सावधानी और सुरक्षा

बकवाद करना हानिकारक है

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अनेक व्यक्तियों में आवश्यकता से अधिक बोलने अथवा जरूरत हो या न हो व्यर्थ की बातचीत करते रहने की आदत होती है । यह प्रवृत्ति सावधानी और सुरक्षा की दृष्टि से बड़ी हानिकर है । ऐसा व्यक्ति अपना कोई भेद कदाचित ही गुप्त रख सकता है । उसकी सभी योजनाएँ अथवा कार्यक्रम पहले से सबको विदित हो जाते हैं और अगर किसी विरोधी की इच्छा हो तो वह उसे सहज में ही परास्त कर सकता है । इसके सिवा इस प्रकार की आदत होने से मनुष्य के मुँह से अनेक अप्रिय बातें भी निकल जाती हैं, जिनका परिणाम अशुभ होता है ।

बकवाद करने की तीन बुराइयाँ प्रत्यक्ष हैं । एक, मानसिक शक्ति खर्च होती है, दूसरे आत्म-निरीक्षण का अभाव होता है तीसरे भलाई न करके बुराई ही अधिक हो जाती है। इन तीनों बातों को निरन्तर घटाना आवश्यक है । जब तक हम किसी प्रकार की आदत के बुरे परिणाम को ठीक से मन में नहीं बैठा लेते, बहू आदत नहीं छूटती । उसे छुड़ाने के लिए अपने अचेतन मन में परिवर्तन करना आवश्यक है । जिस बात का लक्ष्य, क्रम और समय निश्चित हो वह बकवाद नहीं है, पर जब हम साधारणतः समाज में आते है, तब न तो हमारे बात-चीत करने का कोई लक्ष्य होता है न उसके विभिन्न पहलुओं का कोई क्रम होता है ओर न कोई समय की अवधि होती है । ऐसी अवस्था में मानसिक शक्ति का संचय नियम के पालन से होता है ।

मनुष्य-जन्म सर्वश्रेष्ठ माना गया है । इसमें आदमी जितनी भौतिक और आत्मिक उन्नति कर सकता है उतनी और किसी योनि में संभव नहीं । पर यह तभी सभ्य हो सकता है, जबकि मनुष्य सदैव सावधान और सतर्क रहे । जागरूक व्यक्ति ही अवसर से लाभ उठाकर असर हो सकता है और विघ्न-बाधाओं से अपनी रक्षा कर सकता है । असावधान, बेखबर, आलसी, लापरवाह व्यक्ति कभी उन्नति नहीं कर सकते । इसलिए उन्नति की कामना रखने वाले समझदार व्यक्ति का कर्तव्य है कि सदैव सावधान रहे ।
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