सावधानी और सुरक्षा

लापरवाही की हानिकारक आदत

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जागरूकता का अभाव ही असावधानी या लापरवाही कहा जाता है। ऐसे स्वभाव के आदमी में दो प्रकार के दोष और आ जाते हैं, वह है-(१) आगे-पीछे के कार्यक्रम की परवाह नहीं करना (२) अपने उत्तरदायित्व को अनुभव नहीं करना । जहाँ पहुँच गये बस वहाँ की बातों में उलझ गये । ताश खेल रहे हैं तो ताश में मशगूल हैं-कारखाने में मजदूरों द्वारा क्या नफा-नुकसान हो रहा होगा इसका ध्यान ही नहीं । जरूरी काम को छोड़कर दस मिनट के लिए किसी से मिलने गये हैं, तो वह जरूरी काम जहाँ जा तहाँ पडा़ हुआ है और दस मिनट की जगह एक घण्टे निरर्थक गप्प हाँकने में लगा दिये । लौट कर देखते हैं कि बहुत काम हर्ज हुआ । उस वक्त कुछ अफसोस भी करते हैं पर फिर वही रफ्तार । दूसरे दिन फिर वैसी ही लापरवाही । किसी रिश्तेदार या दोस्ती में दो रोज के लिए जावें तो दस रोज में लौटें । नियत समय पर उनका कोई भी काम नहीं हो पाता । स्नान, भोजन, सोना, जागना कुछ भी उनका समय पर नहीं होता । जीविका उपार्जन का जो व्यवसाय है वह भी ऐसा ही खंड-बंड हो जाता हे । दुकान पर कभी बैठते हैं, कभी नहीं बैठते, कोई सामान है, कोई बीता हुआ पड़ा है । निराश ग्राहक लौट जाते हैं । अगर कहीं नौकरी करते हैं तो देर में पहुँचते हैं समय पर ठीक तरह काम पूरा करके नहीं देते ऐसी दशा में असन्तुष्ट मालिक की झिड़कियाँ सुनने को मिलती हैं । ऐसी दशा में जीविका के जो साधन हैं उनसे बहुत थोड़ी आमदनी हो पाती है । न तो निराश लौटने वाले ग्राहकों को अधिक नफा मिल सकता है और न असन्तुष्ट मालिक वेतन बढ़ा सकता है । फल यह होता है कि लापरवाह व्यक्तियों को आर्थिक स्थिति गिरने लगती है और धीरे-धीरे वे दरिद्र बन जाते हैं ।

लापरवाह व्यक्तियों से अपने वचन का पालन नहीं हो सकता । क्योंकि हर एक वचन को पूरा करने के लिए वह समय ध्यान रखना पड़ता है जबकि उसे पूरा करना है साथ ही वह सामग्री भी जुटानी पड़ती है, जो वचन ला करने के लिए प्रस्तुत की जाने वाली है । लापरवाह मनुष्य पहले तो सोचता रहता है कि अभी क्या जल्दी है बहुत समय पड़ा हुआ है, इस काम को तो बहुत जल्द पूरा कर देंगे ऐसे ही, टालते-टालते समय बीतता चला जाता है और जब वचन पूरा करने की अवधि बिलकुल पास आ जाती है और तब उसके हाथ पैर फूल जाते हैं कि अब यह कार्य कैसे पूरा हो । अन्त में दाँत निपोर कर रह जाते हैं ।

जिनमें जागरूकता नहीं हैं उनकी सारी चीजें अस्त-व्यस्त रहती हैं । उनके निवास स्थान पर जाकर देखिये तो सारी चीजें इधर-उधर अस्त-व्यस्त कूड़े-कचरे की तरह जहाँ-तहाँ पड़ी होंगी । चूहे, दीमक, मकड़ी, छिपकली, कीड़े-मकोड़े उनकी चीजों का निर्द्वन्द्व उपयोग कर रहे होगे । बालों में चीलर, कपड़ों में जुएँ रेंग रहे होगे । शरीर पर जहाँ-तहाँ मैल-जम रहा होगा बदबू आ रही होगी देह पर कपड़े बेढंगे भद्दे और मैले-कुचैले होंगे । कहीं हजामत बढ़ रही तो कहीं बटन टूटे हुए हैं । जुते की सिलाई उखड़ गई है तो यह न बन पड़ेगा कि जल्दी हो उसकी मरम्मत करा लें भले ही वह कीमती जूता थोड़े ही दिनों में इस छोटी-सी भूल के कारण खराब हो जाय । इस प्रकार टूटी-फूटी, अस्त-व्यस्त, मैली-कुचैली दशा में उनकी वस्तुएँ पड़ी रहती हैं यदि कोई दूसरा व्यवस्था करने वाला न हो तो उनके चारों ओर दरिद्र महाराज छाये हुए दृष्टिगोचर होते हूँ ।

ऐसे लोग दूसरी के यहाँ अपनी चीजें पड़ी रहने देते हैं, अपने यहाँ किसी की चीज आ जाय तो लौटाते नहीं । यदि भाग्यवश खोने या नष्ट करने से बच गई तो बार-बार तकाजे होने पर टूटी-फूटी या खराब दशा में वापस करते हैं । जो एक दौर चीज उधार दे देता है वह आगे के लिए होशियार हो जाता है और फिर उन्हें देने को भूल नहीं करता । आये दिन उनकी चीजें गुम होती रहती हैं-अपने बुरे स्वभाव के कारण चीजों को यहाँ-तहाँ पटक देते हैं फिर जरूरत के वक्त बेतहाशा इधर- उधर ढूँढ़ते फिरते रहते हैं नहीं मिलती तो कभी किसी पर चिल्लाते हैं कभी किसी पर नाराज होते हैं । घर में चीज निबट गई हैं पर लाई नहीं जाती । ईंधन, अनाज, नमक, तेल आदि की पुकार पड़ी रहती है । लापरवाही का बड़ा भाई आलस्य है । मानसिक असावधानी को लापरवाही कहते हैं । इसमें में जब बढ़ोत्तरी होती है तो वह शरीर पर भी अपना कब्जा कर लेती है और परिश्रम करना बहुत बुरा लगने लगता है। छोटा या बडा़ कोई भी परिश्रम क्यों न हो जहाँ तक बन पड़ता है उसे टालते हैं । जब तक अत्यन्त उग्र प्रेरणा न हो तब तक मेहनत करने को देह नहीं उठती । अपना काम दूसरों से कराने के अवसर ताका करते हैं । शरीर को उठा कर इधर-उधर ले जाना ऐसा लगता है मानो पहाड़ उठाने का काम करना पड़ रहा हो । पलंग, आराम कुर्सी या गद्दी पर पड़े रहना उन्हें पसन्द होता हे । घर छोड़कर बाहर निकलना ऐसा प्रतीत होता है मानो मौत से युद्ध करने की मुसीबत उनके ऊपर आई हो । समय को वे निरर्थक गँवाते रहते हैं और हर काम को नियत अवधि से पीछे करते हैं । कई बार तो रेल आदि के टाइम से भी पिछड़ जाते हैं । शौच, स्नान, भोजन, शयन में भी उनका आलस्य साथ नहीं छोड़ता । नियत और उपयोगी समय पर उनका एक भी कार्य नहीं हो पाता, आलस्य में उनके जीवन-क्षण निरर्थक बरबाद होते रहते हैं ।

प्रमाद इन दोनों से भी आगे बढी़ हुई स्थिति है । जानबूझ कर, अधिक उपयोगी एवं आवश्यक कार्यों की धृष्टतापूर्वक उपेक्षा करना, उन्हें बिगड़ने देना प्रमाद कहलाता है । आलसी या लापरवाह व्यक्ति अपनी भूल के लिए कुछ पश्चात्ताप करता है । अन्यमनस्कता के कारण भूल करते समय उसे सूझ नहीं पड़ता कि इससे क्या अनर्थ होने की संभावना है । वह वस्तुस्थिति के दुष्परिणाम ठीक-ठीक अन्दाज नहीं लगा पाता और साधारण बात समझ कर नियत कार्य में ढील छोड़ देता है । किन्तु प्रमादी व्यक्ति बौद्धिक दृष्टि से उन सब बातों को जानता है, उसे अन्दाज होता है कि इस प्रकार की लापरवाही करने का क्या दुष्परिणाम हो सकता है ? फिर भी अपनी हेकड़ी के आधार पर उसकी परवाह नहीं करता । अहंकार, धृष्टता और निर्लज्जता की उसमें प्रधानता रहती है । वह घमण्ड के मारे दूसरों की हानि या घृणा को चिन्ता नहीं करता औरों को तुच्छ या नाचीज समझता है कर्तव्यपालन न करने पूर जो भर्त्सना होती है, उससे शर्मिन्दा होने के स्थान पर वह घृष्टतापूर्वक बेतुके जवाब देता है । अपनी भूल का निराकरण या सुधार करने के स्थान पर वह भर्त्सना करने वाले के दोष दिखाने लगता है । वह साबित करना चाहता है कि मैंने यह गलती की तो तुम अमुक गलती कर चुके हो, फिर तुम्हें मेरी आलोचना क्यों करनी चाहिए ?

लापरवाही, असावधानी, गैरजिम्मेदारी, आलस्य, प्रमाद जैसे भयंकर दोष 'जागृत तन्द्रा' के कारण पैदा होते हैं । यह साधारण दृष्टि से देखने पर बहुत छोटे मालूम पड़ते हैं, इनसे किसी भयंकर अनर्थ की आशंका नहीं मालूम पड़ती, इसलिए अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, परन्तु स्मरण रखना चाहिए कि 'छोटी-छोटी' आदतों से ही जीवन निर्माण होता है । छोटे-छोटे परमाणुओं के संघटन से कोई बड़ी वस्तु बनती है । पीले और नीले रंग के नन्हें-नन्हें परमाणु अमुक मात्रा में न्यूनाधिक रहें तो दूसरे प्रकार का रंग बनेगा । दवाओं में पड़ने वाली औषधियों में थोड़ा अन्तर कर दिया जाय तो उनके गुणों में भी भारी अन्तर आ जाता है । निशाना लगाते समय यदि बन्दूक की नाल एक जी भर नीची हो जाय तो निशाने तक गोली के पहुँचने में कई गज का अन्तर पड़ जाता है । इसी प्रकार छोटे-छोटे गुण और दोषों का अन्तर जीवन की अन्तिम सफलता में फर्क कर देता है ।

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