अंधेरे मुहल्लों और अंधेरे मकानों में बीमारी और मृत्यु का प्रकोप सबसे अधिक रहता है। डॉक्टर ऐलियर के चिकित्सालय में ऐसे रोग भी सूर्य किरणों द्वारा ही अच्छे किए जाते हैं, जिनके लिए कि डाक्टरों के पास आपरेशन के अतिरिक्त और कोई इलाज नहीं। चीन के डॉक्टर फीनसीन ने धूप की सहायता से इलाज करने में बड़ी भारी ख्याति प्राप्त की है। उनका कथन है कि जब सूर्य की किरणें बिना मूल्य अमृत बरसाती हैं, तो फिर विषैली, खर्चीली, कड़वी और कष्टसाध्य दवाओं को लोग क्यों सेवन करते हैं, यह मेरी समझ में नहीं आता।
भारतीय सभ्यता में शरीर को खुला रखने की प्रथा थी। किसी भी देवता या महापुरुष का चित्र देखिए आपको लज्जा निवारण के कटि वस्त्र के अतिरिक्त प्रायः उनके सब अंग खुले हुए मिलेंगे। हमारे पूर्वज शरीर को खुला रखते थे, ताकि सूर्य किरणों में प्रकाश द्वारा जो अमृत वर्षा होती है उसे शरीर ठीक प्रकार ग्रहण कर सके। इससे स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा लाभ होता है। रोगों के कीटाणु सूर्य किरणों के संपर्क में आकर बच नहीं सकते। चर्म रोग उन्हें नहीं होते जो शरीर को खुला रखते हैं। जुकाम, दमा, खांसी, क्षय तथा फेफड़े और आंतों के रोग खुले बदन वालों को आसानी से नहीं होते।
झूठी और हानिकर फैशन के चक्कर में पड़कर लोग वस्त्रों की भरमार करते हैं। इतने कपड़े लादे जाते हैं कि प्रकाश और हवा का शरीर से स्पर्श ही न हो सके। बच्चों को भी झूठी सजावट और शेखी के मारे अनावश्यक कपड़े पहनाए जाते हैं, इससे शरीर की वृद्धि में बाधा पड़ती है, सहन शक्ति घटती है और देह मुरझाकर पीली पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में बीमारी के कीटाणु निश्चिंततापूर्वक पलते रहते हैं और चुपके-चुपके शरीर को खोखला करते रहते हैं।
स्वास्थ्य कायम रखने और बीमारियों से बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम धूप और प्रकाश से बचकर न भागें, वरन् उसके निकट संपर्क में आएं। ग्रीष्म ऋतु की दोपहरी में पड़ने वाली असह्य धूप को छोड़कर शेष समय सूर्य की दृष्टि के सामने रहना चाहिए।
प्रातःकाल की धूप तो अति उत्तम है। प्रातःकाल की सुनहरी धूप स्वस्थ और बीमार दोनों के लिए ही समान रूप से उपयोगी है। बीमारों को यदि सवेरे की धूप में तेज हवा से बचाते हुए स्नान कराया जाए, तो उनके लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है।