स्वार्थपरता (Kahani)

November 1996

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एक बालक की मृत्यु हो गई। अभिभावक उसे नदी तट वाले श्मशान में ले पहुँचे। वर्षा हो रही थी, विचार चल रहा था कि इस स्थिति में संस्कार कैसे किया जाय?

उनकी पारस्परिक वार्ता में निकट उपस्थित प्राणियों ने हस्तक्षेप किया और बिना पूछे ही अपनी-अपनी सम्मति भी बता दी।

सियार ने कहा-भूमि में दबा देने का बहुत माहात्म्य है। धरती-माता की गोद में समर्पित करना श्रेष्ठ है। कछुए ने कहा-गंगा से बढ़कर कोई तरण-तारणी नहीं है। आप लोग शव को प्रवाहित क्यों नहीं कर देते। गिद्ध की सम्मति थी सूर्य और पवन के सम्मुख उसे खुला छोड़ देना उत्तम है। पानी और मिट्टी में अपने स्नेही की काया को क्यों सड़ाया-गलाया जाय?

अभिभावकों को समझने में देर न लगी कि तीनों के परामर्श सद्भाव जैसे दीखते हुए भी कितनी स्वार्थपरता से सने हुए हैं। उनने तीनों परामर्शदाताओं को धन्यवाद देकर विदा कर दिया। बादल खुलते ही चिता में अग्नि संस्कार किया।


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