सूर्य चिकित्सा विज्ञान

सूर्य चिकित्सा विज्ञान

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सूर्यआत्मा जगस्तस्थुषश्च । यजु0 7।42 सूर्य संसार की आत्मा है। संसार का संपूर्ण भौतिक विकास सूर्य की सत्ता पर निर्भर है। सूर्य की शक्ति के बिना पौधे नहीं उग सकते, अण्डे नहीं बढ़ सकते, वायु का शोध नहीं हो सकता, जल की उपलब्धि नहीं हो सकती अर्थात् कुछ भी नहीं हो सकता। सूर्य की शक्ति के बिना हमारा जन्म होना तो दूर, इस पृथ्वी का जन्म भी न हुआ होता।
प्रकृति का केन्द्र सूर्य है। इसकी समस्त शक्तियां सूर्य से ही प्राप्त हैं। आत्मा के बिना शरीर का अस्तित्व नहीं हो सकता, उसी प्रकार जगत की सत्ता सूर्य पर अवलंबित है। भोंरा अपना जीवनरस प्राप्त करने के लिए फूल के चारों ओर जिस प्रकार मंडराया करता है, उसी प्रकार पृथ्वी अपनी जीवनरक्षा के उपयुक्त सामग्री पाने के लिए सूर्य की परिक्रमा किया करती है। धरती यदि हमारी माता है, तो सूर्य पिता है, दोनों के रज वीर्य से हम जीवन धारण किए हुए हैं।

 शारीरिक रसों का परिपाक सूर्य की गर्मी से होता है। शक्तियों का विकास, अंगों की परिपुष्टि और मलों का निकलना उसी महत शक्ति पर निर्भर है। यह तो हुई हमारे शरीर और उसके जीवित रहने के साधनों के विकास और परिपुष्टि की बात। यह साधारण क्रम सभी जड़-चेतन जीवधारियों के जीवन में भी चलता रहता है। जब संकटपूर्ण दिशाएं आती हैं, तब सूर्य से हमें असाधारण मदद मिलती है। भगवान भास्कर में इतनी प्रचंड रोग नाशक शक्ति है, जिसके बल से कठिन से कठिन रोग दूर होते हैं। दूर जाने की जरूरत नहीं, भूखे-प्यासे रहकर काम करने वाले किसान जिन्हें बहुमूल्य पौष्टिक पदार्थों के दर्शन दुर्लभ होते हैं और दिन रात कठोर कार्य में पिले रहते हैं फिर भी स्वस्थ और हट्टे-कट्टे रहते हैं, बीमारी उनके पास भी नहीं आती।

यदि कोई रोग हुआ तो दो चार दिन बिना दवा के अपने आप ही अच्छा हो जाता है। इसके विपरीत शहरों में रहने वाले वे लोग जो दिनभर छाया में रहते हैं, पौष्टिक पदार्थ खाने और पूरा आराम करने के बावजूद भी बीमार पड़े रहते हैं। पेट की शिकायत भोजन हजम न होने, टट्टी साफ न आने की शिकायत तो प्रायः शत प्रतिशत लोगों को होती है। धातुस्राव, जुकाम, रक्तहीनता और मेदवृद्धि आदि बीमारियां भी उनमें अधिकांश को घेरे रहती हैं। तपेदिक और निमोनिया से जितने शहरी लोग मरते हैं, उतने ग्रामीण नहीं। सब जगह पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का स्वास्थ्य खराब पाया जाता है।

 इन सबका एक ही कारण है, सूर्य रश्मियों का अनादर। जब से हमने धूप में रहना असभ्यता और बंद जगहों में निवास करना सभ्यता में शामिल किया है, तब से अपने बहुमूल्य स्वास्थ्य को गंवा दिया है। सभ्यता के चक्कर में पड़कर हमने सूर्य का तिरस्कार किया, फलस्वरूप स्वास्थ्य ने हमारा तिरस्कार कर दिया। स्वस्थ जीवन बिताने के लिए सूर्य की सहायता लेने की हमें बड़ी आवश्यकता है। इस महत्त्व को समझकर हमारे प्राचीन आचार्यों ने सूर्य प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, सूर्य उपासना, सूर्य योग, सूर्य चक्र वेधन, सूर्य यज्ञ आदि अनेक क्रियाओं को धार्मिक स्थान दिया था। डॉक्टर सोले कहते हैं कि सूर्य में जितनी रोग नाशक शक्ति मौजूद है, उतनी संसार की किसी वस्तु में नहीं है। कैंसर, नासूर और भगंदर जैसे दुस्साध्य रोग जो बिजली और रेडियम के प्रयोग से भी ठीक नहीं किए जा सकते थे, वे सूर्य किरणों का ठीक प्रयोग करने से अच्छे हो गए। तपेदिक के डॉक्टर हरनिच का कथन है कि ‘पिछले तीस वर्षों में मैंने करीब-करीब सभी प्रसिद्ध औषधियों को अपने चिकित्सालय में आए हुए प्रायः 22 हजार रोगियों पर अजमा डाला, पर मुझे उनमें से किसी पर भी पूर्ण संतोष न हुआ। जब गत तीन वर्षों से मैंने सूर्य-चिकित्सा प्रणाली का उपयोग अपने मरीजों पर किया है। फलतः मैं यह कह सकने को तत्पर हूं कि सूर्य-शक्ति से बढ़कर टी.बी. के लिए और कोई औषधि नहीं है।’ डॉक्टर होनग ने लिखा है कि ‘रक्त का पीलापन, पतलापन, लोह की कमी, नसों की दुर्बलता, कमजोरी, थकान, पेशियों की शिथिलता आदि की बीमारियों में मैंने पाया कि सूर्य की मदद से इलाज करना ला जवाब है।’ लेडी कीबो जो अमेरिका की प्रसिद्ध चिकित्सक हैं, अपने अनुभवों की पुस्तक में लिखती हैं कि ‘इस वर्ष मेरे इलाज में करीब 2 दर्जन लोग ऐसे आए जो बिल्कुल दुबले हो रहे थे, जिनकी चमड़ी लटक रही थी और हड्डियां टेड़ी पर गई थीं। जांच करने पर पता लगा कि इन्हें धूप से वंचित रखा गया। मैंने सलाह दी कि प्रातःकाल एक घंटे तक इन्हें नंगे बदन धूप में टहलाया जाए और खुल हवा में इन्हें घूमने फिरने दिया जाए। इस उपाय से उनकी तंदुरुस्ती दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी और कुछ ही दिनों में बिल्कुल स्वस्थ हो गए।’ मियो अस्पताल के सिविल सर्जन एफ. प्रिवेल्ड ने एक पुस्तक में अपना अनुभव लिखते हुए कहा है कि ‘सूरज की धूप का अगर ठीक तौर से इस्तेमाल किया जाए तो सेहत दुरुस्त रह सकती है और अगर किसी किस्म की बीमारी हो जाए तो भी वह धूप के जरिए दूर हो सकती है।’ प्रसिद्ध दार्शनिक न्योचि का मत है कि जब तक दुनिया में सूरज मौजूद है, तब तक लोग व्यर्थ ही दवाओं की तलाश में भटकते हैं। उन्हें चाहिए कि इस शक्ति, सौंदर्य और स्वास्थ्य के केन्द्र सूर्य की तरफ देखें और उसकी सहायता से अपनी असली अवस्था को प्राप्त करें। भारतवासी भगवान सूर्य के इस अद्भुत रहस्य से अपरिचित नहीं हैं। गुरु लोग बालकों को अपराध करने पर धूप में खड़ा रहने का दण्ड देते थे। योगी लोग धूप में तप करते थे। यह करने से पूर्व सूर्य की रोगनाशक शक्ति के बारे में विचार कर लिया गया था। सूर्य-उपासना से कष्ट साध्य रोग नष्ट हो जाने और सुवरण काया हो जाने की बात घर-घर में प्रचलित है उस पर विश्वास किया जाता है।
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