धर्मप्राण वैज्ञानिक डॉक्टर भाभा

March 1996

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विश्व प्रसिद्ध भारतीय डा. भाभा ने अपने परिश्रम, पुरुषार्थ तथा अध्यवसाय के बल पर संसार को यह चेतावनी देकर सावधान कर दिया कि भारतीय मस्तिष्क भी अणुबम बनाने में समर्थ है, इसलिये कोई देश अपनी अणु शक्ति के आधार पर भारत को धमकाने, दबाने अथवा भयभीत करने की कोशिश न करे।

जिनेवा में “एटम फार पीस” (अणु शक्ति शांति के लिये) नामक द्वितीय गोष्ठी के अवसर पर महान् वैज्ञानिक प्रोफेसर फ्राँसिस पैरा ने बड़े गर्व से कहा--”संसार के अल्प विकसित तथा गरीब देश परमाणु शक्ति के आधुनिक विकास के लाभों का तब तक उपयोग करने से वंचित रहेंगे जब तक वे औद्योगिक विकास की दिशा में पूरी तरह सम्पन्न नहीं हो जाते।

निश्चय ही एक सम्पन्न देश के वैज्ञानिक की एक गर्वोक्ति तथा भारत जैसे निर्धन देशों पर एक तीखा व्यंग था जिसके पीछे कथनकार का यह संकेत छिपा था कि असम्पन्न देश आणविक प्रगति नहीं कर सकते, यह बहुत ही व्यय साध्य काम है, इसलिये उन्हें अणु-विकसित देशों की वरिष्ठता तथा श्रेष्ठता मानते ही रहना चाहिए। डाक्टर भाभा ने, उक्त वैज्ञानिक का व्यंग तथा संकेत समझ लिया और उसका वैज्ञानिक आधार पर खण्डन करते हुये कहा कि आप शीघ्र देखेंगे कि अल्प विकसित देश भी अणु प्रगति कर सकते हैं और अणु बम बना सकते हैं।

डा. भाभा भारत आकर अपने कथन को चरितार्थ करने में लग गये। उन्होंने दिन-रात अनुसंधान कार्य करने का कार्यक्रम बनाया और अनेक वर्षों के अविराम परिश्रम से अणु-शक्ति का रहस्य खोज निकाला। इस महान् सफलता के बाद उन्होंने आणविक शक्ति के विकास के लिये ट्राम्बे में आधुनिकतम आणविक संस्थान की स्थापना कराई और ‘अप्सरा’ आणविक भट्टी का प्रारम्भ किया। डा. भाभा की इस सफलता तथा निर्माण ने आणविक शक्ति सम्पन्न देशों के बीच भारत का स्थान बनाकर उद्धत देशों के बीच भारत का स्थान बनाकर उद्धत राजनेताओं को गर्वोक्ति करने से विरत कर दिया। उन्होंने अपने महान् अध्यवसाय के बल पर सिद्ध कर दिखाया कि संसार के अल्प विकसित देश भी लगन तथा परिश्रम के द्वारा परमाणु शक्ति के विकास का लाभ उठा सकते हैं।

किन्तु भारतीय वैज्ञानिक डा. भाभा एक शांति प्रिय वैज्ञानिक थे। उन उद्धत वैज्ञानिकों में नहीं थे जो अणु शक्ति को युद्ध का साधन बनाकर अपने देश को दूसरे निर्बल देशों पर दबाव डालने की क्षमता प्रदान करने में ही अपना वैज्ञानिक गौरव समझते हैं। सक्षम एवं समर्थ होने पर भी उन्होंने ध्वंसकारी अणु बम बनाने की कभी नहीं सोची। वैज्ञानिक उपलब्धियों के विषय में उनका दृष्टिकोण सदैव शांति निर्माण तथा विश्व-कल्याण की दिशा में ही रहता था। वैज्ञानिक उपलब्धियों के उपभोग के विषय में उनसे जब-जब पूछा गया तब-तब उन्होंने यही उत्तर दिया-”मेरा सारा प्रयास और सारी प्रगति इसलिये है कि ऐसे साधन संचय किये जा सकें जिनके आधार पर भारत के करोड़ों भूखे, नंगे लोगों के लिये रोटी-रोजी की व्यवस्था की जा सके। हमारे देश की सारी वैज्ञानिक प्रगति का लक्ष्य राष्ट्र का सर्वांगीण विकास और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में यथासम्भव मात्र कल्याण का सम्पादन करना है। भारत कोई राजनीतिक उद्देश्य लेकर विज्ञान के क्षेत्र में नहीं बढ़ रहा है।”

अमित्र देश चीन की देश चीन की आणविक प्रगति तथा बम विस्फोटों के समाचारों पर जब विदेश के जिज्ञासुओं ने यह प्रश्न किया-सम्भवतः अब तो भारत भी अणुबम बनायेगा, तब डा. भाभा ने जो उत्तर दिया वह उनके अनुरूप ही है और निःसंदेह संसार के वैज्ञानिकों के लिये माननीय एवं अनुकरणीय है। डा. भाभा ने कहा-

“विज्ञान संसार के विनाश के के लिये नहीं बल्कि दुःखी एवं संतप्त मानवता के कल्याण और उसकी सेवा करने के लिये है। परमाणु शक्ति का सही उपयोग विनाशकारी बम बनाने में नहीं उसका सही उपयोग अणु शक्ति संचालित बिजली घर बनाने में है, जिससे लोगों को कम से कम मूल्य पर बिजली मिल सके, उनकी सुख-सुविधा के साधन बढ़ें, उद्योगों तथा कारखानों में उस शक्ति का उपयोग कर सस्ता और अच्छा माल बनाया जा सके। नये उद्योग धन्धे खड़े किये जा सकें जिससे गरीब लोगों को पर्याप्त रोटी-रोजी मिल सके। अणु शक्ति का सही उपयोग तब है जब उससे कृषि के उत्तम-उत्तम साधन खोजे जा सकें जिससे देश का धन धान्य बढ़े, उसकी गरीबी और भुखमरी दूर हो सके। रेतीले तथा अनुपजाऊ क्षेत्रों को उर्वर बनाने में उपयोग की गई अणु-शक्ति सदुपयुक्त मानी जायेगी। अणु शक्ति का उचित उपयोग तभी है जब उसके द्वारा विभिन्न प्रकार की बीमारियों का उपचार किया जा सके और मानव विकास को हर दिशा में गतिमान बनाया जा सके। मेरा तो विचार यह है कि एक अणु शक्ति ही नहीं ज्ञान-विज्ञान की कोई भी शक्ति विनाश में न लगा कर निर्माण में ही लगाई जानी चाहिये। न केवल विद्याबल ही बल्कि धन-बल तथा जन-बल का उपयोग भी मान-कल्याण की दिशा में ही किया जाना चाहिये।”

भारत के इस साधु वैज्ञानिक डॉ. भाभा का पूरा नाम डॉ. होमी जहाँगीर भाभा है। इनका जन्म 30 अक्टूबर 1909 में बम्बई में हुआ। एक सम्पन्न घर के पुत्र रत्न होते हुये भी इन्होंने सुख-सुविधा की सामान्य आकाँक्षा से ऊपर उठकर अपना सारा जीवन एक तपस्वी की भाँति विद्याध्ययन तथा देश की सेवा में लगा दिया। अपने प्रारम्भिक जीवन में ही इस देशभक्त को भारत की वैज्ञानिक मंदता खटकने लगी थी और विद्यार्थी जीवन में अनेक के बहुत-बहुत कठिन बताए जाने पर भी विज्ञान का विषय ग्रहण किया और सदैव ही अपना यह विश्वास व्यक्त व्यक्त किया कि परिश्रमशीलता के आगे संसार का कोई भी विषय कठिन नहीं और पुरुषार्थ तथा लगन के सम्मुख कोई भी उपलब्धि असम्भव नहीं ! मुझे विज्ञान का अध्ययन कर एक वैज्ञानिक बनना ही है फिर चाहे इसके लिये मुझे अपना सारा जीवन, सारी सुख-सुविधा और सारा हास-विलास ही क्यों न बलिदान करना पड़े। मुझे हर मूल्य और हर प्रयत्न पर भारत में वैज्ञानिकता की कमी दूर करनी ही है और आगे चल कर इस लगनशील तथा उत्साही बालक ने अपना विश्वास को चरितार्थ भी कर दिखाया।

डाक्टर भाभा ने बम्बई के कैभेंकल जान कैनन विद्यालय से हाई स्कूल पास करके एल्फिन्सटन कालिज और रायल इन्स्टीट्यूट आफ साइन्स से विज्ञान की उच्च शिक्षा प्राप्त की। अनन्तर लन्दन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से विज्ञान में पी. एच. डी. प्राप्त कर अनुसन्धान कार्य में लग गये। सबसे पहले उन्होंने ब्रह्माण्ड विवरण के क्षेत्र में ऐसी खोजें दुनिया के सामने रखीं कि वे जल्दी ही संसार के ऊँचे वैज्ञानिकों में गिने जाने लगे। जिसका मूल्याँकन विश्वविद्यालयों ने इन्हें “डॉ. ऑफ साइन्स” की उपाधि देकर किया। संसार की महान वैज्ञानिक संस्थाओं से राइज बेल ट्रेवलिंग की कैम्ब्रिज आइजक न्यूटन की स्टूडेन्टषिप पाने वाला वैज्ञानिक डा. भाभा यदि चाहता ता संसार के किसी भी विश्वविद्यालय में हजारों रुपये की प्रोफेसरी लेकर सम्मान एवं आराम की जिंदगी बिता सकता था। किन्तु नि मनुष्यों के हृदय में मानवता के दुःख का दर्द होता है, समाज की पीड़ा और राष्ट्र के गौरव वृद्धि की कामना होती है वे जनोपयोगी कामों के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन का मूल्य कम कर दिया करते हैं।

टनेक आणविक भट्टियों की स्थापना के अतिरिक्त डा. भाभा ने औद्योगिक प्रगति के लिये “टाटा वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान” की स्थापना की और वर्षों उसका संचालन भी किया। बम्बई का टाटा भन्डा मेन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट तथा ट्राम्बे के अन्य अनेक आणविक संस्थान डॉ. भाभा के ही प्रयत्नों के फल हैं। इन स्थापनाओं के अतिरिक्त डॉ. भाभा ने जो सबसे उपयोगी, महान, तथा दूरगामी काम किया वह यह कि उन्होंने अपने प्रयत्नों, परामर्शों तथा निर्दोषों से भारत में न जाने कितनी वैज्ञानिक प्रतिभाएँ उत्पन्न कर दी है। डा. भाभा अपने इस विचार के लिये सदा श्रद्धा के पात्र बने रहेंगे कि हर ज्ञानी-विज्ञानी, कलाकार तथा शिल्पी को अपनी विद्या नई पीढ़ी को दे जाना चाहिए, जिससे संसार में उसका अस्तित्व बना रहे, उसकी परम्परा तथा विकास का क्रम बना रहे। किसी भी विशेषताओं को अपने तक ही सीमित रखने की संकीर्णताओं नहीं रखनी चाहिये। इस प्रकार कोई भी विद्या विद्वान के साथ ही संसार से चली जाती है जिससे मानवता की बड़ी क्षति होती है।

अपने इन्हीं उदार विचारों से प्रेरित होकर डा. भाभा ने बम्बई में अखिल भारतीय वैज्ञानिक परीक्षाओं की परम्परा चलाई। इन परीक्षाओं द्वारा वे देश की विकासशील वैज्ञानिक प्रतिभाओं को खोज निकालते थे और उन तथ्यों को अपने निर्देशन में रखकर विज्ञान तथा अनुसंधानों की शिक्षा दिया करते थे। इस प्रकार वे देश में वैज्ञानिकों की एक ऐसी नई पीढ़ी पैदा कर गये कि जो आज उनके न रहने पर भी अणु क्षेत्र में उनके उद्देश्यों तथा अनुसंधानों को आगे बढ़ा रही है और आगे बढ़ाती रहेगी।

इस भारतीय वैज्ञानिक डा. भाभा में दो ऐसी विशेषताएं रही हैं जो संसार के किसी वैज्ञानिक में कदाचित् ही पाई जायँ। एक तो डॉ. भाभा बहुत ही गहरे कला प्रेमी थे। उन्होंने आधुनिक कला-कृतियों से अपनी वैज्ञानिकशालाओं तक को सजा रखा था। संगीत तो उन्हें इतना प्रिय था कि जब वे अपने अनुसन्धान कार्यों में थकते तो संगीत द्वारा ही अपनी क्लाँति दूर करते थे। कर्नाटकीय संगीत तो उन्हें इतना पसन्द था कि व्यस्तता के बावजूद भी वे उसका कोई भी कार्यक्रम बिना देखे सुने नहीं रहते थे।

डॉ. भाभा का एक धर्म प्राण व्यक्ति होना उनकी दूसरी विशेषता थी। अपने वैज्ञानिक अध्ययन के उपरान्त उन्हें जो भी समय मिलता था उसमें वे शास्त्रों तथा धर्म पुस्तकों का ही अध्ययन किया करते थे। उनके पुस्तकालय में जहाँ एक ओर विद्याज्ञान की पुस्तकों का ही अध्ययन किया करते थे। उनके पुस्तकालय में जहाँ एक ओर विद्याज्ञान की पुस्तकें लगी रहती थीं। डा. भाभा उन वैज्ञानिकों में से थे जिसका विश्वास भौतिक तथा आध्यात्मिक, दोनों विज्ञानों पर समान रूप से था और जो दोनों से लाभ उठाने की कला से पूरी तरह परिचित थे।

इन धर्म प्राण वैज्ञानिक डा. भाभा को जब स्वर्गीय प्रधान मन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने शासन काल में मन्त्री पद देने का प्रस्ताव किया तो उसको विनम्रता पूर्वक अस्वीकार करते हुए डा. भाभा ने जो शब्द कहे थे वे उनकी त्याग तथा कर्त्तव्य-निष्ठा के जीते-जागते प्रमाण हैं। उन्होंने कहा--”मेरा कार्य क्षेत्र में उपयोग करने के लिये विविध प्रकार के प्रयोग तथा अनुसन्धान मेरी अविरल सेवा की माँग करते रहते हैं।

खेद है कि भारत का ऐसा विश्व हितैषी वैज्ञानिक और महामानव केवल पचपन वर्ष की अवस्था में ही कुछ समय पूर्व एक विमान दुर्घटना से स्वर्ग चला गया किन्तु भारत को वैज्ञानिकों की एक नई पीढ़ी देकर उसने जो राष्ट्र की सेवा की है वह उसे इतिहास के पृष्ठों पर सदा अमर रखेगी।


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