स्वाद नहीं, स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए

November 1996

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उत्तम भोजन किसे माना जाय? आहार शास्त्र की दृष्टि से विचार करे, तो जिस भोजन में सारे पोषक तत्त्व विद्यमान हो,, उसे इस श्रेणी में रखा जाना चाहिए। स्वास्थ्य शास्त्र भी न्यूनाधिक इसी मत का समर्थन करता है। पाक विज्ञानियों की मान्यता इससे कुछ भिन्न है। वे भोजन के स्तर का आकलन स्वाद के आधार पर करते हैं। जो जितना स्वादिष्ट व्यंजन, वह उतना बढ़िया भोजन-ऐसा उनका विचार है।

शरीरशास्त्र का निर्धारण शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों पर आधारित है। भोजन चाहे कितना ही स्वादिष्ट क्यों न हो, उसका प्रभाव यदि अवाँछनीय है, तो वह अखाद्य की कोटि में ही रखा जाने योग्य है। इन दिनों खाद्य-अखाद्य की परवाह किसे बिना लोगों का झुकाव स्वाद की ओर अधिकाधिक बढ़ा है, फलतः बीमारियाँ और कुपोषणजन्य समस्याएँ भी बढ़ी हैं। किसी व्यक्ति का रुझान यदि किसी ऐसे भोजन के प्रति है, जिसमें पोषक तत्व के नाम पर कुछ भी नहीं, तो इसका एक बड़ा कारण उसका वह स्वाद ही माना जाना चाहिए, जिसके रसास्वादन का लोभ वह संवारण नहीं कर पाता। इस प्रवृत्ति पर हमें अंकुश लगाना पड़ेगा, जो हमारी स्वादेन्द्रिय को तुष्ट नहीं, शरीर को परिपुष्ट और पोषित कर सके।

यों तो हर प्रकार के खाद्य में न्यूनाधिक पोषण तत्त्व पाये ही जाते हैं, किन्तु उन्हें पकने की वर्तमान विधि के कारण वे अंशतः या पूर्णतः नष्ट हो जाते है॥ इतना होता, तो भी संतोष की बात थी, पर कई बार स्वाद के निमित्त अपनायी जाने वाली विधि के कारण भोज्य पदार्थों में इतने खतरनाक रसायन पैदा हो जाते हैं जिससे गंभीर स्वास्थ्य संकट की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। इन्हीं में से एक है तन्दूरी भोजन।

तन्दूरी भोजन आखिर है क्या? कोई विशिष्ट खाद्य? नहीं, विशेष विधि से पकाये जाने के कारण ही यह विशिष्ट नाम से सम्बोधित होता है; चूंकि इस प्रकार का भोजन सामान्य चूल्हे की जगह ‘तन्दूर’ नामक एक विशिष्ट प्रकार के चूल्हे में बनाया जाता है, अतः इस पर पकने वाला सम्पूर्ण भोजन ‘तन्दूरी भोजन’ कहलाता है इस भोजन के प्रति सर्वसाधारण की अभिरुचि बहुत अधिक दिखाई पड़ती है। इसका एक कारण है, वह यह कि इसमें पका भोजन अन्यों की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और रुचिकर होता है अभी पिछले ही दिनों इस भोजन के संबंध में एक चौंकाने वाला तथ्य प्रकाश में आया है कि इस प्रकार के भोजन से कैंसर की सम्भावना बढ़ जाती है। ‘मलान नेशनल ट्यूमर इन्स्टीट्यूट’ के निदेशक डॉ0 कार्लो सितौरी इस क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से अनुसंधानरत थे। अपने अध्ययन के दौरान उनने पाया कि तन्दूर में सिंकने वाली रोटियों एवं इसमें पकने वाले अन्य भोजनों में ‘वेंजोपाइरीन’ नामक एक घातक रसायन पैदा होता है, जो कैंसरजन्य है। अतः इस प्रकार के भोजन करने वालों में अन्यों की अपेक्षा कैंसर की सम्भावना अधिक बढ़ी चढ़ी होती है।

उल्लेखनीय है कि धूम्रपान की प्रक्रिया में भी बेंजोपाइरीन का निर्माण होता है। डॉ. कार्लो सितौरी एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि एक किलो माँस पकाने से जितना बेंजोपाइरीन उत्पन्न होता है, वह 600 सिगरेट पीने से पैदा हुए रसायन के बराबर है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि सिगरेट पीने में एक बार में जितना बेंजोपाइरीन व्यक्ति ग्रहण करता है, उसकी तुलना में अनेकों गुना अधिक रसायन वह एक बार के भोजन द्वारा उदरस्थ कर जाता है। यदि कोई व्यक्ति एक समय में 250 ग्राम तन्दूरी माँस खाता है, तो बेंजोपाइरीन की दृष्टि से यह 150 सिगरेट पीने के बराबर हुआ। अर्थात् जितना बेंजोपाइरीन 250 ग्राम माँस से प्राप्त हो रहा है, उतने के लिए 150 सिगरेट पीनी पड़ेंगी। स्पष्ट है इतनी सिगरेट एक दिन में कोई भी व्यक्ति नहीं पी सकता। यदि प्रतिदिन 10 के औसत से भी पी जाय, तो इतनी बड़ी संख्या पीने में इसे 15 दिन लगेंगे, अर्थात् एक धूम्रसेवी लगभग दो सप्ताह में जितना रसायन ग्रहण करता है, उतना रसायन करीब 20-25 मिनट के अन्दर ही तन्दूरी भोजन द्वारा शरीर में पहुँचा दिया जाता है। इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से सिगरेट पीना उतना खतरनाक नहीं, जितना तन्दूरी भोजन।

अब प्रश्न है कि तन्दूरी भोजन में यह घातक रसायन किस प्रकार उत्पन्न हो जात है। इसका उत्तर देते हुए डॉ0 कार्लो कहते हैं कि चूँकि तन्दूर के भीतर तापमान लगभग 800 डिग्री सेण्टीग्रेड जितना होता है, अतः जब इस अति उच्च तापमान में रोटी अथवा माँस को पकने के लिए डाला जाता है तो भोजन का प्रोटीन वाला अंश उच्च तापमान में एक रासायनिक अभिक्रिया द्वारा कैंसरजन्य बेंजोपाइरीन में परिवर्तित हो जाता है।

वाँछितार्थ फलं सौख्यमिंद्रियाणाँच मारणम् । एनदुक्तानि सर्वाणि योगारुढस्य योगिनः॥ षिव संहिता

अभीष्ट प्रयोजनों की प्राप्ति, सुख तथा इन्द्रिय निग्रह यह सब सफलताएँ योग साधक को मिलती हैं।

अनुसंधानकर्त्ता वैज्ञानिक का यह भी कहना है कि ग्राम्य अंचलों में रोटी बनाने के लिए अपनायी जाने वाली विधि ही सर्वश्रेष्ठ है। कारण कि इसमें रोटी आग के सीधे संपर्क में नहीं आ पाती। अध्ययनों से यह भी विदित हुआ है कि लकड़ी की आँच में सिंकी रोटी स्वाद, गुणवत्ता और पौष्टिकता की दृष्टि से गैस, स्टोव, हीटर अथवा पत्थर कोयले के चूल्हे में बनी रोटी से कहीं अधिक अच्छी होती है, क्योंकि यहाँ रोटी धीमी आँच और न्यून ताप पर देर तक सिंकती है, जबकि अन्य माध्यमों में तापमान ज्यादा होने के कारण वह जल्द ही जलने लगती हैं।

हम स्वाद के पीछे न भागे, आहार शास्त्र के अनुशासन को अपनायें और स्वास्थ्य विज्ञान के हिसाब से चलें, तो कोई कारण नहीं कि अधिक स्वस्थ और नीरोग न रह सकें।


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