अमर वाणी -2

निकट भविष्य में यह परिस्थितियाँ सामने आयेंगी

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

हक्सले ने अपने ग्रन्थ ‘‘दि जीनियस एण्ड दि गार्डस’’ में ये संकेत दिया है कि प्रजा का स्तर उठाये बिना आजकल जो प्रजातंत्र का छक्का चल रहा है उससे केवल निहित स्वार्थों का भला होगा। प्रजा जब अपना कर्त्तव्य और अधिकार समझ ही नहीं सकेगी तो उसका मत पत्र कोई भी झटक  लेगा ऐसी दशा में वह उद्देश्य पूरा न हो सकेगा जिसके अनुुसार प्रजा द्वारा प्रजा के लिए शासन करने और सबको न्याय मिलने की घोषणा की गई थी। प्रजातंत्र क्रमशः एकाधिकारी शासन में बदलते जायेंगे। यह उनकी असफलता की स्पष्ट घोषणा होगी। किन्तु इससे  भी कोई हल न निकलेगा। अधिनायकों की सनकें सामन्तवादी शासन काल में रहने वाली प्रजा की अधिक पराधीन परिस्थिति लाकर खड़ी कर देगी और लोग अपने को विवशता से घिरे, लाचार और असहाय प्राणी की तरह अनुभव करेंगे।

इक्कीसवीं सदी की रूपरेखा

 वंशानुक्रम के परिवर्तन को लोग आश्चर्य की दृष्टि से देखेंगे, जिसकी रूचि भौतिकवाद की ओर न होकर अध्यात्म की ओर होगी। स्वस्थ रहने के नये तरीके, वजन घटाने के लिए प्राकृतिक माध्यम, स्वप्नों का सदुपयोग, मनुष्य के अंग अवयवों का प्रतिरूप जो संकट में काम आ सके तथा वैचारिक आदान-प्रदान का मस्तिष्कीय तरंगों द्वारा प्रयोग, जिससे लोग अध्यात्म की ओर रुचि रखने लगेंगे। जनसंख्या अभिवृद्धि को रोकने के लिए संमय-नियम से जन्म दर को रोकने की नई एवं प्राचीन विद्या के प्रति विश्वास उत्पन्न होगा। (वाङ्मय २७-९.१ से ९.२)

समूचा विश्व एक परिवार के रूप में विकसित होगा तब अपराधियों की संख्या स्वयं ही कम हो जायेगी। भ्रातृभावना जन-जन के मनों को आन्दोलित करेगी और बाध्य करेगी कि वह न अनीति बरते और न ही इसे समर्थन दे। ब्राह्मणत्व पुनर्जीवित होगा, उसका एक ही आधार रहेगा कि किसने अपनी आवश्यकता को कम किया और कम साधनों में निर्वाह किया।
 
सभी राष्ट्र एक होकर जल एवं वायु प्रदूषण के लिए सामूहिक उपचार की बात सोचेंगे, क्योंकि इन दोनों का प्रदूषण किसी-न-किसी रूप में समूचे विश्व को प्रभावित करेगा। इस प्रकार भौगोलिक सीमा बन्धन न रहेगा और सभी राष्ट्र अपनी-अपनी समस्याओं का एक साथ मिल बैठ कर समाधान सोचेंगे, तब एक विश्व एवं उसकी एक व्यवस्था की कल्पना साकार हो जायेगी। यह वही समय होगा, जिसे भविष्य वक्ताओं ने ‘‘इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जवल भविष्य’’ का सम्बोधन दिया है।  (वाङ्मय २७-९.४७)
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118