सावधानी और सुरक्षा

आलस्य और प्रमाद से बचकर रहिए

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
सावधानी और सुरक्षा का एक बहुत बड़ा शत्रु आलस्य है । आलसी आदमी अपनी सफलता और सुरक्षा की व्यवस्था कभी भली प्रकार नहीं कर सकता, क्योंकि वह काहिली के स्वभाव की वजह से कार्य करने के उचित अवसर का उपयोग नहीं कर सकता और जीवन भर फिसड्डी बना रहता है । बदमाश और धूर्त लोग भी ऐसे ही ढी़ले-ढा़ले व्यक्ति को अपना शिकार बनाने की कोशिश किया करते हैं ।

आलसी व्यक्ति के लिए किसी भी प्रकार की उत्कृष्टता प्राप्त करना कठिन है । कारण वह अपनी शक्तियों को आलस्य की केंचुली में ढके रहता है । उद्योग तथा परिश्रम द्वारा उन्हें विकसित नहीं कर पाता । जब तक उद्योग नहीं, परिश्रम में प्रवृत्ति नहीं तब तक शक्तियों का विकास नहीं हो सकता । आलस्य और उन्नति साथ-साथ नहीं चल सकते ।

आलस्य एक प्रकार का अन्धकार है, जो आत्मा पर शक्तियों पर और मनुष्य की भावी उन्नति एवं प्रगति पर तुषारापात कर देता है । आलसी पडा़- पड़ा यही सोचा करता है कि मेरा काम कोई अन्य व्यक्ति कर दे, मेरी तरक्की करा दे । बाजार से मेरे घर की नाना वस्तुएँ लादे, दफ्तर का काम भी अन्य कोई साथी हो कर दे । आलसी अफसर अपने छोटे मातहतों के वश में रहते हैं । दे जो पत्र या ड्राफ्ट लिख देते हैं, उसी पर हस्ताक्षर कर देते हैं । ठीक है या गलत, उचित है या अनुचित, क्या बातें लिख दी गई हैं यह भी नहीं देखते । बड़े-बड़े व्यापारियों के दिवाले प्राय: उनके हिसाब-किताब आय-व्यय का ठीक ब्यौरा न रखने के कारण निकलते हैं । वे उधार पर उधार दिये जाते हैं पर उसे वसूल करने में आलस्य करते रहते हैं । रकमें उत्तरोत्तर बढ़ती जाती हैं और अन्त में सारी पूँजी उधार बालों में बँट जाती है । आलसी माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई उन्नति आदि को नहीं देखते । फलत: बच्चे उतनी उन्नति नहीं कर पाते जितना वस्तुतः उन्हें करना चाहिए । यदि वे अपना आलस्य छोड़कर उन पर एक तीखी दृष्टि रखा करें, स्वयं भी काम में सहयोग देते रहें, तो पर्याप्त प्रगति हो सकती है ।

प्रकृति को देखिए उसका काम कैसा नियमबद्ध होता है । प्रत्येक बस्तु अपना-अपना निर्धारित कार्य निश्चित समय पर करती चलती है । आलस्य का नाम निशान तक नहीं । आलसी सदस्यों के प्रति प्रकृति बडी़ निष्ठुर है । आलसी की बड़ी दुर्गति होती है । अन्त में सजा के तौर पर वही मृत्यु दण्ड तक का विधान है । प्रकृति का प्रत्येक सदस्य अन्त तक अपना काम सक्रियता से करता है ।

उद्योगी और परिश्रमी व्यक्ति ही आपको सुखी और समृद्ध दिखाई देंगे । मनुष्य का जन्म भले ही निर्धन परिवार में हो, उसके पास जाति श्रेष्ठता या घर की जमीन जायदाद कुछ भी न हो, केवल उद्योग और श्रम की आदतें हों, आलस्य से मुक्त हो, तो वह धनाढ्य और कीर्ति प्राप्त कर सकता है । कीर्ति और लक्ष्मी श्रम और उद्योग के आधीन है । जो आलस्य नामक शिथिल करने वाली और शक्तियों को पंगु बनाने वाली आलसी वृत्ति को छोड़ेगा, वह निश्चय ही यश प्रतिष्ठा और कीर्ति प्राप्त करेगा ।

संसार के इतिहास को उठा देखिए । वे जातियाँ नष्ट हो गई, जो आलसी और विलासी बनीं । जिस जाति और समाज में आलस्य भर जाता है, वह यश, प्रतिष्ठा और नेतृत्व तीनों ही दिशाओं में अवनति के मार्ग पूर अग्रसर होता जाता है। इंद्रिय-सुख, विलास और आलस्य उसको जर्जर तथा अशक्त कर देते हैं ।

जिस कठिन कार्य के करने लिए तबियत में आलस्य उत्पन्न हो, उसे जरूर किया कीजिए । मान लीजिए आप मन में यह अनुभव करते हैं कि अमुक व्यक्ति से मिलने जाना आवश्यक है, तो मन को मोड़कर जरूर यह काम कीजिए । जिन-जिन पत्रों का उत्तर लिखना है, अवश्य ही उनका उत्तर लिखिए । लिखने में आलस्य कभी न कीजिए ।

आलस्य एक प्रकार की बुरी आदत मात्र है । मन शरीर दिमाग वाचा-सभी प्रकार के आलस्य हमारी आदतों के परिणाम हैं । यदि माता-पिता आरम्भ से ही बच्चों में अनुशासन रखें और उनका मानसिक व शारीरिक कार्य सतर्कता से कराने की आदतें डालें तो आगामी पीढ़ी भी सुधर सकती है ।

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118