अब नयी उलट-पलट में यह होने जा रहा है कि मूर्धन्य वर्ग का बहुत बड़ा भाग युग चेतना से प्रभावित होगा और अपनी दिशा धारा को, उलट कर उस दिशा को अपनायेगा, जिसके लिए युग धर्म ने समझाया, पुकारा और ललकारा है। शक्ति की महिमा महत्ता सभी जानते हैं, वह जिस भी दिशा में कटिबद्ध होती है, उसी में सफलताओं के अम्बार लगा देती है। अब तक बिगाड़ की दिशा अपनाई तो उसमें भी चमत्कार कर दिखाया। अब यदि उनका मानस बदलता है, तो समझना चाहिए कि उस बदलाव का प्रभाव भी कम न पड़ेगा। वे ऐसी गतिविधियाँ भी अपना सकते हैं, जो उनके स्वयं के लिए तो श्रेयस्कर होती हैं, अगणित लोगों को भी अपने प्रभाव से प्रकाशित करेंगी।
साहित्यकार, प्रकाशक, मुद्रक, बुकसेलर एक संयुक्त वर्ग है। यह मिल-जुल कर ऐसे साहित्य का सृजन, प्रकाशन और वितरण करे जो युग धर्म के अनुरूप हो तो उसका प्रभाव भी शिक्षित वर्ग पर कम न पड़ेगा। अब तक इस वर्ग में से अधिकांश ने ऐसा मसाला प्रस्तुत किया है जो पाठकों को अंधविश्वासों और दुश्चिन्तनों की ओर धकेलता रहा है। उस प्रभाव से अगणित प्रभावित हुए हैं और बड़ा-सा लोक मानस उसी ढाँचे में ढला है। अब जब सांचा बदलेगा तो उसमें ढलने वाले पुर्जे दूसरे रंग ढंग के होंगे। सत्साहित्य कितना प्रेरक होता है। इसके साक्षी ईसाइयों, कम्युनिस्टों और क्रांतियाँ प्रस्तुत करते रहने वालों से पूछकर कारगर निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है।
-वाङ्मय २७-७/३०
धनवान चाहे तो कुटीर उद्योगों का ताना-बाना बुन कर लाखों करोड़ों को काम दे सकता है। वे शिक्षा संस्थान चला सकते हैं। प्रकाशन हाथ में लेकर वातावरण को बदल सकते हैं। लोक सेवियों को प्रश्रय दे सकते हैं। धनवानों से कहा जाय कि जिस चतुरता से उन्होंने उपार्जन किया है, उसी प्रकार दूरदर्शिता का आश्रय लेकर ऐसी सत्प्रवृत्तियों को अग्रगामी बनायें जिनसे नई हवा चल सके, नया वातावरण बन सके और नया युग बन सके।-वाङ्मय २७-७/३१