परिवर्तन की बेला में सर्वप्रथम आबादी घटाने की आवश्यकता पड़ेगी। अन्यथा प्रगति प्रयास कितने ही बढ़े-चढ़े क्यों न हों वे आवश्यकता की तुलना में कम ही पड़ते जायेंगे। पारस्परिक प्रतिस्पर्द्धा में वे आपस में लड़ मर कर महाविनाश के गर्त में गिरेंगे। तरीके जो भी अपनाये जायें आबादी को नियन्त्रित किये बिना कोई गति नहीं। समस्याओं का कहीं समाधान नही। बह्मचर्य, वानप्रस्थ, संयम, बचाव आदिजिससे जो बन पड़े, उसे यह सीखना और सिखाया जाना चाहिए कि शान्ति और प्रगति का समय वापस लाने के लिए प्रजनन को जिस प्रकार भी बन पड़े निरुत्साहित किया जाना चाहिए।
अगले दिनों भीमकाय कारखाने छोटे कुटीर उद्योगों का रूप अपना कर गाँव कस्बों में बिखर जायेंगे। तभी प्रदूषण रुकेगा और तभी हर हाथ को काम और हर पेट को रोटी मिलने का सुयोग बनेगा।
हर किसी को औसत नागरिक स्तर का निर्वाह स्वीकार करना पड़ेगा। अन्यथा विलास, दर्प, अपव्यय, प्रदर्शन की अंहकारिता के लिए नीति और अनीति से बहुत जोड़ने, जमा करने और खर्चने की हविश में जिन्दगियाँ खप जायेंगी। सादा जीवन उच्च विचार का सिद्धान्त व्यवहार में उतरने पर ही यह सम्भव होगा कि ऊँचे टीले नीचे झुकें और नीचे खाई खन्दकों को भरकर समतल का