चुम्बकीय तूफान, अंतर्ग्रही धाराएँ एवं मनुष्य

March 1996

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अंतरिक्ष में सौर मण्डल-आकाश गंगाएं अनेकानेक हैं। हमारे अपने सूर्य की परिक्रमा कर रहे ग्रहपिण्ड हमारी जीवन यात्रा में एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनसे आने वाले अनुदानों के माध्यम से ही हम सब ही नहीं, सारे प्रकृति जगत का संतुलित क्रिया व्यापार चल रहा है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी के उभयपक्षीय संतुलन केन्द्र बिन्दु हैं। अंतरिक्ष से बरसने वाला असीम विकिरण पृथ्वी के इर्द-गिर्द मंडराता रहता है। उसका एक सीमित अंश ही भूतल को स्पर्श कर पाता है। धरती पर छाया आयनोस्फियर का कवच उस विकिरण के घातक प्रभाव से हम सबकी रक्षा करता रहता है। किन्तु अंतर्ग्रही ऊर्जा जो शक्ति धाराओं की तरह इन विकिरणों के साथ आती है, पृथ्वी पर हमें एक सुनियोजित विधिविधान के माध्यम से सतत् प्राप्त होती रहती है। यही हमारी जीवन शक्ति का एवं व्यक्ति समष्टि सम्बन्धों का मूलभूत आधार है। भौतिकी के नियमों के अंतर्गत यह आदान-प्रदान जिस प्रकार चलता है, उसे देखते हुए आश्चर्य चकित होकर रह जाना पड़ता है।

अन्तर्ग्रहीय ऊर्जाएं पृथ्वी पर उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में होकर छनी हुई उपयुक्त एवं आवश्यक मात्रा में ही प्रवेश करती हैं और पृथ्वी को अभीष्ट परिपोषण देने के उपरान्त दक्षिणी ध्रुव में होती हुई बहिर्गमन कर जाती हैं। एक सिरे से प्रवेश करके चूहा जिस प्रकार बिल के दूसरे सिरे से निकल भागता है उसी प्रकार अंतर्ग्रहीय विकिरण धरती के एक सिरे से प्रवेश करता और दूसरे से बाहर निकलता रहता है उत्तरी ध्रुव क्षेत्र एक ऐसी चुम्बकीय छलनी है जो केवल उसी प्रवाह को भीतर प्रवेश करने देती है जो उपयोगी है। छलनी में बारीक आटा ही छनता है और भूसी ऊपर रह जाती है। ठीक इसी प्रकार प्रज्ञ ध्रुवीय छलनी में भी पृथ्वी के लिए उपयोगी विकरण आते हैं और शेष को पीछे ढकेल दिया जाता है।

उत्तरी ध्रुव पर यह छानने की क्रिया टकराव के रूप में देखी जा सकती है। इस टकराव से एक विलक्षण प्रकार के ऊर्जा कम्पन उत्पन्न होते हैं जिनकी प्रत्यक्ष चमक उस क्षेत्र में प्रायः देखने को मिलती रहती है उसे ध्रुवप्रभा या मेरु प्रकाश कहते हैं इसका दृश्यमान प्रत्यक्ष रूप से जितना अद्भुत है उससे अधिक रहस्यमय उसका अदृश्य रूप है । इसमें ध्रुवप्रभा का प्रभाव स्थानीय ही नहीं होता वरन् समस्त भूतल को यह प्रभावित करता है। भूगर्भ में, समुद्र तल में , वायु मण्डल में, ईथर के महासागर में जो विभिन्न प्रकार की हलचलें होती रहती हैं- चढ़ाव उतार आते हैं उनका बहुत कुछ सम्बन्ध इस ध्रुवप्रभा एवं मेरुप्रकाश से होता है। इतना ही नहीं उसकी हलचलें प्राणधारियों की शारीरिक एवं मनःस्थिति को भी प्रभावित करती है। मनुष्यों पर तो उसका प्रभाव विशिष्ट रूप से होता है। सुविज्ञ लोग उस प्रभाव प्रवाह में से अपने लिये उपयोगी तत्व खींच लेने, धारण कर लेने में भी सफल होते हैं और उससे असाधारण लाभ प्राप्त करते हैं।

ध्रुव प्रकाश सर्चलाइट के समान होता है यह उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में ज्यादा तेज होता है उत्तरी ध्रुव पर कभी-कभी गर्मी भी हो जाती है दक्षिणी पर नहीं। उत्तरी ध्रुव पर एस्किमो रहते हैं दक्षिणी ध्रुव में पेन्गुइन पक्षी के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता। यह पक्षी आगन्तुकों से बहुत प्रेममय व्यवहार करते हैं उत्तरी ध्रुव पर धरती भीतर को धँसी हैं 14000 फुट गहरा समुद्र बन गया है जबकि दक्षिणी ध्रुव 19000 फीट उभरा हुआ है। उत्तर में बर्फ बहती है दक्षिण में स्थिर रहती है, दक्षिण ध्रुव में रात धीरे-धीरे आती है सूर्य दक्षिणी क्षितिज के लिए बहुत थोड़ी देर के लिए आता है सूर्यास्त का दृश्य घण्टों रहता है अस्त हो जाने पर महीनों अन्धकार छाया रहता है केवल मात्र उत्तर की ओर कुछ प्रकाश दिखाई देता है एक बार ध्रुव यात्री बायर्ड ने यहाँ सूर्य को बिलकुल हरे रंग का देखा। ऐसा दृश्य इससे पहले किसी ने नहीं देखा था। किरणों की वक्रता के कारण ऐसे विलक्षण दृश्य वहाँ प्रायः देखने को मिलते रहते हैं।

ध्रुवों पर सूर्य की किरणों की विचित्रता के फलस्वरूप अनेक विचित्रताएँ दृष्टिगोचर होती हैं दूर की वस्तुयें हवा में लटकती हुई जान पड़ती है। टीले जितने होते हैं उससे कई गुना बड़े लगते हैं। कई बार सूर्य एक के स्थान पर कई- कई दिखाई देते हैं और इसी प्रकार चन्द्रमा भी। बर्फ में, हवा में भी कई बार सूर्य दिखाई दे जाते हैं यह सभी कृत्रिम सूर्य वास्तविक जैसे ही लगते हैं।

पृथ्वी का चुंबकत्व जो कि पृथ्वी के कण-कण को, पृथ्वी में पाये जाने वाले जीवन तत्व को प्रभावित करता है। वस्तुतः ब्रह्मांड से आने वाले एक प्रकार के शक्ति या तत्व प्रवाह के कारण हैं यह प्रवाह उत्तर की ओर से आता है इसलिए उत्तरी ध्रुव क्षेत्र और दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र दोनों दो ध्रुव होने पर भी गुण धर्म से अलग-अलग हैं सामान्यतः दोनों चुम्बकीय ध्रुवों की विशेषतायें एक समान किन्तु एक दूसरे से भिन्न दिशा में होनी चाहिए किन्तु कई बातों में समानता होने पर भी दोनों की विशेषताओं में बड़ा अन्तर है।

उत्तरी ध्रुव एक गढ़ा है दक्षिणी ध्रुव गुमड़ा। उत्तरी ध्रुव की बर्फ दक्षिणी ध्रुव से अधिक गर्म होती है जल्दी गलने और जल्दी जमने वाली भी होती हैं दक्षिणी ध्रुव उजाड़ क्षेत्र हैं यहाँ कुछ पक्षी जलचरों के अतिरिक्त एक पंखहीन मच्छर भी पाया जाता है वह क्या खाकर जीता है और कैसे इतनी भयंकर शीत में जीवन धारण किये रहता है वैज्ञानिक इस प्रश्न का आज तक समाधान नहीं कर सके।

उत्तरी ध्रुव में जीवन का बाहुल्य है। पौधों तथा जन्तुओं की संख्या करोड़ों तक पहुँचती है। यहाँ दिन और रात समान नहीं होते 6-6 माह के भी नहीं होते- कई बार रात 80 दिन के बराबर होती है यह सबसे लम्बी रात होती है। क्षितिज के बीच सूर्य वर्ष में 16 दिन रहता है। यहाँ चन्द्रमा इतनी तेजी से चमकता है कि उसके प्रकाश में, दिन में सूर्य की रोशनी के समान ही काम किया जा सकता है।

कुछ मेरुप्रकाश विस्तृत और आकृति हीन होते हैं कुछ सजीव और हलचल करते हुए । कभी वे किरणों की लम्बाई के रूप में जान पड़ते हैं कभी प्रभा और ज्वाला के रूप में कभी वह दृश्य बदलता हुआ कभी चाप, पड़ी और कोरोना के रूप में होता है तो कभी प्रकाश गुच्छे सर्चलाइट के समान। यह रात भर तरह-तरह के दृश्य बदलते हैं, हर दृश्य और परिवर्तन सूर्य की अपनी आन्तरिक हलचल का प्रतीक होता है इसका सबसे बड़ा प्रमाण अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष अनुसन्धान के दौरान आया और उसके विलक्षण आकार- प्रकार देखने में आये। इस अवधि में सूर्य की आन्तरिक हलचल बहुत बढ़ जाती है, यह प्रकाश मुख्यतः चुम्बकीय तूफान होता है जो की सारी याँत्रिक क्रिया में क्रांति उत्पन्न करके रख देता है।

अनुसन्धान के दौरान यह पाया गया है कि सूर्य में जब तेज दमक दिखती है उसके एक दो दिन बाद ही मेरु प्रकाश भी तीव्र हो उठता है यह बढ़ी हुई सक्रियता सूर्य- विकरण तथा कणों की बौछार का ही प्रतीक होती हैं शान्त अवस्था में भी यह सम्बन्ध बना रहता है पर प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं होता। यह कण अति सूक्ष्म इलेक्ट्रान (ऋण आवेश कण) प्रोट्रान (धन आवेश कण) जो 200 से लेकर 1000 मील तक प्रति घण्टे की गति से दौड़ते हुए पृथ्वी तक पहुँचने में कुल 8 मिनट ही लेता है प्रकाश की गति 1800000 मील प्रति सेकेण्ड है इसका अर्थ यह हुआ कि पृथ्वी सूर्य की विद्युतीय शक्ति से सम्बद्ध है पृथ्वी स्वयं एक चुम्बक की तरह हैं चुम्बकत्व पार्थिव कणों में विद्युत प्रवाह के कारण पैदा होता है इससे स्पष्ट है कि पृथ्वी चुम्बकीय क्षमता सूर्य के ही कारण हैं यह कण पृथ्वी से हजारों मील ऊपर ही पृथ्वी के क्षेत्र के द्वारा पृथ्वी के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों की ओर मोड़ और प्रवाहित कर दिये जाते हैं।

मार्च तथा सितम्बर में (चैत्र तथा क्वार) में जबकि पृथ्वी का अक्ष सूर्य के साथ उचित कोण पर होता है मेरुप्रकाश अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पड़ता है जबकि अन्य समय गलत दिशा के कारण प्रकाश लौटकर ब्रह्मांड में चला जाता है यही वह अवधि होती है जब पृथ्वी में फूल -फलों की वृद्धि और ऋतु परिवर्तन होता है उस समय सूर्य की यह विद्युत धाराएँ स्पष्ट और अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पड़ती हैं प्रयोगों से यह भी सिद्ध हो चुका है कि उत्तरी- दक्षिणी ध्रुवों में विद्युत धारा की चादरें जैसी ढकी रहती ही।

ध्रुव प्रभा एवं मेरुप्रकाश का धरती पर होने वाली विभिन्न हलचलों एवं परिवर्तनों से क्या संबंध है उसका अन्वेषण करने में विज्ञानवेत्ता संलग्न हैं। वे क्रमशः इस निष्कर्ष पर पहुँचते जा रहे हैं कि मनुष्य के निजी पुरुषार्थ का महत्व एक बहुत छोटी सीमा तक ही सीमित हैं बहुत करके तो अन्तरिक्ष और भूलोक के बीच चल रहे आदान-प्रदान पर ही निर्भर रहता है। धातुएँ, वनस्पति, ऋतु परिवर्तन, जलवायु जैसे महत्वपूर्ण तत्वों पर इन्हीं अदृश्य अभिवर्षणों का प्रभाव रहता है। इतना ही नहीं वे प्राणियों की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करती हैं। उस दृष्टि से स्वतन्त्र समझा जाने वाला प्राणि जगत् प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों की कठपुतली मात्र बनकर एक प्रकार से नियति नियंत्रित ही बन जाता है।, ऐसा कहा जा सकता है एक बारगी यह स्थिति बड़ी दयनीय प्रतीत होती है कि प्राणियों को नियति की कठपुतली मात्र बनकर रहना पड़े। अंतर्ग्रहीय प्रवाह उसके सामने जो भी परिस्थितियां उत्पन्न करे उसके सामने नतमस्तक होना पड़े।

नेतृत्व विज्ञान पर अधिक गहराई से चार करने पर स्पष्ट होता है कि ध्रुवीय छलनी की तरह ही मानवी चेतना में भी एक अद्भुत विशेषता यह है कि वह प्रकृतिगत प्रवाहों में से जिसे चाहे ग्रहण करे एवं जिन्हें चाहे अपने मनोबल की टक्कर मारकर इधर-उधर छिपा दें। प्रकृति की इन प्रेरणाओं को हृदयंगम करने पर जीवन यात्रा सुख-शांति पूर्वक सम्पन्न की जा सकती है। प्रकृति की इन प्रेरणाओं की, नियम-मर्यादाओं की अवहेलना करने पर उसका दण्ड दुष्परिणाम भी भोगना पड़ता है परस्पर सहयोग एक ऐसा तत्व है जिसमें न केवल प्राणी क्रमिक विकास की दिशा में अग्रसर होते हैं, वरन् निर्जीव समझे जाने वाले तत्वों में भी सुव्यवस्था रहती है।


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