मासिक धर्म का कम होना या बिल्कुल न होना, बहुत कमजोरी के कारण होता है। दोनों ही अवस्था में प्रातः और सायंकाल नारंगी रंग का पानी देना चाहिए। मासिक धर्म के समय पेड़ू में दर्द होने की बीमारी में भी नारंगी रंग का पानी बहुत लाभप्रद है। ऋतुकाल के एक सप्ताह पूर्व से लेकर ऋतु स्नान के एक दिन बाद तक इस जल का सेवन करना चाहिए।
यदि रक्त बहुत अधिक आता हो तो नीले पानी की गद्दी पेड़ू पर बांधना चाहिए और एक-एक घंटे बाद नीले पानी की मात्राएं देनी चाहिए। यदि रोग बहुत भयंकर हो और रक्त बहुत मात्रा में जाता हो तो पेड़ू पर नीले रंग का कपड़ा स्त्री को चित्त लिटाकर डाल देना चाहिए और नीले रंग का जल किसी पात्र में लटकाकर उसके पेंदे में छेद कर देना चाहिए। जिसमें से बूंद-बूंद पानी टपक कर पेड़ू पर बंधे हुए कपड़े पर गिरता रहे।
इस प्रकार पानी टपकने से बहुत जल्द रक्त बंद हो जाता है।
प्रदर रोग दो प्रकार का होता है। योनि से लाल या सफेद रंग का पानी धीरे-धीरे बहता रहता है। दोनों की चिकित्सा एक ही है। नीला पानी और उसी की गद्दी पेड़ू पर बांधना ही इसकी श्रेष्ठ चिकित्सा है।
पेड़ू में रक्त जमा हो जाने से गर्भ का मिथ्या भ्रम होता है। नारंगी रंग का सेवन करना और पेट पर नारंगी का रंग का प्रकाश डालना इसके लिए उपयोगी है।
जिन दिनों स्त्री के पेट में गर्भ हो उन दिनों दवा देने में बड़ी होशियारी की जरूरत है, क्योंकि थोड़ी-सी असावधानी होने पर गर्भ को हानि हो सकती है। इन दिनों स्त्री को ज्वर, दस्त, दाह, कै, अरुचि आदि साधारण शिकायतें हों तो नीले रंग की थोड़ी-थोड़ी मात्रा देनी चाहि