अपनों से अपनी बात- - रजत जयंती वर्ष में विशिष्टों के लिए विशिष्ट शक्ति अनुदान सत्र

March 1996

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सभी इस तथ्य की भली-भाँति जानते हैं कि प्रस्तुत समय जिससे हम सभी गुजर रहे हैं, अति विशिष्ट है। संधिकाल की विषम वेला के अंतिम छह वर्ष हैं यह । इन दिनों प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों ही स्तर पर बड़ी तेजी से परिवर्तनों का क्रम चल रहा है। महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया के इस दौर में बहुत कुछ बदलने जा रहा है। असुरता भी अपनी ओर से अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है एवं देवत्व संगठित होकर उसका मुकाबला करने हेतु तत्पर दृष्टिगोचर हो रहा है। किन्हीं को नंगी आँखों से यह दिखाई न देता हो तो उनका कोई कसूर नहीं, किन्तु यह विश्वास किया जाना ही चाहिए कि युग परिवर्तन की प्रक्रिया ने प्रस्तुत संधिकाल में प्रथम पूर्णाहुति के बाद से एक नया मोड़ ले लिया है। एक सुनिश्चित यात्रा करने के लिए थोड़ा सफर करने के बाद जिस तरह गाड़ी का ड्राइवर क्लच दबाकर उसे नये गियर में डालकर गति देता है, कुछ ऐसा ही इन दिनों चल रहा है।

चूँकि मनुष्य अभी भी अनीति का मार्ग न छोड़ने के अपने दुराग्रह पर अड़ा दिखाई देता है इसलिए प्रत्यक्ष दीखता है कि हमें अगले दिनों महाकाल के भयंकर कोप-भयावह विपत्तियों से गुजरना पड़े। असम्भव को भी सम्भव कर देने वाले पराक्रम होते हमें दिखाई पड़ें व ऐसा लगने लगे कि उथल-पुथल की रक्त-रंजित प्रक्रिया महारुद्र द्वारा अब अपनायी जा रही है। यह महाकाल के खण्ड नर्तन का, कालरात्रि की महा निशा का पर्व है एवं ऐसे विषम समय में जब प्रत्यावर्तन प्रक्रिया सम्पन्न होने जा रही है, प्रत्येक को अपने को नये सिरे से ढालने के लिए अपनी साधनात्मक ऊर्जा भण्डार को नयी शक्ति से ओत-प्रोत कर लेने के लिए तैयार कर लेना चाहिए। समय रहते तो आगत को पहचान लें, उन्हें समझदार कहते हैं। ऐसे ही समझदारों में प्रज्ञा परिजनों की गिनती होती है। अखण्ड-ज्योति पाठकों से इसी स्तर की समझदारी अपनायी जाने की अपेक्षा रखी जाती है।

पूर्वजन्मों की अनुपम आत्मिक सम्पदा जिनके पास संग्रहित है, ऐसी कितनी ही आत्माएँ इस समय गायत्री परिवार युगनिर्माण मिशन में मौजूद है। पिछले कुछ समय से साधनात्मक स्तर पर कुछ विशेष न कर पाने के कारण इन फौलादी तलवारों पर जंग लग गयी है, ऐसा प्रतीत होता है। नव निर्माण का कार्य जिन्हें करना है, वे ही यदि प्रमाद की स्थिति में होंगे अथवा प्रचारात्मक विराट स्तर के भीड़ भरे आयोजनों के बाद उस ऊर्जा का उपयुक्त नियोजन न कर प्रसुप्त स्थिति में जाते दिखाई पड़ेंगे तो इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है। इसी महत्ता को समझते हुए सभी परिजनों से यही अपेक्षा की जा रही है कि इस रजत जयंती वर्ष की सौभाग्य भरी वेला में जब शांतिकुंज अपने पच्चीस वर्ष पूरे करने जा रहा है, जहाँ गुरुसत्ता की विशिष्ट तप ऊर्जा संग्रहित है, आकर विशिष्ट ऊर्जा अनुदान सत्रों में भाग लेकर अपनी बैटरी चार्ज कराके जायेंगे ताकि आगामी पाँच-छह वर्षों की प्रतिकूलताओं से जूझने हेतु पर्याप्त आत्मबल का संग्रह वे कर सकें।

मानवी व्यक्तित्व में देवत्व का अधिकाधिक समावेश करने के लिए जिस साधना पद्धति का अवलम्बन लेना पड़ता है वह दो वर्गों के लिए अलग-अलग है। पहली विशिष्ट लोगों की, विशिष्ट प्रयोजन के लिए विनिर्मित विशिष्ट प्रक्रिया। दूसरी सर्व साधारण के लिए सहज सुगम सौम्य पद्धति। विशिष्ट प्रक्रिया योगी, यति, एकान्तवासी, साँसारिक उत्तरदायित्वों से निवृत्त असाधारण मनोबल सम्पन्न, कठोर तपश्चर्या के लिए समुद्यत लोगों के लिए है। षट्चक्र वेधन, कुण्डलिनी जागरण, तंत्र योग, प्राणयोग आदि साधनाएँ इसी प्रकार की होती हैं। इनसे चमत्कारी ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं जो किन्हीं अवसर विशेषों के लिए प्रयुक्त की जा सकती है। सर्वसाधारण के लिए जो राजमार्ग युगऋषि ने बताया है उसमें आत्मकल्याण, ईश्वर प्राप्ति और लोकमंगल की सभी सम्भावनाएँ विद्यमान है। आजीविका उपार्जन तथा सामान्य गृहस्थ जीवन यापन करते हुए इस साधना क्रम को अपनाया जा सकता है और श्रेय पथ पर गतिशील रहा जा सकता है। संधिकाल में सूक्ष्म जगत में चल रहे प्राण प्रवाह को विशेष रूप से आकर्षित कर अपने अन्दर के आत्मबल को विशिष्ट उछाल दे देने हेतु पूज्य गुरुदेव ने इन साधना विधानों में वह सारी विशेषताएं भर दी हैं जो कि आज की परिस्थितियों के अनुसार अभीष्ट हैं।

परिजनों को प्राण प्रत्यावर्तन सत्रों का स्मरण होगा जो कि परमपूज्य गुरुदेव के हिमालय प्रवास से लौटने के बाद शांतिकुंज में सम्पन्न हुए थे। वास्तविक प्राण-प्रत्यावर्तन कैसे होता है, कैसे विशिष्ट आत्मशक्ति का उद्भव अपने अन्दर से हो सकता है, इसे सभी भाग लेने वाले परिजनों ने अनुभव किया। विशिष्ट उपलब्धियाँ लेकर वे गए एवं यही उनके प्राणवान सृजन सेनानी बनने का मूलस्रोत बना। इसके बाद कायाकल्प कर देने वाले कल्प साधना सत्र चले। इस में भाग लेने वाले परिजन आज भी उस ऊर्जा प्रवाह से अनुप्राणित हैं एवं अनुभव करते हैं कि आध्यात्मिक कायाकल्प जैसा कुछ विशिष्ट प्रयोग इन दिनों भी चले ताकि इस विशिष्ट वर्ष में कुछ विशेष कर दिखाने का साहस सँजोकर वे अगली कक्षा में बढ़ सकें।

शांतिकुंज तंत्र ने यह निश्चय किया है कि इस वर्ष नौ दिवसीय साधना सत्र, जो चैत्र नवरात्रि के रूप में 20 से 28 मार्च तक चलेगा, के बाद एक अप्रैल से नौ दिवसीय शक्ति अनुदान सत्रों की एक शृंखला चले, जिसमें भाग लेने से कोई भी अपने को वंचित न रखें ये विशिष्ट सत्र-नौ-नौ दिन के होंगे, एवं एक अप्रैल से 19 मई तक (कुल 18 सत्र) तक इस प्रकार इस वर्ष का चैत्र नवरात्रि सत्र मिलाकर ये कुल चौबीस सत्र हो जाते हैं। यदि प्रत्येक में एक हजार साधक भी भाग लेते हैं तो नैष्ठिक स्तर के प्राणवान चौबीस हजार साधक जो विशिष्ट आत्मबल सम्पन्न होंगे इस अवधि में नवयुग के अवतरण हेतु तैयार हो सकेंगे। मध्य में पड़ने वाली 20 मई से 30 जून की अवधि पाँच दिवसीय संस्कार-परामर्श सत्र हेतु रखी गयी है। यह सुविधा उन सामान्य लोगों के लिए बनायी गयी है जो अभी तक युगान्तरीय चेतना से अनुप्राणित हो नहीं पाए अथवा अवकाश अधिक न होने से मात्र थोड़ा ही समय निकाल पाते हैं। इस अवधि में परामर्श मात्र ही दिया जा सकेगा किन्तु कुछ विशिष्ट तप−साधना नहीं सम्पन्न हो सकेगी।

एक अप्रैल से आरम्भ होने वाले सत्र जिनके निमित्त किये जा रहे हैं, उन्हें इनकी विशिष्टता का अनुमान लगाना चाहिए। तीनों शरीरों के परिमार्जन परिष्कार हेतु इन नौ दिनों में उन्हें माँ के गर्भ में नौ माह रहने की अवधि की तरह विशिष्ट प्राणऊर्जा से पूज्यवर व मातृसत्ता के गर्भ इस शांतिकुंज की तपशक्ति से अनुप्राणित किया जाएगा। आहार में मात्र हविष्यान्न की रोटी, जड़ी-बूटी कल्क, विशिष्ट साधनाओं के अनुदान का क्रम ऊर्जा संचार के रूप में यहाँ से जाने के बाद भी इस विधि-विधान को करते रहने से चलता रहेगा। इस क्रम में कभी कोई व्यवधान नहीं आएगा। अन्दर के क्रिस्टल को निखारने-अपने सोये देवता को जगाने के लिए बैटरी चार्ज करने के लिए ही आहार-विहार में आमूलचूल परिवर्तन के लिये यह विधान रखा गया है।

प्रातःकाल साढ़े तीन बजे उठकर साधक प्रार्थना, आरती क्रम के बाद विशिष्ट ध्यान योग प्रक्रिया से गुजरेंगे जिसमें ज्योति अवतरण साधना के माध्यम से सविता देवता के प्रकाश के पापनाशक तेज के व्यक्ति सत्ता में समाहित होने का भाव होगा। परमपूज्य गुरुदेव के निर्देश वे सुनते रहेंगे एवं इस आधे घण्टे की अवधि में विशिष्ट प्राण संचार का क्रम चलेगा। तत्पश्चात् दिव्य औषधि कल्क सेवन अखण्ड दीपक व गुरुसत्ता की पादुकाओं को नमन का क्रम चलेगा। प्रयोग विशिष्ट प्राणायाम-मुद्राएँ बन्ध व्यक्ति विशेष की परिस्थितियों के अनुरूप सम्पन्न होने के बाद सभी चौबीस कुण्डी यज्ञशाला में हवन करेंगे। तत्पश्चात् ज्ञानयोग प्रक्रिया के अंतर्गत विशेष संदेश वरिष्ठ प्रतिनिधियों के माध्यम से श्रवण करेंगे। भोजन में उन्हें हविष्यान्न की बनी रोटी दी जाएगी। दिन में भेंट परामर्श का-त्रिकाल संध्या के अंतर्गत दोपहर की साधना का अपने कमरों में आत्मदेव की साधना, चिन्तन, मनन का क्रम चलेगा। इसी अवधि में नौ दिनों में से कुछ दिन वे ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान भी परीक्षण हेतु जायेंगे। शाम को आरती के पश्चात् नादयोग साधना के बाद परमपूज्य गुरुदेव का विशेष वीडियो संदेश प्रतिदिन विभिन्न विषयों पर वे श्रवण कर रात्रि की संध्या-शमन से पूर्व शिथिलीकरण योग निद्रा में प्रवेश कर रात्रि भर होने वाले विशिष्ट प्राण संचार हेतु स्वयं को तैयार करेंगे।

मात्र सुपात्र ही इस साधना का सम्पन्न कर पायेंगे, अतः अभी से इसकी तैयारी कर लें, रोगी, वयोवृद्ध, जीर्ण−शीर्ण स्थिति वाले व्यक्ति इन सत्रों में भाग नहीं ले पायेंगे। आयेंगे तो पहले ही दिन वापस लौटना होगा। विशिष्टों को विशिष्ट उपहार युगदेवता का मिले ताकि वे कुछ विशेष कर दिखाने हेतु शिविरों की व्यवस्था बनायी गयी है। इस सम्बन्ध में अभी से शांतिकुंज हरिद्वार पत्र व्यवहार कर लें।


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